रेप रोकने के लिए कानून का तेज़ और त्रुटिरहित क्रियान्वयन, समाज को पितृसत्तात्मक सत्ता से मुक्ति और घर में संस्कार निर्माण महत्वपूर्ण




 

द मॉर्निंग क्रॉनिकल ने आए दिनों हो रही बलात्कार की घटनाओं के मद्देनज़र लोगों से राय मांगी। इसमें विभिन्न धर्मों के जानकार और नारीवादी सब की राय पर लेख तैयार किए गए। हमारा मानना यह है कि हमें इस कुकृत्य को रोकने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे।

इस श्रृंखला में हम हिन्दू धर्म के जानकार और सामाजिक मुद्दों से सरोकार रखने वाले मार्कंडेय साहब, इस्लाम धर्म के ज्ञाता और संस्कृत के विद्वान हाफ़िज़ शानुद्दीन साहब,  ईसाई धर्म के जानकार फ़ादर फ़िलिप मंथरा और नारीवादी नीलू रुपेश से बात की। उनके विचारों को हम यहाँ प्रत्येक शनिवार क्रमवार प्रस्तुत करेंगे।

इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हाफ़िज़ शानुद्दीन साहब के विचार प्रस्तुत किए गए थे। इस कड़ी नारीवादी नीलू रुपेश के आप तक लाए जा रहे हैं। विचार बिलकुल व्यक्तिगत हैं और समाधान से समाज को अवगत कराना हमारा मात्र उद्देश्य है।

-नीलू रुपेश

इन दिनों समाज में बढ़ती दुष्कर्म की घटनाओं को रोकने के लिए कानून का तेज़ और त्रुटिरहित क्रियान्वयन ज्यादा अहम है इससे कि हम नया कानून बनाएं, कानून में संशोधन करें और दुष्कर्मियों को फांसी की सज़ा दें। दुष्कर्मियों को फांसी की सज़ा देने से पीडीता की हत्या और निर्दोषों को बली का बकरा बनाने का चलन बढेगा। कानून में फांसी की सज़ा का पहले से प्रावधान है। अगर आपको याद हो तो कोलकाता में वर्षों पहले एक फांसी की सज़ा हुई भी है लेकिन उससे अपराध नहीं रुका।



आज सत्ता में बैठे लोग ही दुष्कर्मियों को सज़ा न हो इसके लिए प्रयासरत रहते हैं। सत्ता में बैठे लोगों को पहले इस बात को समझना चाहिए। यह सब इसलिए होता है क्योंकि पूरा समाज ही पितृसत्तात्मक है। हम घर में शुरू ही दिन से बेटों और बेटियों के बीच कार्य का बँटवारा कर देते हैं। बेटा यह काम करेगा और बेटी यह काम करेगी। बेटा ऐसे रहेगा और बेटी ऐसे रहेगी। आम तौर पर, दुष्कर्म का कारण लड़कियों या औरतों का अंग प्रदर्शित करने वाले कपड़ा पहनना बताया जाता है लेकिन अभी के घटनाओं में 4 साल, 8 साल की लड़कियों के साथ जिस तरह से हरकतें हुईं हैं इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि इसका कपड़ों और लड़कियों के स्टाइल से कोई लेना देना नहीं है. यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि हम अपने घरों में बेटियों को तो यह बताते हैं कि तुम्हें अच्छी बेटी बनना है, अच्छी बीवी बनना है, अच्छी माँ बनना है लेकिन लड़कों को यह शिक्षा नहीं दी जाती कि तुम्हें अच्छा भाई बनना है, अच्छा पति बनना है, अच्छा बाप बनना है. हमें लड़कों में यह संस्कार विकसित करने होंगे और यह पहले दिन से करने होंगे.

एक और धारणा यह है कि इसमें नफ़रत का दख़ल है. मैं ऐसा नहीं मानती. अभी जो भी रेप हुए हैं उनमें अधिकतर ऐसे हैं जिनमें पीडीता और आरोपी दोनों एक ही धर्म के हैं. इसलिए इसे नफ़रत मानसिकता की उपज नहीं कहा जा सकता.

इन घटनाओं को कम करने का एक मात्र उपाय यही है कि ऐसा करने वालों के मन में भय डाला जाए और यह तभी हो सकता है कि ऐसे मामलों के लिए अलग अदालतें हों, जजों की नियुक्ति हो और इस पर जल्दी और बिना किसी त्रुटि के अमल हो.

(नीलू रुपेश सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं. यह आलेख उनसे द मॉर्निंग क्रॉनिकल के प्रतिनिधि की बात-चीत पर आधारित है.)

Liked it? Take a second to support द मॉर्निंग क्रॉनिकल हिंदी टीम on Patreon!