
18 तारीख को राज्य सभा में जब मायावती ने शब्बीरपुर में हुए और पूरे देश में हो रहे दलित उत्पीड़न पर बोलना चाहा तो उन्हें सत्तापक्ष के सांसदों और मंत्रियों ने व्यवधान डाल कर बोलने से रोक दिया। मायावती ने उप-सभापति के रवैये को भी उनके अधिकार के विरुद्ध बताया। मायावती ने उसी दिन राज्य सभा अध्यक्ष हामिद अंसारी के कार्यालय को अपना इस्तीफ़ानामा सौंप दिया था जिसमें उनहोंने पूरी घटना का चर्चा किया है। उनका इस्तीफ़ा मंज़ूर कर लिया गया। मायावती के इस्तीफे के बाद विपक्ष ने इसकी काफी भर्त्सना की। लालू प्रसाद यादव ने अपने ट्विटर अकाउंट में लिखा है कि “राजद पूर्ण समर्थन के साथ बहन मायावती के पक्ष में मज़बूती से खड़ा है। वंचितो की आवाज़ कुचलने के भाजपाई इरादों का हम पुरज़ोर विरोध करते है।“ राजद सुप्रीमो ने कहा है कि राजद उन्हें बिहार से राज्य सभा भेजेगी।
मायावती का पूरा त्याग पात्र यहाँ पढ़ें-
महोदय,
आज दिनांक 18.7.2017 को हमारी पार्टी बीएसपी द्वारा कार्य स्थगन की नोटिस रूल 267 के तहत दी गयी थी और उसमें यह अनुरोध किया गया था कि पूरे देश में दलितों पर हो रहे अत्याचार और उसमें से खासकर अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के शब्बीरपुर गाँव जिला सहारनपुर में हुए दलित-उत्पीड़न व उनकी हत्याओं के विषय पर सदन की सभी कार्यवाही रोककर चर्चा करायी जाए।
आज पूर्वाहन 11 बजे जब राज्यसभा की बैठक हुई तो मैंने माननीय उप सभापति का ध्यान बीएसपी द्वारा दी गयी नोटिस की ओर दिलाया और उस पर मुझे बोलने की अनुमति देने का अनुरोध किया।
इस पर माननीय उप सभापति ने कहा कि आपकी नोटिस पर मैं आपको बोलने की अनुमति देता हूँ परन्तु इस पर तीन मिनट तक ही बोलिएगा। इस पर मैंने उसी वक़्त कहा कि यह मामला ऐसा नहीं है जिस पर कि तीन मिनट में बात रखी जा सके। राज्य सभा की रुल में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि स्थगन नोटिस पर सिर्फ तीन मिनट का समय ही लगेगा और उसके बाद फिर मैंने अपनी बात रखनी शुरू की।
जैसे ही मैंने अपनी बात सदन के समक्ष रखनी शुरू की तो तुरंत ही सत्तापक्ष की ओर से उनके संसद सदस्यों के साथ-साथ मंत्रीगण मुझे इस महत्वपूर्ण विषय पर अपनी बात न रखने देने के उद्देश्य से लगातार शोर-शराबा और अवरोध उत्पन्न करते रहे।
इसके बावजूद भी मैंने शोर-शराबा के बीच अपनी पूरी बात सदन के समक्ष रखने की कोशिश की और कहा कि जब से केंद्र में बीजेपी व इनकी एनडीए की सरकार बनी है, तो तब से पूरे देश में और खासकर बीजेपी शासित राज्यों में तो इन्होने अपनी जातिवादी, सांप्रदायिक व पूंजीवादी मानसिकता के तहत चलकर अपने राजनैतिक स्वार्थ में व अपने नफे-नुकसान को भी सामने रखकर यहाँ विशेषकर ग़रीबों, दलितों, पिछड़ों, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों, मजदूरों, किसानों एवं मध्यवर्ग के लोगों का विभिन्न स्तरों पर को बड़े पैमाने पर शोषण व उत्पीड़न आदि किया है, जो अभी भी लगातार जारी है, तो यह किसी से छिपा हुआ नहीं है।
यह बात कहते हुए मैंने कहा कि मुझे पूरे सदन का ध्यान खासतौर पर उत्तर प्रदेश में बीजेपी व उनकी सरकार द्वारा एक सोची समझी राजनैतिक साज़िश व स्वार्थ के तहत जिला सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव में कराए गए दलित उत्पीड़न की घटना की तरफ दिलाना चाहती हूँ जिस पर पर्दा डालने के लिए बाद में उनहोंने वहां एक दलित संगठन को भी इस्तेमाल करके उसे जातीय हिंसा का नाम दे दिया है।
