‘आज के शिवाजी नरेंद्र मोदी’ किताब में मोदी की तुलना शिवाजी का अपमान?




-समीर भारती

बॉलीवुड का कमल प्रोजेक्ट के तौर पर हमने कई फिल्मों को देखा. नरेंद्र मोदी सरकार की कई परियोजनाओं को बॉलीवुड के रुपहले परदे पर बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता हुआ भी देखा. टॉयलेट एक प्रेम कथा, एयरलिफ्ट, उरी-सर्जिकल स्ट्राइक, डॉ मनमोहन सिंह की क्षमता और कांग्रेस पर सवालिया निशान खड़ी करने वाली फिल्म द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, प्राइम मिनिस्टर नरेन्द्र मोदी के अलावा कई ऐसी फ़िल्में भी बनीं जो इस देश के मुस्लिम शासकों के बारे में गलत इतिहास को चित्रित करने का प्रयास किया गया.

इन सबके बाद, अब एक ऐसी कोशिश की गयी है जिसमें एक किताब लिखकर नरेंद्र मोदी की शिवाजी महाराज से तुलना की गयी है.

इस किताब को भारतीय जनता पार्टी के नेता जय भगवान गोयल ने लिखी है जिस पर विवाद शुरू हो गया है. कांग्रेस और शिव सेना ने इसे मराठा सम्राट शिवाजी की अवमानना करार दिया है.

इस किताब की आलोचना करते हुए शिवसेना सांसद संजय राउत ने सोमवार को कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज महाराष्ट्र के पूजनीय व्यक्तित्व हैं और उनकी तुलना किसी के साथ नहीं की जा सकती है.

महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष और राजस्व मंत्री बालासाहेब थोराट ने कहा कि इस तरह की तुलना करने के लिए पहले भी अजय कुमार बिष्ट और विजय गोयल जैसे कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा प्रयास किए गए थे.

बालासाहेब थोराट ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वार्थपूर्ण राजनीति कर रहे हैं और उन्होंने सीएए-एनआरसी के साथ देश को विभाजित करने का काम किया है. थोराट ने कहा कि मोदी के नेतृत्व में विमुद्रीकरण के बाद जनता को परेशान किया गया, देश को निरंकुश तरीके से शासित किया जा रहा है. मोदी की तुलना महान छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ कभी भी नहीं हो सकती है.

थोराट ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने सभी धर्मों के लोगों को ‘स्वराज्य’ का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एकजुट किया. मोदी महान मराठा सम्राट के ‘पैर के नाखून’ के बराबर भी नहीं है. थोराट ने किताब के खिलाफ आज यानी 14 जनवरी को सभी शहरों, जिलों और तालुका में बीजेपी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की. वहीं, संजय राउत ने ‘आज के शिवाजी नरेंद्र मोदी’ किताब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है.

शिवाजी कैसे थे?

शिवाजी का दुरूपयोग दक्षिण पंथी विचारधारा के लोग मुस्लिम विरोधी मराठा शासक की तरह करते रहे हैं. इतिहास में ऐसी कोई घटना नहीं मिलती जिसमें शिवाजी को मुस्लिम या इस्लाम विरोधी माना जा सके.

शिवाजी हज़रत बाबा याकूत थोरेवाले को आजीवन पेंशन देने का फरमान सुनाया था. शिवाजी ने फ़ादर ऐमबोज़ की उस समय मदद की थी जब फादर के गुजरात स्थित चर्च पर हमला हुआ था.

शिवाजी के शासन में मस्जिदों और दरगाहों को समुचित सुरक्षा मौजूद थी.

शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ में अपने महल के ठीक सामने मुसलमानों के लिए एक मस्जिद का ठीक उसी तरह निर्माण करवाया था जिस तरह उनहोंने अपनी पूजा के लिए जगदीश्वर मंदिर बनवाया था.

जब शिवाजी आगरा के किला में नज़रबंद थे तब उन्हें भागने में दो लोगों ने मदद की थी. उनमें एक मुसलमान थे जिनका नाम मदारी मेहतर था.

शिवाजी के गुप्तचर मामलों के सचिव मौलाना हैदर अली थे. और उनके तोपखाने की कमान इब्राहीम खां के हाथों में थी.

शिवाजी का यहाँ तक फ़रमान था कि अगर किसी को कुरान की कोई प्रति मिले तो वह उसे ससम्मान मुसलमानों को लौटा दे.

शिवाजी का वह किस्सा भी सर्वविदित है जब शिवा जी के सैनिकों ने लूट के सामान के साथ बसाई के नवाब के बहू को ले आए थे तब उनहोंने नवाब की बहू से माफ़ी मांगी और पूरे सम्मान के साथ उन्हें उनके घर लौटाया.

शिवाजी के थल सेना की कमान सिद्धि संबल के हाथों में थी और उस सेना में बड़ी संख्या में सिद्धि के मुसलमान थे.

यह भी विदित है कि जब आदिल शाह के सेनापति अफजल खां ने शिवाजी को अपने खेमे में वार्ता के लिए बुलाया था तब शिवाजी को अफज़ल खां द्वारा उन्हें मारने के इरादे से खबरदार करने वाला मुसलमान ही था. उनका नाम रुस्तम ज़मा था जिन्होंने शिवाजी को बात-चीत के दौरान लोहे का पंजा रखने की हिदायत की थी.

यह भी दिलचस्प है कि अफज़ल खां का सलाहकार भी हिन्दू ही था. उनका नाम कृष्णमूर्ति भास्कर कुलकर्णी था.

इतिहासकार गोविन्द सखाराम सरदेसाई ‘न्यू हिस्ट्री ऑफ़ दि मराठाज़’ में लिखते हैं कि शिवाजी को न ही मुसलमानों से और न ही इस्लाम से किसी प्रकार की घृणा थी. वह अपनी किताब में लिखते हैं कि शिवाजी को मुस्लिम विरोधी बताना सच्चाई का मज़ाक़ बनाने जैसा है.

IIT के पूर्व प्रोफेसर डॉ राम पुनयानी कहते हैं कि शिवाजी और अफज़ल खां की लड़ाई साम्राज्य की लड़ाई थी और दोनों की सेना में हिन्दू और मुस्लमान मौजूद थे.

क्या मोदी ऐसे हैं?

नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब सैकड़ों मुसलमान मारे गए और कई मुस्लिम औरतों की इज्ज़त लूटी गयी थी.

नरेन्द्र मोदी दूसरी कार्यकाल में प्रधानमंत्री के तौर पर वापस आए तो उनहोंने सबसे पहले धर्म के आधार पर नागरिकता देने का कानून बनाकर पूरे देश की एकता और अखंडता को तार-तार किया.

कई बार नरेंद्र मोदी ने मुसलामानों को जो देश की 13 प्रतिशत अल्पसंख्यक है पर विवादित बयान दिया है. नरेंद्र मोदी की पार्टी के एमएलए, एमपी, मंत्री और मुख्यमंत्री तक मुस्लिम विरोधी बयानों और दंगों में संलिप्त पाए गए. कुछ के मामले लंबित हैं कुछ अदालत में पुख्ता सबूत न होने के कारण छूट जा चुके हैं. साध्वी प्रज्ञा जैसे लोग भारतीय जनता पार्टी के एमपी हैं.

भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के चुनाव में एक भी एमपी का टिकट किसी मुसलमान को नहीं दिया.

(ये लेखक के अपने विचार हैं.)

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