
यह पहली बार है जब अयोध्या मामले से संबंधित एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करने वाली पीठ में कोई अल्पसंख्यक न्यायाधीश नहीं थे
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एनवी रमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ आज अयोध्या मामले के 14 अपीलों पर सुनवाई शुरू करने के लिए तारीख तय करने को बैठी। जब बाबरी मस्जिद पक्ष के वकील राजीव धवन ने बताया कि न्यायमूर्ति ललित इससे संबंधित मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के वकील के रूप में पेश हो चुके हैं, तो न्यायमूर्ति उदय यू ललित ने मामले से खुद को अलग कर लिया। हालांकि, धवन ने स्पष्ट किया कि वह न्यायमूर्ति ललित को इस पीठ से हटाने की मांग नहीं कर रहे हैं लेकिन न्यायाधीश ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
जस्टिस उदय यू ललित अमित शाह के वकील रहे
जस्टिस उदय यू ललित सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनने से पहले गुजरात उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। उन्होंने सोहराबुद्दीन शेख, उनकी पत्नी और तुलसी प्रजापति के कुख्यात फर्जी मुठभेड़ मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का बचाव किया था। मोदी के नई दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद जुलाई, 2014 में वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश बने।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले पैनल ने उनके नाम की सिफारिश की थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह 2 जी घोटाला मामले में भी अभियोजक रहे हैं। ललित महाराष्ट्र के मूल निवासी है और उनहोंने 1983 में अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी। उनहोंने 1986 से 1992 तक पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ काम किया है। उन्होंने सभी आपराधिक मामलों के केस लड़ा है। वह मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी हसन अली खान के खिलाफ अभियोजन पक्ष से थे।
अगली सुनवाई 29 जनवरी को
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बाबरी मस्जिद-राम मंदिर के भूमि विवाद के मामले को स्थगित कर दिया क्योंकि न्यायमूर्ति ललित ने इस मामले से अलग हो गए. अब 29 जनवरी को इस मामले में संविधान पीठ बैठ कर सुनवाई की तारीखें तय करेगी।
धवन ने इस तथ्य पर भी आपत्ति जताई कि यह मामला पहले तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए तय किया गया था, लेकिन सीजेआई ने इसे पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का फैसला लिया। उन्होंने यह भी कहा कि पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ गठित करने के लिए न्यायिक आदेश की आवश्यकता थी।
CJI ने, इस पर जवाब में कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए और इस से संबंधित भरी भरकम रिकॉर्ड को देखते हुए, यह पांच-न्यायाधीशों की पीठ के का उपयुक्त मामला था। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत के नियम इस बात की इजाज़त देती है कि किसी भी पीठ में दो न्यायाधीश शामिल होने चाहिए और पाँच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ के गठन में कुछ भी गलत नहीं है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले– जिसमें यह निर्णय आया था कि विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान था और विवादित 2.77 एकड़ की ज़मीन को तीन भागों में बाँट दिया जाए जिसमें एक एक तिहाई निर्मोही अखाड़ा संप्रदाय, सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड, यूपी, और रामलला विराजमान को दे दिया जाए के खिलाफ उसी वर्ष के दिसंबर से लंबित है।
पिछले साल 29 अक्टूबर को, CJI रंजन गोगोई और जस्टिस एसके कौल और के एम जोसेफ की पीठ ने मामले में अपील की तत्काल सुनवाई के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के वकील के अनुरोध को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। पीठ ने आदेश दिया था कि अपील को “उपयुक्त पीठ” के समक्ष जनवरी के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाए, जिसमें कहा गया था कि वही पीठ सुनवाई की तारीख तय करेगी।
विवाद पर जल्द निर्णय के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा मांग की जा रही थी। राम मंदिर के निर्माण के लिए अध्यादेश लाने की मांग भी इन दिनों तेज़ हुई है।