
-समीर भारती
एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर रविश कुमार को रमन मैगसेसे पुरस्कार मिला. रविश को यह पुरस्कार तब मिला जब आज़म खान को लेकर, जय प्रदा को लेकर, ज़ोमेटो को लेकर स्टूडियो में क्रांति चल रही है. रविश कुमार ने वह सब सत्य दिखाया जो आम आदमी को जानना ज़रूरी था. रविश कुमार ने बैंककर्मियों के दर्द को खूबसूरती से बयान किया. उनहोंने नोटबंदी के हालात को गाँव गाँव और शहर शहर जाकर जग ज़ाहिर किया. रविश ने बेरोज़गार युवाओं का हाल लोगों तक पहुँचाया. अगर रविश जैसे पत्रकार न होते तो हम केवल यही जान पाते कि मोदी की माँ उन्हें आज भी अपने म्यूजियम से निकालकर चवन्नी (एक रुपया चार आना) देती हैं और प्रधानमंत्री के आम खाने का तरीका मंगल ग्रह वासियों की तरह नहीं है. हम सिर्फ यही जान पाते कि 10 लाख का सूट पहनने वाला प्रधानमंत्री फकीरी में जी रहा है.

इस बधाई के पात्र रविश तो हैं ही लेकिन इसके पात्र एनडीटीवी के मालिक प्रणव भी हैं जिन्होंने रविश को बाहर का रास्ता नहीं दिखाया वरना आप तो थापर, नकवी, वाजपयी और अभिसार की कहानी जानते ही हैं.
रेमन मैगसेसे पुरस्कार ऐसे ही लोगों को दी जाती है जो समाज की भलाई करते हैं. इस पुरस्कार का रविश को मिलना अद्भुत है. रविश बेजुबान के जबान बने यह खुद मैगसेसे की जूरी ने कहा. इससे साबित होता है कि दुनिया की नज़र भारत पर है. इससे यह भी साबित है कि भांड आपको एंटरटेन तो कर सकता है वह किसी पुरस्कार का अधिकारी नहीं हो सकता. गौरी लंकेश और दाभोलकर को भी मरणोपरांत कुछ पुरस्कार मिलने चाहिए. रेपिस्ट राम-रहीम को जेल पहुँचाने वाले छत्रपति को भी मरणोपरांत पुरस्कृत करने की कोई योजना बननी चाहिए.
मुद्दों का मुद्दा
आज मुद्दे सवाल नहीं सवाल यह है कि आज मुद्दों को मुद्दा नहीं बनाया जा रहा है. मैगसेसे ने इसकी अहमियत समझी. अभी ज़ोमेटो की चर्चा चल रही है. भांड मीडिया अपने रिपोर्टर को रेस्तरां में माइक लेकर भेज रहे हैं और उनसे पूछा जा रहा है कि क्या वह कोई मुस्लिम के खाना बनाने या सर्व करने पर खाना खाएगा. ऐसी ही भांड मीडिया के एक रिपोर्टर ने एक शख्स से पूछा कि क्या वह किसी मुस्लिम के हाथ का खाना खाएगा तो उसे बड़ा धक्का लगा होगा जब उसने बताया कि वह हिन्दू नहीं मुस्लिम है और वह हिन्दू होटल में खा रहा है.
कुछ दिनों पहले पटना की एक घटना को पूरी भांड मीडिया प्रचारित कर रही थी कि मुसलमानों ने एक हिन्दू के घर पथराव कर दिया. बाद में कुछ अच्छे लोगों ने कहा कि नहीं वहां दोनों पक्ष के लोग हिन्दू ही थे. पता नहीं यह अफवाह कहाँ तक गयी होगी और क्या क्या रंग लाई होगी.
अभी संसद में आज़म खान के एक बयान को लेकर खूब हल्ला मचा. आज़म खान को माफ़ी मांगनी पड़ी. संसद की वह प्रोसीडिंग देखने लायक है जब आज़म खान ने रमा देवी पर एक बयान दिया जो सन्दर्भ के हिसाब से बेहतरीन सेंस ऑफ़ ह्यूमर होता. लेकिन सेंस ऑफ़ ह्युमर और नफरत साथ साथ नहीं रहती. संसद की बहुमत ने शातिराना ढंग से इसे इतना फैलाया कि उन्नाव में तड़प रही दो लाशों की आह दब गयी और जिंदगी और मौत से जूझ रही दो जिंदगियां किसी को याद ही नहीं रही. देश के सुप्रीम कोर्ट ने देश की लाज बचा ली वरना देश की अर्थव्यवस्था औरतों की इज्ज़त के बगैर भी कई ट्रिलियन डॉलर की हो ही जाती.
तीन तलाक़ के मामले को इतना उछाला गया कि UAPA कानून पर चर्चा ही नही हो सकी. UAPA जैसा खतरनाक बिल पास हो गया. अब आने वाले दिनों में कुरान और दास कैपिटल रखने के आधार पर भी आपको आतंकी साबित किया जा सकता है. अब मैक्सिम गोर्की की माँ भी शायद न पढ़ी जा सके. अब सरकार को एक लिस्ट जारी कर देनी चाहिए कि कौन सा सहित्य घर में रखना है कौन सा आतंक को प्रोत्साहन देने वाला हो सकता है.
शायद ही आपमें से बहुत लोगों को इस बात की खबर हो कि संसद ने नेशनल मेडिकल कमीशन बिल (NMC Bill) पारित कर दिया. इसके विरोध में पूरे देश के डॉक्टर हड़ताल पर हैं. क्या आप ने Zee TV और Republic TV पर देश के अस्पतालों की कोई दुर्दशा की रिपोर्ट देखी? दो दिनों से अस्पतालों की इमरजेंसी तक ठप है. ICU में डॉक्टर नहीं हैं. सैकड़ों लाशें रोज़ निकल रही हैं. आज अपने अपने अख़बारों की हेडलाइन देख लीजिए. आज की प्रमुख खबर यह है कि “सावधान…! अमरनाथ यात्री और पर्यटक कश्मीर से जल्दी निकलें”. यह देश के बड़े समाचारपत्रों का हाल है. इसी अख़बार में आप ढूंढ कर बताइए कि कल देश के कितने अस्पतालों में इस हड़ताल को लेकर कितनी मौतें हुईं. यह पहेली आप नहीं बूझ सकते हैं. इन्हीं अखबारों के कुछ दिन पहले के संस्करण देखिए जब कोलकाता के एक अस्पताल की घटना को लेकर देश के कुछ हिस्सों में डॉक्टर हड़ताल पर गए थे.
देश में मुद्दे का संकट ही आज का असल मुद्दा है. इनसे आपने निपट लिया तो आप समझ जाएंगे कि रेमन मैगसेसे रविश को क्यों मिला?
मैगसेसे को बधाई. एनडीटीवी को बधाई और रविश को ढेरो बधाई!