
फ़हमीना हुसैन, The Morning Chronicle
सालों से जाति के जंजीर में बंधे दलित, मुक्ति की चाह में हिंदू धर्म को त्याग कर अंबेडकर की तरह बौद्ध धर्म अपना रहे हैं। ठीक ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश के शामली जिले हुआ है जहाँ एक समारोह में 25 दलितों ने बौद्ध धर्म अपना लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके समुदाय के साथ भेदभाव किया जाता है।
केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से देश भर में गौरक्षा के नाम पर मुसलमानों और दलितों पर हमले बढ़े हैं यहाँ तक की जातिगत एवं साम्प्रदायिक तनाव की कई घटनाएं घटीं हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि इस सरकार के पहले स्थिति बहुत बेहतर थी। समाज में जातिगत भेदभाव, सवर्ण जातियों में दलितों के प्रति स्वाभाविक रूप से हिकारत और नफरत का भाव हमेशा से देखने में आया है। हालांकि इस सामाजिक भावना को ख़त्म करने के लिए कई अभियान और सामाजिक कार्यकर्त्ता लगे हैं।
उत्तर प्रदेश के शामली जिले ने धर्म परिवर्तन करने वाले दलित नेता देवदास जयंत समाचार पीटीआई से अपने बयान में कहा कि उन्होंने समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव और अत्याचार के कारण यह कदम उठाया। बौद्ध भिक्षु भंते प्रज्ञाशील ने धर्म परिवर्तन का कार्य संपन्न कराया ।
श्रेत्रीय अधिकारी राजेश कुमार तिवारी ने बताया कि समारोह का आयोजन किसी दबाव में नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि सभी को उनकी पसंद का धर्म अपनाने की स्वतंत्रता है।
ये कोई पहली या दूसरी घटना नहीं है बल्कि इससे पहले गुजरात के ऊना जिले में इसी साल 2018 के अप्रैल में एक हजार से ज्यादा दलितों हिन्दुओं ने बौद्ध धर्म अपना लिया। रिपोर्ट के मुताबिक दलित परिवारों के इस धर्मांतरण मौके पर भाजपा के दलित विधायक प्रदीप परमार भी मौजूद थे। इसे 2013 में जूनागढ़ के बाद सौराष्ट्र इलाके का दूसरा सबसे बड़ा धर्मांतरण बताया गया था।
इतना ही नहीं मार्च 2018 में कर्नाटक के कलबुर्गी जिले में भी दलित परिवारों ने भी बौद्ध धर्म अपना लिया था। इसमें लगभग 60 परिवार शामिल थे। इन परिवारों ने भी धर्मांतरण की वजह ऊंची जाति के हिंदुओं से मिलने वाले अपमान और प्रताड़ना को प्रमुख वजह बताया था।
आकड़ों की बात करें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2007 और 2017 के बीच दस सालों के दौरान दलितों के प्रति अपराधों में 66 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और दलित महिलाओं पर होने वाले बलात्कारों की संख्या दो गुनी। वहीँ इसके प्रतिक्रिया के पहलूँ पर जाएँ तो पिछले एक साल से इसकी अभिव्यक्ति धरनों, प्रदर्शनों और आन्दोलनों के माध्यम से हो रही है। इसका यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर रावण और गुजरात में जिग्नेश मेवाणी इसी प्रक्रिया के दौरान युवा दलित नेता मुखर उदहारण हैं।