
लिंगायत समुदाय जिसकी आबादी कर्नाटक राज्य में 17 प्रतिशत की है हाल के वर्षों में कर्नाटक के उत्तरी भागों में भाजपा की प्रमुख समर्थक रही है.
क्या है लिंगायत समुदाय का सच?
लिंगायत संप्रदाय को वीरशैव संप्रदाय भी कहा जाता है. यह संप्रदाय मूलतः शिव को अपना भगवान मानता है. इसकी स्थापना 12वीं शताब्दी के दार्शनिक और राजनेता बसव ने की थी, बसव को बसवेश्वर भी कहा जाता है. महान कन्नड़ कवि और दार्शनिक के रूप में उन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त जाति व्यवस्था, लिंग आधारित भेदभाव और धार्मिक अनुष्ठान के विरुद्ध लंबा संघर्ष किया. यह संप्रदाय दक्षिण भारत के कई राज्यों में बसता है लेकिन इसकी सबसे बड़ी आबादी कर्नाटक में है.
कर्नाटक में वर्चस्व वाली लिंगायत समुदाय के नेताओं ने मंगलवार को बेलगावी में एक बड़ी रैली निकाल कर लिंगायत समुदाय को स्वतंत्र धर्म की पहचान देने की मांग को फिर से तेज़ कर दिया है. लिंगायत समुदाय के नेतृत्व ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को समुदाय से संबंधित मामलों से दूरी बनाए रखने को भी कहा है. लिंगायत समुदाय की ओर से ऐसी चेतावनी तब आया जब आरएसएस प्रमुख ने लिंगायत के ऋषियों से स्वतंत्र धर्म के दर्जे की मांग को छोड़ देने का सुझाव दिया था.

रैली में माथे महादेवी नाम की साध्वी जो लिंगायत आन्दोलन में अग्रणी भूमिका में है ने कहा कि आरएसएस प्रमुख को प्रधान मंत्री को हमारी मांग पूरी करने को लेकर समझाना चाहिए. “उन्हें चाहिए कि वह मोदी पर अपना प्रभाव का उपयोग करके हमें स्वतंत्र धर्म का दर्जा देने की प्रक्रिया को तेज़ करें,” उन्होंने कहा.
“हम आधुनिक लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुसार जीते हैं न कि भागवत के सिद्धांतों पर. हमें ऐसे नेताओं के सुझावों पर अमल करने की आवश्यकता नहीं है,” एक और ऋषि बसव जय मृत्युंजय स्वामी ने कहा. उनहोंने कहा कि लिंगायत के नेता को उनकी पार्टियों का गुलाम नहीं बनना चाहिए बल्कि समुदाय के संस्थापक, 12वीं शताब्दी के संत बासवेश्वर के बताए मार्गों का अनुकरण करना चाहिए.
लिंगायत नेता और विधायक बासवराज होरात्ती ने कहा कि लिंगायत समुदाय को अपने मामले खुदसे निपटाने का अधिकार मिलना चाहिए और बाहर वालों को हस्तक्षेप से बाज़ आना चाहिए.
गडग तोंतद मठ के ऋषि, सिद्धलिंगा स्वामी ने कहा कि, भागवत जैसे दक्षिण पंथी नेता हमारे मूवमेंट को भटकाने का प्रयास कर रहे हैं. उनहोंने कहा कि लिंगायत मत और हिन्दू मत के सिद्धांत अलग अलग हैं क्योंकि लिंगायत मत इस सिद्धांत पर आधारित है कि वर्ग, जात और लिंग के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं हो सकता.
“हम कभी भी हिंदुत्व का हिस्सा नहीं रहे. इसलिए हमारा हिन्दुओं के घेरे से निकलने का कोई प्रश्न ही नहीं है. हम 900 वर्षों से एक अलग धर्म हैं” पूर्व आई ए एस अधिकारी एस एम जामदार जो आन्दोलन का हिस्सा है ने कहा. “अगर हम लिंगायत हिंदुत्व का हिस्सा होते तो हमारे साथ शूद्रों की तरह बर्ताव किया जाता. इसलिए यह ज़रूरी है कि हमें अलग धर्म का दर्जा दे दिया जाए, जामदार ने कहा.
हाल के वर्षों में कर्नाटक के उत्तरी भाग में लिंगायत समुदाय जो राज्य की आबादी का 17 प्रतिशत है भाजपा के प्रमुख समर्थक रहे हैं. कर्नाटक की कांग्रेस सरकार लिंगायत की स्वतंत्र धर्म की मांग को चुपचाप समर्थन देती रही है और कांग्रेस के कई मंत्री मुद्दे को समर्थन देने के लिए उनकी बैठकों में शामिल होते रहे हैं.
मुख्य मंत्री सिद्दारामैया ने कहा है कि वह केंद्र सरकार से लिंगायत के लिए स्वतंत्र धर्म का दर्जा देने की मांग करेंगे अगर समुदाय इस मांग को लेकर एकमत हो.