मैंने इतना ही कहा था कि सत्तापक्ष के ज़्यादातर संसद और उनके साथ-साथ मंत्रीगण पुनः खड़े हो गए और वे मुझे अपनी बात कहने से रोकते रहे और नारे लगाते रहे। इस बात पर हमारी पार्टी के संसद सदस्यों के साथ विपक्ष के सदस्यों ने भी माननीय उप सभापति से आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि सत्तापक्ष के लोगों को बैठाया जाए और सदन को सुचारू रूप से चलाते हुए बीएसपी की नेता को अपनी पूरी बात रखने दिया जाए।
परन्तु अफ़सोस के साथ मुझे यह कहना पड़ रहा है माननीय उप सभापति ने सत्तापक्ष के लोगों को शांत कराने की जगह घंटी बजाकर मुझे ही बैठने के लिए कह दिया और मुझे अपनी बात यहीं रोकने के लिए कहा क्योंकि तीन मिनट हो चुके हैं।
इस पर मैंने माननीय उप सभापति से बार-बार यह कहा कि राज्य सभा की रुल बुक में कहीं पर भी यह नहीं लिखा है कि स्थगन प्रस्ताव की नोटिस पर केवल तीन मिनट का समय ही मिलेगा और जो तीन मिनट बीते हैं वह भी ज़्यादातर सत्तापक्ष ने शोर-शराबा मचा कर बर्बाद कर दिया और मुझे अपनी बात कहने से रोका गया।
मैंने यह भी कहा कि सहारनपुर काण्ड कोई मामूली मामला नहीं है। मुझे इस बात को संसद में रखने का पूरा मौक़ा मिलना चाहिए। परन्तु माननीय उप सभापति से बार-बार अनुरोध करने के बावजूद भी मुझे और मौक़ा दिए जाने से मना कर दिया।
इस पर मैंने पुनः जोर देकर अनुरोध करते हुए यह कहा कि अगर सत्तापक्ष अपनी बीजेपी की सरकारों में खुलेआम हो रहे दलितों के लगातार उत्पीड़न व हत्याओं के मामलों पर भी मैं राज्य सभा के सदन के अंदर नहीं बोल सकती तो फिर यहाँ पर मेरा सदन के सदस्य के रूप में आगे बने होने का कोई औचित्य नहीं है और मैं अपने पद से इस्तीफ़ा दे दूँगी।
लेकिन इसके बावजूद भी माननीय उप सभापति ने मुझे इस विषय पर आगे बोलने की इजाज़त नहीं दी और इस तरह मुझे मजबूर होकर सदन के अंदर इस बात को दोहराते हुए कि अगर मुझे इस सदन के अंदर मेरे अपने खुद के दलित समाज पर आए-दिन हो रहे उत्पीड़न पर भी अपनी पूरी बात रखने की इजाज़त नहीं दी जा रही है और चूँकि यहाँ मैं अपनी बात नहीं रख सकती हूँ तो फिर मैं अपने पद से इस्तीफ़ा दे दूँगी और यह कहते हुए मैं सदन से बाहर आ गयी।
माननीय सभापति जी मुझे बड़े दुःख के साथ इस्तीफ़ा देने का यह फैसल लेना पड़ रहा है कि देश में सर्व समाज में से खासकर जिन ग़रीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों व मुस्लिम एवं अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों आदि के हित व कल्याण की भी बात सत्ता पक्ष के लोग अर्थात बीजेपी व इनके एनडीए के लोग नहीं रखने देंगे, तो फिर मुझे ऐसी स्थिति में माननीय इस सदन में बिलकुल भी रहने का औचित्य नहीं रहा है।
इसके साथ ही, यहाँ मैं भी बताना चाहती हूँ कि मैंने सन 2003 में भी उत्तर प्रदेश में बीएसपी व बीजेपी की मिली-जुली सरकार में अपनी पार्टी की विचारधारा एवं सिद्धांतों में बीजेपी का दखल होते हुए देखकर लगभग 15 महीने के अंदर ही अपने मुख्यमंत्री के पद से व इस संयुक्त सरकार से भी इस्तीफ़ा दे दिया था।
ऐसी स्थिति में अब मैंने आज दिनांक 18 जुलाई सन 2017 को अपने राज्य सभा के पद से इस्तीफा देने का फैसला ले लिया है, जिसका मैंने आज माननीय सदन में भी ऐलान कर दिया था।
आपसे अनुरोध है कि आप मेरे इस इस्तीफे को स्वीकार करने का कष्ट करें।