COVID19: विश्व महामारी के दौरान सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे इन्फोडेमिक से बचें




संक्रमण को रोकने के लिए इस तरह से लोग बना रहे हैं दूरी (चित्र साभार: सोशल मीडिया)

कोरोना वायरस से फैले इस विश्व महामारी के दौरान पूरी दुनिया गलत जानकारी की महामारी से जूझ रही है. इस बीमारी से संबंधित गलत जानकारी के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे “जानकारी की महामारी (infodemic) की श्रेणी में रखा है. हमें बीमारी और गलत जानकारी दोनों से ही अभी निपटने की ज़रूरत है.

फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, इन्स्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म जानकरी की विपदा का केंद्र बने हुए हैं. इन प्लेटफ़ॉर्म की वजह से गलत जानकारी बहुत तेज़ी से फैल रही है और यह शहर से लेकर गाँव तक पहुँच रही हैं पढ़े लिखे लोगों से लेकर अनपढ़ और निरक्षर तक वीडियो और अन्य माध्यमों से फैल रही है और इस कारण यह विश्व आपदा सामाजिक आपदा बनता जा रहा है.

बिहार और उत्तर प्रदेश से कई ख़बरें आई हैं जब गाँव वालों ने और यहाँ तक कि घर वालों ने अन्य राज्यों से आए अपने प्रियजन को अपने घरों में प्रवेश नहीं दिया है. इस कारण बिहार सरकार को एडवाइजरी जारी करके उनके रहने का प्रबंध स्कूल और सामुदायिक भवन में करवाना पड़ा. इसी तरह एक ख़बर आई कि पायलट को जैसे पता चला कि उसके जहाज़ में कोई इस वायरस से संक्रमित है उसने खिड़की से छलांग लगा ली. इसी तरह से दिल्ली से ख़बर आई कि जो डॉक्टर और नर्स सरकारी अस्पतालों में काम कर रहे हैं और किराए के मकान में रह रहें हैं उनके मालिक मकानों ने उन्हें घर से निकाल दिया. यह सब कुछ इस लिए हो रहा है क्योंकि हम सोशल मीडिया के माध्यम से गलत जानकारी के चलते दहशत में आ चुके हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक Tedros Adhanom Ghebreyesus ने कहा है कि इस कोरोनावायरस से संबंधित जानकारी की महामारी से निपटने के लिए जल्दी कुछ करना होगा.

इस तरह की जानकारी से महामारी से संबंधित सही जानकारी मात खा रही है और लोगों में भ्रम और डर फैल रहा है. लोगों के अंदर इस बात को लेकर शंका हो रही है कि कौन सी जानकारी सही है और कौन सी गलत. इससे लोगों के बीच नफ़रत फैलाने को भी बल मिल रहा है.

अफवाहें गलत जानकारी को जन्म दे रही हैं. अभी चीन को लेकर एक साज़िश विचार फैल रही है कि यह वायरस चीन के खिलाफ अमेरिका की साज़िश है. कुछ लोग बता रहे हैं कि यह चीन के वुहान शहर के एक चीनी लैब से निकला हुआ वायरस है जिसे चीन ने जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल के लिए स्टोर कर रखा था. ऐसी अफवाहों से चीन और पश्चिमी देशों के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के बीच ताल मेल बिगड़ेगा और हम इस वायरस का इलाज ढूंढ पाने में सक्षम नहीं हो सकेंगे. अभी पूरी दुनिया को एक जुट होकर इसे रोकने की ज़रूरत है और चीन के पास इसका सबसे अधिक अनुभव है.

इलाज से संबंधित गलत, बढ़ा चढ़ा कर किए जाने वाले दावे इस तरह की गलत जानकारी को भी जन्म दे रहे हैं. कोई अदरक, कोई पुदीना, कोई नीबू और कोई महज़ दुआ और हवन से इस भयंकर बीमारी को दूर करने का उपाय बता रहा है. यह सब इस लड़ाई को लड़ने में घातक बनेंगे.

मीडिया अधिकारियों की बात सही तरीके से जनता के बीच नहीं पहुंचा रही है और न ही अधिकारी ख़ास कर भारत में इस बीमारी को लेकर लगातार अपडेट कर रहे हैं. हालांकि देश और राज्यों में इसके लिए हेल्पलाइन हैं लेकिन उस पर हम अधिक ध्यान देने के बजाए व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से ही काम चला रहे हैं.

पंडितों, मुल्लों, पादरियों और नीम हकीम की बातों से वैज्ञानिक बातें या इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की बातों को लोग सुनी अनसुनी कर रहे हैं. इससे भी हम अधिक डरे हुए हैं और वह सब भी कर रहे हैं जो हमें नहीं करना चाहिए और वह नहीं कर रहे हैं जो हमें करना चाहिए.

