न्यायमूर्ति गोगोई ने पूछा सवाल- ‘क्या भारतीय आजादी, गरिमा की शर्तों के साथ जी रहे हैं?




(Photo By: HuffPost)

प्रधान न्यायाधीश ने यहां संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम के उद्घाटन भाषण में कहा कि संविधान हाशिए पर पड़े लोगों के साथ ही बहुमत के विवेक की भी आवाज है और यह अनिश्चितता तथा संकट के वक्त में सतत् मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है।

न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘‘क्या हम भारतीय आजादी, समानता और गरिमा की शर्तों के साथ जी रहे हैं? ये ऐसे प्रश्न हैं जिन्हें मैं खुद से पूछता हूं। निसंदेह काफी तरक्की हुई है लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आज हमें सिर्फ जश्न नहीं मनाना चाहिए बल्कि भविष्य के लिए एक खाका तैयार करना चाहिए।’’



उन्होंने कहाकि संविधान‘‘वक्त से बंधा दस्तावेज भर नहीं है’’ और आज जश्न मनाने का नहीं बल्कि संविधान में किए गए वादों की परीक्षा लेने का वक्त है। गौरतलब है कि 26 नवम्बर को हर साल संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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