
किसी मशहूर व्यक्ति ने कहा था कि समाज में बुराई इसलिए नहीं फैलती क्योंकि यहाँ बुरे लोग बहुत हैं बल्कि समाज में बुराई इसलिए फैलती है क्योंकि समाज के अच्छे लोग अपने घरों में बंद रह कर या तो समाज की खराबी पर रो रहे होते हैं या बुरे लोगों को कोस रहे होते हैं. राजनीति का भी यही सत्य है. हम गुंडों मवालियों का राजनीतिकरण होने देते हैं और फिर चाहे अनचाहे वही हमारे आदर्श बन जाते हैं. ईमानदार लोगों की ईमानदारी की चर्चा हम अपने बच्चों और अपने व्याख्यानों में करते हैं ताकि अपने बीच और अपने परिवार के बीच खुद को गौरवान्वित महसूस करा सकें. लेकिन हमारी यह सोच चुनवी मौसम तक बरक़रार नहीं रह पाती.
क्या हम वोट देने से पहले नेताओं का एफिडेविट देखते हैं? क्या 5 वर्ष में हम उनकी आय के अंतर को देखते हैं और पता लगाने की कोशिश करते हैं कि आखिर यह अंतर कैसे हुआ? 5 साल एमपी या एमएलए बनने के बाद उन नेताओं ने क्या व्यापार किया जो उनकी आय में हज़ार गुना का अंतर हो गया? नहीं न? जब तक हम अच्छी राजनीति का हिस्सा नहीं बनेंगे तब तक हम अच्छा समाज नहीं बना सकते. अच्छी राजनीति ही समाज को सही दिशा दे सकती है.
ऐसी ही बात वर्षों से लोगों के साथ करने वाले और उन पर अमल करने वाले लोगों ने मिलकर राजनैतिक पार्टी न्यू भारत मिशन का गठन किया है। न्यू भारत मिशन का गठन बिहार और देश के कुछ ऐसे लोगों ने किया है जिनका पूरा जीवन ही समाज के सबसे निचले पायदान पर रह रहे लोगों के लिए समर्पित रहा. इन्होंने पूरा जीवन अधिकारों की लड़ाई लड़ी और अब अधिकारों को दिलाने के लिए राजनीति का रास्ता चुना है. इन्हीं लोगों में से एक चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी से मेरी मुलाक़ात उनकी पटना के श्री कृष्णा नगर ऑफिस में हुई जब मैं बिहार के इस चुनाव में नए चेहरे पर कुछ लिखने निकला.
बहुत ही सामान्य सा कार्यालय, एक कंप्यूटर, कुछ पर्चे, कुछ लोग और साधारण लिबास में प्रियदर्शी अपनी कुर्सी पर बैठे अपने सहायक को कुछ निर्देश देते मिले. खस्ताहाल कार्यालय से साफ़ ज़ाहिर था कि पैसे की कमी है लेकिन प्रियदर्शी विश्वास से भरे दिखे.
62 वर्ष के अशोक प्रियदर्शी का जन्म पटना में 1958 में हुआ, यहीं बड़े हुए। चार साल स्कूलिंग के अलावा इनका पूरा कार्य काल पटना के बांकीपुर में बिता।
प्रियदर्शी अपने शहर पटना में आम लोगों की असुविधाओ को लेकर बहुत सजग रहते हैं और हमेशा आवाज़ भी उठाते हैं और उन समस्याओं को अपने स्तर पर भी हल करने का प्रयास करते हैं।
JP द्वारा निर्मित निर्दलीय जन आंदोलनों के माध्यम से कार्य करते हुए प्रियदर्शी ने इधर के वर्षों में संसदीय राजनीति के जीर्णोद्धार पर अपना ध्यान लगाया है ।
प्रियदर्शी बताते हैं कि उनका पैतृक गाँव सिवान जिले का गांव सहूलि है। छपरा जिला स्कूल और सहूली हाई स्कूल में मैट्रिक की पढ़ाई करने के बाद पटना कॉलेज में इंटरमीडिएट में 1975 में उनहोंने एडमिशन लिया. मैट्रिक के दौरान ही वे 1974 आंदोलन में शामिल हो गये थे. आपातकाल के दौरान पटना के एक हॉस्टल से गिरफ्तार कर लिये गये. इंटरमीडिएट करने के बाद उन्होंने पटना विवि से ही अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की.

