नितीश कुमार का इस्तीफ़ा महज राजनैतिक पैतरा




पुराने साथी फिर एक बार - बिहार में आई भाजपा की बहार

नितीश कुमार का इस बार का इस्तीफ़ा भी पिछली बार की तरह पाला बदलने का इनका एक पैतरा ही साबित होने जा रहा है। नितीश कुमार ने बुधवार शाम को लगभग 6:30 बजे राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंपा और नो टॉलरेंस, नो करप्शन का अपना राग अलापते हुए अलग हो गए।

उनहोंने इस्तीफ़ा के बाद पटना में पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि परिस्थितियां ऐसी बन गयी थीं कि उनके लिए महागठबंधन में रहना कठिन हो गया था।

अगर नितीश कुमार का राजनैतिक इतिहास देखें तो यह अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं कि उनका इस्तीफ़ा देना मात्र नाटक ही होता है। पाठकों को अगर याद हो तो यह याद होगा कि 1999 में गैसल रेल दुर्घटना का हवाला देते हुए भी उनहोंने रेल मंत्री से इस्तीफा दिया था और फिर दो साल बाद ही 2001 में सहर्ष रेल मंत्रालय स्वीकार कर लिया था। इसी तरह, राज्य की राजनीति में भी इस्तीफा मात्र उनका राजनैतिक पैतरा ही साबित हुआ। दो बार भाजपा के साथ मुख्य मंत्री रहने के बाद और कईयों बार नरेंद्र मोदी के साथ मंच और भोजन साझा करने के बाद अचानक उनका वैमनस्य सामने तब आया जब भाजपा ने मोदी को प्रधानमंत्री चेहरा के रूप में प्रस्तुत कर दिया। वैमनस्य इतना बढ़ा कि उनहोंने मोदी के बिहार आगमन पर हो रहे भोज को रद्द करके पूरे भाजपा को अपमान की स्थिति में छोड़ दिया और फिर नरेन्द्र मोदी के गुजरात नरसंहार का हवाला दे कर एनडीए से अलग हो गए और महागठबंधन में शामिल हुए। महागठबंधन ने मोदी विजय पताका को बिहार में लहराने से रोका।

हालांकि महागठबंधन में जद-यू को राजद से कम सीटें मिली फिर भी नितीश कुमार को मुख्य मंत्री पद मिला और शायद इसी बात पर नितीश ने लालू के भ्रष्टाचार से समझौता भी किया।

कई लोग इसी बात पर कहते पाए जाते हैं कि क्या नितीश सरकार बनाते समय और इस्तीफा देते समय अलग अलग रंग का चश्मा पहनते हैं।

यह बात भी सही है कि लालू के बारे में मीडिया और देश भर में भ्रष्ट होने की छवि किसी से नहीं छिपी है फिर भी लालू के साथ उनहोंने अपने सिद्धांतों को ताक पर रख कर समझौता क्यों किया? इस यक्ष प्रश्न का नितीश के पास कोई जवाब नहीं है।

मांझी को हटाए जाने के बाद में मांझी को रावण और नितीश को राम दिखाता हुआ जद-यू द्वारा जारी एक पोस्टर

खैर, अब आइए बात करते हैं उनके इस्तीफ़ा के एक और पैतरे का। उनहोंने 2004 में लोक सभा हार की ज़िम्मेदारी स्वयं लेते हुए बिहार के मुख्य मंत्री पद से इस्तीफा देते हुए अपने सबसे करीबी महादलित जीतन राम मांझी को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। जीतन राम मांझी का महादलित होने के कारण और दलित उत्थान में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाने के कारण मुख्य मंत्री के तौर पर उनकी लोकप्रियता बढ़ी जो नितीश कुमार को पसंद नहीं आया। सुशिल कुमार मोदी ने मांझी को डमी मुख्य मंत्री कहते हुए अक्सर उनका मज़ाक़ उड़ाते रहे लेकिन जब उनहोंने नितीश से अपना नियंत्रण छुड़ाना शुरू किया तो उन्हें भी नितीश ने रास्ता दिखा दिया। और फिर लोक सभा में अपनी हार की ज़िम्मेदारी को ताक पर रखते हुए दोबारा मुख्य मंत्री बने। नितीश द्वारा मांझी को हटाए जाने के बाद मांझी पर जद-यू का प्रहार ज़ोरदार रहा यहाँ तक कि जद-यू के पोस्टर में मांझी को रावण तक दिखाया गया।

सवाल यह उठता है कि नितीश को एन डी ए से अलग होने की आवश्यकता ही क्या थी? क्या उस समय उनकी जो मांगें पूरी नहीं हुई अब पूरी हो गयी? क्या नितीश को सेंट्रल कैबिनेट में कोई जगह मिलने वाली है और सुशिल कुमार मोदी को राज्य के मुख्य मंत्री का पद? यह सवाल समय पर छोड़ देते हैं।

Liked it? Take a second to support द मॉर्निंग क्रॉनिकल हिंदी टीम on Patreon!