
सोमवार को भारतीय उच्चतम न्यायालय ने लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को 2008 के मालेगांव बम धमाका काण्ड में ज़मानत दे दिया. पुरोहित जो 9 वर्षों से जेल में थे ने साज़िश में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है.
प्रसाद श्रीकांत पुरोहित भारतीय थल सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर थे और उनहोंने जम्मू-कश्मीर के काउंटर-टेररिज्म यूनिट में भी अपनी सेवा दी थी. वह साध्वी प्रज्ञा, स्वामी दयानंद पाण्डेय, राकेश धावडे के साथ मुख्य आरोपी बनाए गए थे. इस काण्ड में अन्य आरोपी रमेश उपाध्याय, श्यामलाल साहू, शिवनारायण कालसंग्रा, सुधाकर चतुर्वेदी, जगदीश मात्रे और समीर कुलकर्णी थे.
2008 के मालेगावं बम विस्फोट में 6 लोगों की जान गयी थी और बहुत सारे लोग घायल हुए थे. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को इस काण्ड में इसी वर्ष 25 अप्रैल को मुंबई उच्च न्यायालय ने जमानत दे दिया था और कर्नल के जमानत की अर्जी को निरस्त कर दिया था.
एनआईए द्वारा स्वामी दयानंद पाण्डेय, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट पुरोहित को मुख्य अभियुक्त बनाया गया था. एन आई ए ने अपने 4 हज़ार पन्ने के चार्जशीट में यह आरोप लगाया था कि मालेगांव को बम विस्फोट के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि यहाँ मुस्लिम की बड़ी आबादी है.
इसमें यह भी आरोप लगा था कि दयानंद पाण्डेय ने ही पुरोहित को आर डी एक्स की व्यवस्था करने को कहा था जबकि प्रज्ञा ठाकुर उस मोटर साइकिल की मालकिन थीं जिसका विस्फोट में प्रयोग किया गया था. कर्नल पर यह भी आरोप है कि उनहोंने सेना से आर डी एक्स की चोरी की थी.
एन आई ए की चार्जशीट में एक और अभियुक्त अजय रहिरकर पर यह आरोप है कि उनहोंने इस आतंकी षड्यंत्र के लिए राशि इकठ्ठा की थी जबकि षड्यंत्र की बैठकी भोंसला सैनिक विद्यालय, नासिक में की गयी थी.
गुरुवार को उच्चतम न्यायालय में अपने क्लाइंट पुरोहित के लिए वकील हरीश साल्वे हाज़िर हुए थे और उन्होंने अदालत से अपील की थी कि वह इंसाफ़ करते हुए कम से कम उनके मुवक्किल को अंतरिम जमानत दे. साल्वे ने अपने तर्क में उच्चतम न्यायालय को कहा था कि उनके मुवक्किल को काण्ड में गलत फंसाया गया और वह राजनीतिक द्वन्द के भुक्तभोगी हैं.
साल्वे के तर्कों का राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी ने विरोध करते हुए तर्क दिया था कि उच्चतम न्यायालय को लेफ्टिनेंट कर्नल को अंतरिम जमानत न देने का मुंबई उच्च न्यायलय का निर्णय बहाल रखना चाहिए क्योंकि एन आई के पास उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत है. उच्चतम न्यायलय ने अपने फैसले को आज तक के लिए सुरक्षित रखा था.
अहमदाबाद के रहने वाले पुरस्कृत फ़िल्मकार, पेंटर और समाचार पत्र के कॉलमकार प्रवीण मिश्रा ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर एक ट्वीट किया है. उनहोंने लिखा है कि “टाइम्स नाउ की एक महिला ने मुझे 21 अगस्त को फ़ोन कर के लाइव शो में शामिल होने का आमन्त्रण दिया. मैंने पूछा, “किस मुद्दे पर”? उनहोंने कहा “कर्नल पुरोहित को उस दिन जमानत मिला जाएगी. उन्हें यह कैसे पता था कि ज़मानत मिल जाएगा.