प्रियदर्शी ने बताया कि उनके दो आदर्श रहे. किशोरावस्था में स्वामी विवेकानंद से प्रभावित हुए और आगे चल कर जेपी को अपना आदर्श माना. 75 में जेपी द्वारा स्थापित छात्र-युवा संघर्ष के सदस्य बने और पूरी सक्रियता से संगठन के कार्य में लगे रहे.
1978 बोधगया मठ की जमींदारी के खिलाफ संघर्ष वाहिनी द्वारा शुरू हुए आंदोलन में शामिल होने के बाद से लगातार उस इलाके में सक्रिय रहे. 1994 से तो लगातर इसी कार्य क्षेत्र को अपना कर, स्थानीय नेतृत्व के साथ प्रियदर्शी ने 230 गांव (5 प्रखंड क्षेत्र तक) में आंदोलन की धारावाहिकता को नेतृत्व दिया।

उसके अलावा पचमनिया आंदोलन (मधुबनी), पलामू के भूस्वामियों के खिलाफ और जमशेदपुर के चांडिल डैम (दोनों स्थान अब झारखंड में) के विस्थापन के खिलाफ आंदोलन में भागीदारी निभाने के साथ साथ गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा आदि जगहों में चल रहे वाहिनी के आंदोलनों में भी सक्रिय रहे.
वाहिनी के निर्देश पर इन्होंने असम के छात्र आंदोलन की जायज़ मांगों के समर्थन में असम में भी कार्यक्रम किया. साथ ही एक मसौदा बनाने में योगदान दिया, जो आगे चल कर राजीव गांधी के शासन काल में हुए ‘असम समझौते’ का आधार बना. वीपी सिंह की सरकार के समय वाहिनी की टीम के साथ उपद्रवग्रस्त जम्मू-कश्मीर की भी यात्रा की.

संघर्ष वाहिनी के मुखपत्र ‘प्रक्रिया’ के लेखन प्रकाशन में इनका सक्रिय योगदान रहा. बाद में जसवा के दिनों में ‘जनमुक्ति’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया.
वाहिनी की निर्धारित 30 वर्ष की उम्र सीमा पार करने के बाद वाहिनी के अन्य तीसोत्तर साथियों के साथ मिल कर जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी (जसवा) की स्थापना में इनकी अहम भूमिका रही. जसवा का राष्ट्रीय संयोजक रहते हुए देश स्तर पर सक्रिय रहे, मगर गया जिले में प्राथमिकता देकर काम करते रहे हैं. वहाँ बोधगया आंदोलन की सफलता, यानी हजारों एकड़ जमीन भूमिहीनों के बीच वितरित हो जाने के बाद अन्य भूधारियों की सीलिंग की अतिरिक्त जमीन एवं पर्चा की जमीन पर दलितों-भूमिहीनों को दखल दिलाने और भूमि अधिकार को कानूनी अमलीजामा पहनाने के काम में वे आगे रहे हैं.
वर्ष 2006 में वनाधिकार कानून बनने में सक्रीय भूमिका निभाने के बाद से वह गया जिले के साथ बिहार के अन्य भागों में लोगों को वनाधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ते रहे हैं. वर्ष 2014 से वे इसी उद्देश्य से बांका जिले के आदिवासी बहुल गाँवों में संगठन और आंदोलन खड़ा करने में लगे रहे हैं. कोसी की बाढ़ से तबाह लोगों के पुनर्वास के लिए, चम्पारण जिले में पर्चाधारी लोगों को जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए भी उन्होंने संघर्ष किया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर प्रदर्शन करने के अपराध में उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया.

एक समय नक्सली हिंसा के साथ साथ जातीय सेनाओं द्वारा रचे गये नरसंहारों से त्रस्त बिहार के सम्बद्ध इलाकों में शांति स्थापना और हिंसा के विरुद्ध माहौल बनाने के लिए ‘जन अभियान बिहार’ के बैनर तले लगातार काम किया.
बिहार आंदोलन की उत्तर गाथा का लेखन किया और कई पुस्तकों का संपादन किया।
आज की तारीख में प्रियदर्शी बिहार में जन सरोकार और मानवाधिकार के सवालों पर और हर तरह के अन्याय व उत्पीड़न के खिलाफ बोलने और लड़ने वाले एक महत्वपूर्ण शख्सीयत हैं. कोरोना काल में पूरे बिहार और झारखंड में प्रियदर्शी ने सामाजिक तालमेल बनाकर लाखों लोगों की मदद की. कोरोना काल में झुग्गी झोपड़ियों में पका खाना और राशन का सामान पहुंचे यह प्रियदर्शी की प्राथमिकता रही.
प्रियदर्शी पटना के बांकीपुर विधान सभा से चुनाव लड़ेंगे. प्रियदर्शी के सामने लन्दन से आईं पुष्पम प्रिय चौधरी के अलावा एनडीए और महागठबंधन के अपने अपने उम्मीदवार होंगे.
(नोट: ऐसे ही उम्मीदवारों के साथ आपका परिचय कराते रहेंगे इस चुनाव और आने वाले चुनाव. बस इससे अपडेट रहने के लिए आप हमारे Twitter और Facebook अकाउंट से जुड़ें.)
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