
पटना : इन दिनों बिहार में सवर्णों को लेकर राजनीति दावपेंच तेज़ हो गई है। बिहार में कांग्रेस ने 26 वर्षों के बाद किसी ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया हैं।
पिछड़ों की राजनीति करने वाली पार्टी आरजेडी एक ब्राह्मण को राज्यसभा भेजती है, तो दूसरी तरफ जनता दल-यू में हाल ही शामिल प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भविष्य बताते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र के बाद मदन मोहन झा पहले ब्राह्मण प्रदेश अध्यक्ष हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा और जदयू ने अलग अलग चुनाव लड़ा था। जदयू ने छह अति पिछड़ों के अलावा सात यादव और छह कुशवाहा, दो वैश्य और 10 सवर्ण उम्मीदवारों को उतरे थे। पार्टी ने पांच सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को जगह भी दिया था। इसी तरह महादलित तबके के पांच और दलित वर्ग से एक उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा था। मध्य बिहार, पुराना शाहाबाद और सारण और चम्पारण के इलाके में भी अति पिछड़ी और दलित वोटों की बहुलता मानी जाती है। इस बार के 2019 लोकसभा चुनाव में भी इस क्षेत्रों को लेकर सभी पार्टियां अपनी रणनीति अभी से तैयार करनी शुरू कर दी है।
माना जा रहा है कि सर्वण वोटरों को आगामी लोकसभा चुनाव में अपने पाले में लाने के लिए ये कवायद की जा रही है।