इस डिजिटल युग की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि अफवाह जब दुनिया भर की सैर करके अपनी जगह लौट आती है तब जो सही लोग़ हैं उनकी तरफ़ से जांची परखी बातें सामने आती हैं और फिर अफवाह या असत्य सत्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का रूप ले लेता है. यही बात नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट के साथ है. जब तक फैक्ट चेकिंग साईट किसी अफवाह या गलत दावे की पड़ताल करती है वह अफवाह पूरी दुनिया घूम लेता है और फिर वह फैक्ट चेकिंग की प्रासंगिकता एक दम थोडा रह जाता है.

व्हाट्सऐप और फेसबुक इस आपदा की घड़ी में धार्मिक द्वेष भी फैलाया जा रहा है. उदाहरण के लिए शाहीन बाग के धरना के बारे में और पटना की एक मस्जिद में कुछ तजाकिस्तान से आए तबलीगी जमात के लोगों बारे में गलत जानकारी फैला कर इस विपदा की घड़ी में जब पूरा देश एक है कुछ नफरत बेचने वाले लोग़ बाज़ नही आ रहे हैं.

शाहीन बाग़ का धरना जनता कर्फ्यू के दिन लगभग समाप्त हो गया था और पूरे देश से इस तरह के धरना प्रदर्शन को स्थगित किया जा चुका था. इसके बावजूद, शाहीन बाग के नाम पर नफ़रत फैलाने का काम ज़ोर पर था.

इसी तरह से पटना के कुर्जी मस्जिद की घटना को ले कर अफवाह का वीडियो लगातार वायरल हो रहा है. वीडियो में बताया जा रहा है कि कुछ चीन के मुसलमानों को मस्जिद में लोगों ने छुपा रखा है. सत्य यह था कि मुस्लिम की तबलीगी जमात के कुछ लोग तज़ाकिस्तान से आए हुए थे और वह 40 दिन पहले वहां से चले थे. पटना प्रशासन ने उनका टेस्ट करवाया और वह सब स्वस्थ्य निकले. बहुत कम जगह इस सत्य की चर्चा हुई जबकि अफवाह पूरा चक्कर लगा चुका. तबलीगी जमात मुसलमानों का एक समूह है जो पूरी दुनिया में मुस्लिमों को धर्म पर चलाने के लिए कम करती है. यह जमात दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक जमात है.

कुछ वीडियो इस तरह के भी दिखाए जा रहे हैं जहाँ कुछ मुस्लिम युवा हाथ मिला रहे हैं और वह कह रहे हैं कि हाथ मिलाने से कुछ नहीं होता है और हम मौत के डर से अपना सुन्नत (हज़रत मुहम्मद का तरीका) नहीं छोड़ेंगे. सत्य इससे उलट है. कई हफ़्तों से मस्जिद में समझाया जा रहा है और यह बताया जा रहा है कि सरकार की एडवाइजरी पर पूरी तरह से अमल करना है. जनता कर्फ्यू में इस अनुशासन को देखा भी गया.

सोशल मीडिया की गलत जानकारी का असर गहरा इसलिए भी है क्योंकि इसमें पूर्वाग्रह के आधार पर सत्य को स्वीकार और अस्वीकार किया जाता है. अर्थात यदि किसी मामले में कोई अन्य समुदाय शामिल है और वह उसे बदनाम करने के लिए काफी है तो उसे आगे तेज़ी से बढाया जाता है बगैर जाने कि इसका आगे प्रभाव क्या होगा.

इन सब खराबियों के बावजूद सोशल मीडिया का अपना योगदान है. इसी सोशल मीडिया का उपयोग करके चीन के एक डॉक्टर ली वेन्लियांग ने इसके सबसे पहले केस को उजागर किया था. चीनी सरकार ने उन पर इस काम के लिए सख्ती भी बरती थी और बाद में उनकी मौत हो गयी.

सोशल मीडिया पर अभी समाज में इस वायरस को लेकर सही जानकारी का भी प्रसार हो रहा है और लोग एक दुसरे की मदद करने में सक्षम हो पा रहे हैं.

बस ज़रूरी यह है कि सोशल मीडिया को लेकर हम ज़िम्मेदार बनें. इसका सदुपयोग करें. सही जानकारी को ही जांच कर फॉरवर्ड करें. किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर जानकारी का आदान प्रदान न करें. एक दुसरे की सहायता करें और इन्फोडेमिक से खुद को बचाएं.

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