
नेहरू, शास्त्री, मोरारजी के बाद खेती के साथ सौतेला बर्ताव ही होता रहा है।
-चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के साथ कृषि संबंधी बैठक कल 20 फरवरी, 2018 को होने जा रही है। यह उल्लेखनीय है। खासकर स्वरोजगार के लिए प्रेरक भूमिका लेकर यह संपन्न हो, यही इसकी सबसे प्रमुख सफलता होगी।
खेती किसानी क्षेत्र में योजनागत हस्तक्षेप बहुत जरूरी है। क्योंकि स्वरोजगार को बढ़ाने वाला यह सबसे बड़ा और कई मायने में उल्लेख के लायक क्षेत्र है। खेती की अबतक की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि प्रायः सामंती नियंत्रण में रहनेवाला यह क्षेत्र व्यापक पैमाने पर श्रमिकों के लिए अर्धगुलामी का कारण था। पर जब भूमि की सत्ता का संकेन्द्रण समाप्त होता गया और जमीन्दारियों का नास हुआ तब से खेतिहर क्षेत्र अपनी संभावनाएं प्रकट करने लगा।
खेती के क्षेत्र में हरित क्रांति (ग्रीन रिवल्यूशन) के प्रयोग हुए। इसकी सफलता की बदौलत ऊँचे पैमाने रखे जा सके। हम खाद्यान्न की कमी वाले और ‘कटोरा लिए खड़ा देश’ से भोजन के मामले में ‘स्वावलंबी देश’ बन गए।
ग्रीन रिवल्यूशन की बुराइयों के तीखा रूप लेने के बाद हमने सबक लिया और तब हमने ‘एवरग्रीन रिवल्यूशन’ का नारा दिया। इसका मतलब, हमारा जोर टिकाउ यानी सस्टेनेबल विकास की ओर हुआ। तमिलनाडू में और उड़ीसा में धान (चावल) की उत्पादकता के दावों के साथ ग्रीन रिवल्यूशन के क्षेत्र का सीमित दायरे से बाहर निकलना जारी रहा। आज पूर्वी भारत-असम-प. बंगाल-बिहार-झारखण्ड-उड़ीसा कृषि विकास के लिए ‘सोया हुआ वह बाघ है जो जाग रहा’ है। इस क्षेत्र में किसानों की आकांक्षा ने वह मोड़ नहीं लिया है कि किसान भारी ऋण जाल के ट्रैप में आकर आत्महत्या का रास्ता चुनें। बल्कि कृषि विकास के क्षेत्र में आज व्यापक इलाकों के जुड़ते जाने से उत्पादकता के नए द्वार खुले हैं। घनी आबादी वाले क्षेत्रों (बिहार-बंगाल) में खेती और उत्पादकता विकास के साथ-साथ वितरण की व्यवस्था चलती है। क्योंकि उत्पादक ही यहाँ मुख्य उपभोक्ता होता है। अपने उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा खुद उनके या उनके आश्रितों के उपभोग में आता है। अर्थात बाजार से इस क्षेत्र का संबंध भिन्न तरीके से होता है। विपरीत दिनों में यहाँ के किसान खाद्यान्न खरीदते हैं।
इतनी बातों से यह स्पष्ट हो गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को ‘आकलन किए गए उत्पादन लागत से डेढ़ गुणा’ कर देने या ऋण जाल में फंसे किसानों को उबार लेने मात्र से काम पूरा नहीं होता है।
बल्कि बिहार सरकार ने कृषि रोड मैप नाम से जो 50 पेज का दस्तावेज बनाकर मुख्य रूप से हर स्तर पर कृषि सहायक मित्रों में तनख्वाह बांटने जैसा सामान्य प्रस्ताव दिया है, यह भी समस्या में खास अन्तर नहीं लाएगा। कृषि उत्पादन वाले इलाकों से बड़े पैमाने पर पलायन यह बताता है कि वहाँ काफी कुछ किए जाने को है और यह सतही रोड मैप से पूरा नहीं होने को है। क्योंकि उित्पादकता बढ़ाने के साथ गाँव की गरीबी, बेरोजगारी और गैर बराबरी जैसी समस्या को संकल्प के साथ हल करना जरूरी है।
प्रथम पंचवर्षीय योजना महज 3000 करोड़ रुपयों की थी। दूसरी योजना के लिए कई गुणा पैसा था। क्योंकि पहली योजना ने कृषि-खाद्यान्न इत्यादि कोर सेक्टर को काफी मदद दिया था। इसके बाद शास्त्री जी और तीसरी बार मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में कृषि क्षेत्र को भारी प्रोत्साहन मिला। और खेती सेक्टर के लोगों ने भी योजनाओं के प्रति उत्साह दिखाया। इस तरह नेहरू, शास्त्री और मोरारजी कार्यकाल और साथ में जोड़ दें, तो कृषि मंत्री रहते हुए जगजीवन राम के दौर में काफी कुछ संभव हुआ है। इस ऊँचाई से आगे बढेंें तो आज कृषि क्षेत्र में सिंचाई की बहुत सारी और बड़ी छोटी परियोजनाओं का तकाजा है। एवरग्रीन रिवल्यूशन का मतलब यह हुआ कि पेस्टीसाइड, खाद-कीटनाशक पर निर्भर नहीं – बल्कि परंपरागत कंपोस्ट-केंचुआ इत्यादि टिकाऊ और देसी परंपरा पर आधारित योजना से कृषि विकास की योजना बनाई जाए।
अंत में, कृषि मसले पर प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप का स्वागत करते हुए यह ध्यान दिलाना जरूरी है कि, योजनाएँ सभी क्षेत्रों को अपने दायरे में न भी लें, परंतु ऐसा भी नहीं हो जो बिचैलियों दलालों में सिमट कर रह जाएं। नदियों के व्यापक नियोजन, नदियों के प्रवाह को खोलते हुए उनकी ताकत से सिंचाई की परियोजनाओं पर ध्यान दें।
‘स्माल इज़ ब्यूटीफुल’ बहुत आकर्षक नारा है, यह रोजगार उन्मुखी विकास का नारा है। इसका हिन्दी अनुवाद ‘समुचित विकास’ किया जाता है। परंतु समुचित विकास का मतलब सही-सही यही है कि ‘हिमालयन्स आर नाॅट अग्ली।’ अर्थात जहाँ जरूरत है बड़ी योजनाएँ दी जाएँ। बड़ी योजनाएँ विस्थापन की कीमत पर न हो। जहाँ विस्थापन हो विस्थापितों के लिए बेहतर जीवन स्तर के साथ प्रचुर व सिंचित जमीन के साथ पुनर्वास हो। इस आधार पर कई बांधों, कई पक्के नहरों, कृषि उत्पादन को सहयोग के टूल उत्पादक कारखानों, खेतिहर उत्पादनों के प्रोसेसिंग के कारखानों के साथ कृषि क्षेत्र में हर साल एक करोड़ मुकम्मल स्वरोजगार की योजना हो। 20 फरवरी, 2018 (आज) की बैठक उल्लेखनीय मानी जाए।