भाजपा को वोट न दें – 124 फिल्म निर्माताओं की देश से अपील




भारत भर के फिल्म निर्माण समुदाय से जुड़े 124 सदस्यों – जिनमें अधिकांश स्वतंत्र फिल्म निर्माता हैं ने “लोकतंत्र बचाओ” की छतरी से आगामी लोकसभा चुनाव में भारत के लोगों से भाजपा को वोट न देने की अपील जारी की है.

इनमें राहुल रॉय, अमिताभ चटर्जी, वेटरी मारण, आनंद पटवर्धन, सनलकुमार ससीधरन, सुदेवन, कौशिक मुख़र्जी, दीपा धनराज, गुरविंदर सिंह, पुष्पेंद्र सिंह, कबीर सिंह चौधरी, अंजलि मोंटेइरो, प्रवीण मोरछले, देवाशीष मखीजा और बीना पॉल जैसे जाने-माने नाम शामिल हैं.

इस अपील को वेबसाइट www.artistuniteindia.com पर शुक्रवार को प्रकाशित किया गया। यह चार भाषाओँ – तमिल, मलयालम, हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध हैं.

भाजपा के खिलाफ इस सख्त क़दम के पीछे उनहोंने “सामजिक ध्रुवीकरण और नफरत की राजनीति, दलितों, मुसलमानों और किसानों का हाशिए पर होना, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संस्थानों का लगातार क्षरण; और बढ़ती सेंसरशिप” जैसे कारण बताए हैं.

बयान में कहा गया है: “सांस्कृतिक रूप से अलग और भौगोलिक रूप से बंटे होने के बावजूद, हम हमेशा एकजुट रहे हैं … यह वास्तव में इस अद्भुत देश का नागरिक होने का एक बड़ा अहसास है.”

इसमें कहा गया है यह आज खतरे में है. अगर हमने आगामी लोकसभा चुनाव में समझदारी से चुनाव नहीं किया तो यह फासीवाद हमें मुश्किल में डाल देगा. फिल्म निर्माताओं का आरोप है कि 2014 में जब से भाजपा सत्ता में आई है,  देश का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हुआ है.

अपील का संपूर्ण टेक्स्ट यहाँ पढ़ें:

भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है और ये हर तरह के बदलाव का साक्षी रहा है. ऐसी महान सभ्यता आज अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है. सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से असंख्य विविधताओं से भरा होने के बावजूद, एक राष्ट्र के रूप में हम हमेशा एक साथ खड़े रहे हैं. हमें गर्व है कि हम इस सद्भावनापूर्ण और प्यारे देश के निवासी हैं.

हम हमेशा से ऐसा देखते आए हैं पर ये सब शायद अब वैसा न रहे.

अगर आने वाले लोकसभा चुनावों में हमने जागरूक रहकर अपने प्रतिनिधि नहीं चुने तो यक़ीन मानिए, तानाशाही हमारे दरवाज़े तक पहुँच चुकी है.

जैसा कि हम सभी जानते हैं, 2014 में जब से भाजपा सत्ता में आई है, सब कुछ बदल गया है. और ये बदलाव कहीं से भी सकारात्मक तो नहीं ही है. धर्म के नाम पर बंटा हुआ भारत वो भारत नहीं है जिसे हम जानते हैं. सिर्फ यही नहीं, भाजपा और उसके घटक दल, पिछले चुनावों में किए अपने वादों में से कुछ भी पूरा नहीं कर पाए हैं. अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए अब ये मोब लिंचिंग और गाय-गोबर जैसे हथकंडों से देश को बाँटने का काम कर रहे हैं. मुसलमानों और दलितों को अलग-थलग करना इनकी प्राथमिकताओं में है. ये लोग अपने अंदर की नफ़रत को इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिये ज़ोर-शोर से फैला रहे हैं. “देशभक्ति” को अपना हथियार बना कर ये असहमतियों पर हमला करते हैं. कोई भी व्यक्ति या संस्था, जो इनसे ज़रा सा भी असहमत है, ये उसे फ़ौरन ‘देशद्रोही’ क़रार देते हैं. यही ‘देशभक्ति’ का राग इनका वोट-बैंक बनाता हैं. एक बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए कि हमारे बेहतरीन लेखकों और पत्रकारों ने इसी असहमति की वजह से अपनी जान गँवाई है.

सेना के नाम पर छद्म भावुकता रचकर ये उसके प्रचार से फायदा उठाते हैं. इन्हें कोई परवाह नहीं अगर इससे देश युद्ध के मुहाने पर पहुँच जाये. देश की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संस्थाओं पर लगातार हमले हो रहे हैं. इन संस्थाओं के प्रमुख पदों पर अनुभवहीन और अयोग्य व्यक्तियों की नियुक्ति कर ये देश की प्रतिभा का मखौल उड़ाते हैं. धीरे-धीरे हर महत्वपूर्ण संस्था में इनके बैठाये बुद्धिहीन लोग क़ाबिज़ हो गए हैं. यहाँ तक कि ये अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान गोष्ठियों में भी अपने अवैज्ञानिक और बेतुके सिद्धांतों की बात कर पूरी दुनिया को हम पर हँसने का मौका देते हैं. इनेक अस्तित्व के लिए निहायत ज़रूरी है कि लोग सत्य से दूर रहें और इसके लिए ये “कला” पर और खास तौर पर जो कला के सबसे सशक्त माध्यम हैं - ‘सिनेमा और किताबें’, उन पर प्रतिबंध लगाते हैं.

किसान तो पूरी तरह भुला दिया गया है. बल्कि, भाजपा ने देश को कुछ व्यापारियों की व्यक्तिगत संपत्ति बना दिया है. इनकी कमजोर आर्थिक नीतियाँ अंत में विध्वंसक ही साबित हुईं लेकिन उन्हें बेहद सफल बताया जा रहा है. कैसे? झूठ की जोरदार मार्केटिंग से. इससे देश में एक झूठा आशावाद पैदा हुआ है जो आगे चलकर बहुत ही घातक साबित होने वाला है.

इनका एक और शगल आंकड़ों और इतिहास के साथ छेड़-छाड़ है. ऐसे में इन्हें एक और मौका देना हमारी सबसे बड़ी और भयानक भूल होगी. ये दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी.

सभी जिम्मेदार और विचारशील देशवासियों से निवेदन  है कि अपनी पूरी क्षमता के साथ इन विध्वंसकारी ताकतों को वापस सत्ता में आने से रोकिए। किसी एक दल के समर्थन में नहीं, बल्कि देश के लिए, आइये हम एक ऐसी सरकार चुनें जो संविधान में, अभिव्यक्ति की आज़ादी में और स्वस्थ आलोचना में विश्वास रखती हो, जो अपने ही किसी भी नागरिक के लिए खुद खतरा न हो.

और याद रखिए, ये आपका आख़री मौका है, इसके बाद शायद आपके पास चुनने का अधिकार भी न हो.

धन्यवाद!
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