
मोदी सरकार द्वारा सवर्णों को 10% के आरक्षण का पोल इस आरटीआई से खुलता है कि जो लोग पहले से आरक्षण में हैं वह नौकरियों में उच्च पदों पर कितना कम हैं और जिनके लिए आरक्षण का ढोंग मोदी सरकार रच रही है वह बिना आरक्षण के ही 70 प्रतिशत से भी ज़्यादा हैं. यह सच पहले से भी सबको पता है जिसका खुलासा इंडियन एक्सप्रेस के आरटीआई से भी अब हो चुका है.
इंडियन एक्सप्रेस के इस आरटीआई से पता चलता है कि 40 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी आरक्षण केवल सहायक पदों तक ही लागू है. इसमें भी उन्हें कानूनी अधिकार के अनुसार दिए गए आरक्षण का आधा भी नियुक्ति नहीं है. यहाँ इनकी संख्या केवल 14.38 प्रतिशत है. आरटीआई से मिली सूचना के आधार पर, ओबीसी आरक्षण के तहत इन संस्थानों में प्रोफेसरों और एसोसिएट प्रोफ़ेसरों की संख्या शून्य है. ये आंकड़े बताते हैं कि 95.2 प्रतिशत प्रोफेसर, 92.9 प्रतिशत एसोसिएट प्रोफेसर और 66.27 प्रतिशत सहायक प्रोफेसर सामान्य वर्ग से हैं. इन आंकड़ों में ऐसे SC, ST और OBC हो सकते हैं जिन्होंने आरक्षण का लाभ नहीं लिया है.
इसके अलावा, 1,125 प्रोफेसरों में से 39 (3.47 प्रतिशत) एससी हैं जबकि 8 (0.7) प्रतिशत प्रोफेसर एसटी हैं. 2,620 एसोसिएट प्रोफेसरो में से 130 (4.96 प्रतिशत) एससी हैं जबकि 34 (1.3 प्रतिशत) एसोसिएट प्रोफेसर एसटी हैं. 7,441 असिस्टेंट प्रोफेसरों में से 931 (12.02 प्रतिशत) एससी हैं जबकि 423 (5.46 प्रतिशत) असिस्टेंट प्रोफेसर एसटी और 1,113 (14.38 प्रतिशत) ओबीसी हैं.
गैर-शिक्षण कर्मचारियों में भी केवल 8.96 प्रतिशत एससी, 4.25 प्रतिशत एसटी और 10.17 प्रतिशत ओबीसी हैं. डेटा से पता चलता है कि इसमें 76.14 प्रतिशत सामान्य वर्ग के लोग हैं.
आरटीआई के जवाब में यूजीसी ने यह आंकड़ा 1 अप्रैल, 2018 तक का प्रदान किया है. इसमें मानव संसाधन विकास मंत्रालय का 1 जनवरी, 2018 तक का, रेलवे का 1 जनवरी, 2017 तक का और डीओपीटी ने सरकारी विभागों के लिए 2015 का डाटा दिया. आंकड़ों के अनुसार, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और इससे जुड़े कार्यालयों में समूह ए और समूह बी के 665 अधिकारी हैं, इनमें से 440 (66.17) सामान्य वर्ग, 126 (18.94 प्रतिशत) एससी, 43 (6.47 प्रतिशत) एसटी और ओबीसी से केवल 56 (8.42 प्रतिशत) है.