
भारत के कई पुराने म्यूजियमों में से एक पटना म्यूज़ियम जिसे पटनावासी जादूघर कहते हैं और विश्व भर से जब लोग पटना आते हैं तो पटना म्यूज़ियम देखने के बाद ही उनका पर्यटन पूरा होता है 2017 के गांधी जयंती के अवसर पर इतिहास बन जाएगा। पटना म्यूज़ियम को बिहार और बंगाल के बंटवारे के बाद ब्रिटिश इंडिया में 1917 में बनवाया गया था। मुग़ल और राजपुताना आर्किटेक्चर से बने इस भव्य इमारत में बसा पटना म्यूज़ियम भले ही बिहार की अल्प-शिक्षित जनता के लिए महत्वपूर्ण विषय न हो लेकिन इतिहास के विद्यार्थियों और धरोहरों के दीवानों के लिए यह बहुत गौरव का विषय है।
2 अक्टूबर, 2017 को इसकी अधिकतर अनमोल संपत्ति जिनमें नायाब मूर्तियाँ, प्राचीन कला कृति, दुर्लभ पांडूलिपियाँ शामिल हैं बिहार म्यूज़ियम सोसाइटी द्वारा बनाए गए बिहार म्यूज़ियम में स्थानांतरित हो जाएंगी। कल उन सबके सपने बिखर जाएंगे जो पटना को जादूघर का शहर कहते हैं और जिन्हें अपने पटना के धरोहर पर गर्व हैं। पटना स्टेशन से 5 मिनट की पैदल की दूरी पर बसा विशाल पटना म्यूज़ियम के अस्तित्व को लेकर इतिहासकार से लेकर समाजवादी और शिक्षाविद सबने अपनी अपनी क्षमता के साथ विरोध किया, कानूनी लड़ाई लड़ी लेकिन सबने नीतीश के तानाशाही रवैये के सामने घुटने टेक दिए।
पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पोस्ट डाक्टरल फेलो अशोक कुमार ने 2012 में इसको लेकर पटना उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर किया था जिसका निर्णय उच्च न्यायालय ने तब दिया जब बिहार म्यूज़ियम का काम लगभग पूरा होने को था और न्यायालय ने इस कारण इसपर रोक लगाने से मना कर दिया हालांकि न्यायालय ने यह अवश्य कहा कि यह जनता के जनहित में नहीं है। उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि जिस तरीके से ठेके इत्यादि दिए गए वह भी पारदर्शी नहीं है और न्यायालय ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि अगर पटना म्यूजियम का भवन बेकार हो जाता है तो भवन और अन्य आधारभूत संरचना को किसी निजी कंपनी को न सौंपा जाए बल्कि इसका काम सावर्जनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाए।
इस स्थानान्तरण पर याचिकाकर्ता अशोक कुमार ने कहा कि नीतीश कुमार अब खुद को बिहार का पर्याय मानने लगे हैं और कुछ भी मनमाना करने को आतुर हैं।
पटना म्यूज़ियम में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का धरोहर भी मौजूद है। पटना म्यूज़ियम में राहुल सांकृत्यायन की दी हुई थंका, पांडुलिपि और तालपत्रों के अलावा पोशाक, धार्मिक कृयाओं से जुड़ी वस्तुएं, मूर्तियां, आभूषण तथा सिक्के संग्रहित हैं। राहुल सांकृत्यायन के धरोहर को बचाने के लिए उनकी बेटी जया सांकृत्यायन ने भी मुख्य मंत्री नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके पिता द्वारा इन धरोहर को देने के पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य था कि यह सारी धरोहर समग्र रूप से एक ही छत के नीचे बिहार की ऐतिहासिक धरोहरों के समक्ष रहे। शोध करने वाले लोगों को अपने इतिहास से जुड़े पहलुओं को समझने के लिए किसी विदेशी संस्था या विश्वविद्यालय नहीं जाना पड़े। लेकिन उनकी बात को भी अनसुना किया गया।
बिहार के इस धरोहर को बचाने में प्रयासरत पटना म्यूजियम बचाव समिति के पुष्पराज कहते हैं कि यह ऐतिहासिक संपदा की लूट की कोशिश है। इन धरोहरों को एक भवन से दुसरे भवन में स्थानांतरित करने के पीछे इन धरोहरों की स्मगलिंग अवश्यंभावी है। पुष्पराज ने कहा कि वह अपने संघर्ष को जारी रखेंगे और बिहार और देश की जनता को जागरूक कर इस धरोहर को पुनः स्थापित करने का पूरा प्रयास करेंगे।
वह कहते हैं कि पटना म्यूजियम के अंदर जो पेड़ हैं उनका भी अपना इतिहास है उसे नीतीश कुमार कैसे किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट करेंगे।
वहीँ म्यूज़ियम, बिहार के पूर्व निदेशक भी राज्य सरकार की मनमानी से आहत हैं। उनका कहना है कि प्राचीन कलाकृतियों का कहीं और स्थानान्तरण पटना म्यूज़ियम का बिखराव है। पटना म्यूज़ियम को बिहार की विरासत बनाने में 100 साल लगे हैं और आज पटना म्यूज़ियम का जो स्थान है वह हज़ारों लोगों के मेहनत का परिणाम है।
पटना म्यूज़ियम के स्थानान्तरण के विरोध में इरफ़ान हबीब और रोमिला थापर जैसे कई जाने माने इतिहासकार लगे हैं। अब देखना यह है कि बिहार वासियों के इस दर्द को बिहार म्यूज़ियम से नीतीश कुमार कितना कम कर पाते हैं लेकिन यह तो तय है कि विरासत से प्रेम करने वाला जब कभी जादूघर को याद करेगा उसके हृदय से टीस तो निकलेगी ही।