डिअर ट्विटर, निष्पक्षता का मतलब प्रगतिशीलता का विरोध नहीं होता




ट्विटर के सह-संस्थापक और सीईओ जैक डोर्से की तस्वीर जिसमें लिखा है "ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को ख़त्म करो"

-मनीष शांडिल्य

क्या ट्वीटर संयुक्त राज्य अमेरिका या दुनिया के किसी हिस्से में नस्लवाद समाप्त करने की मांग पर इसी तरह की प्रतिक्रिया देगा क्यूंकि दुनिया में तो ऐसे भी अनगिनत लोग होंगे जो नस्लवाद का समर्थन करते होंगे. गौरतलब है कि सामाजिक वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह दुनिया के कई हिस्सों में नस्लवाद है उसी तरह भारत में ब्राह्मणवाद से प्रेरित जातिवाद है.

Smash Brahmanical Patriarchy यानि ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को ख़त्म करो का नारा लिखे एक पोस्टर अपने हाथों में लेकर ट्विटर के सह-संस्थापक और सीईओ जैक डोर्से ने तस्वीर खिंचवाई तो सोशल मीडिया पर हंगामा हो गया. विवाद इतना बढ़ा कि #Brahmins और #BrahminicalPatriarchy हैशटैग वाले हज़ारों ट्वीट किए गए. इस पोस्टर को आपत्तिजनक और हेट स्पीच का उदाहरण बताते हुए ट्वीट किये गए. ऐसे ट्वीट करने वालों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू से लेकर इनफ़ोसिस के पूर्व अधिकारी टीवी मोहनदास पाई तक शामिल थे.



इन ट्वीटस से पैदा हुए दवाब में ट्विटर को सफ़ाई तक देनी पड़ी. इतना ही नहीं इसके बाद ट्विटर की लीगल हेड विजया गड़े ने ट्वीट करके माफ़ी भी मांगी. उन्होंने कहा, “मुझे इसका बहुत खेद है. ये हमारे विचारों को नहीं दर्शाता है. हमने उस तोहफ़े के साथ एक प्राइवेट फ़ोटो ली थी जो हमें दिया गया था. हमें ज़्यादा सतर्क रहना चाहिए था. ट्विटर सभी लोगों के लिए एक निष्पक्ष मंच बनने की पूरी कोशिश करता है और हम इस मामले में नाकाम रहे हैं. हमें अपने भारतीय ग्राहकों को बेहतर सेवाएं देनी चाहिए.”

ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के मायने क्या हैं?

ट्विटर के कदम की पड़ताल करने से पहले संक्षेप में समझा जाए कि ब्राह्मणवादी पितृसत्ता क्या है? पितृसत्ता वो सामाजिक व्यवस्था है जिसके तहत जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों का दबदबा क़ायम रहता है. फिर चाहे वो ख़ानदान का नाम, उनके नाम पर चलना हो या सार्वजनिक जीवन में उनका वर्चस्व. दरअसल पितृसत्ता दुनिया के लगभग हर कोने में मौजूद है लेकिन उसकी वजहें अलग-अलग हैं. भारत में स्थापित पितृसत्ता की एक बड़ी वजह ब्राह्मणवाद है.

भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति और जाति-व्यवस्था कैसे एक दूसरे से गुंथे हुए हैं. स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व को धर्म और धर्म की व्याख्या करने वाले ब्राह्मण स्वीकार नहीं करते. वे शास्त्रों के हवाले से बताते हैं कि लड़की को पहले पिता, फिर पति और बाद में बेटों के संरक्षण में रहना चाहिए. मोटे तौर पर इसी व्यवस्था को वे ब्राह्मणवादी पितृसत्ता कहते हैं.

यह भी समझने की जरुरत है कि ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और ब्राह्मणवादी विचारधारा सिर्फ़ ब्राह्मण समुदाय में मौजूद नहीं है. ये दूसरी जातियों और यहाँ तक कि दलितों में भी है. ब्राह्मणवादी मानसिकता लगभग हर एक को ये अहसास दिलाती है कि तुम्हारे नीचे भी कोई है. ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता’ एक विचारधारा है और इसके विरोध का मतलब ब्राह्मण समुदाय का विरोध नहीं है.

और एक बराबरी वाला समाज बनाने के लिए ब्राह्मणवादी पितृसत्तासहित ब्राह्मणवाद पर आधारित हर ढांचे को ख़त्म किया जाना ज़रूरी है.

ट्विटर का विरोध अब ज्यादा जरुरी

ऐसे में ब्राह्मणवादी पितृसत्ता जैसे स्पष्ट रूप से दमनकारी सामाजिक व्यवस्था को ख़त्म करने की मांग का विरोध न केवल हैरत भरा था मगर उससे भी ज्यादा हैरानी भरा रहा इस विचार को ट्वीटर द्वारा विवादास्पद मानना और उसके द्वारा इस पर माफ़ी माँगना. ट्वीटर का कदम बताता है कि उसकी भारत की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था की समझ अधूरी है, नहीं तो दमनकारी ब्राह्मणवादी पितृसत्ता ख़त्म करने की मांग पर वह माफ़ी नहीं मांगता बल्कि इसके साथ खड़ा होता.



क्या ट्वीटर संयुक्त राज्य अमेरिका या दुनिया के किसी हिस्से में नस्लवाद समाप्त करने की मांग पर इसी तरह की प्रतिक्रिया देगा क्यूंकि दुनिया में तो ऐसे भी अनगिनत लोग होंगे जो नस्लवाद का समर्थन करते होंगे. गौरतलब है कि सामाजिक वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह दुनिया के कई हिस्सों में नस्लवाद है उसी तरह भारत में ब्राह्मणवाद से प्रेरित जातिवाद है.

इस माफीनामे के बाद अब तो ट्विटर या कहें के इसके वरीय अधिकारियों का जबरदस्त विरोध इस कारण होना चाहिए कि उनके द्वारा कहा गया है कि वे ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को ख़त्म करो’ के विचार से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. निष्पक्षता का मतलब किसी प्रगतिशील विचार से किनारा करना कतई नहीं होता. ट्वीटर की लीगल हेड का बयान दरअसल समानता और महिला विरोधी है.

ट्विटर का यह बयान दिखाता है कि वह शुद्ध रूप से एक व्यावसायिक उपक्रम है और व्यवसाय में दिक्कत होने पर वह सामाजिक-राजनीतिक जिम्मेदारियों से, उस पर मज़बूती से पक्ष लेने से पीछे हट जाता है. ट्वीटर का माफीनामा बताता है कि वह भी ऐतिहासिक तथ्यों पर पकी ज़मीन पर पनपे विचार की जगह भीड़ के शोर-गुल के दवाब में अपनी नीतियाँ और पक्षधरता तय करता है.

ट्विटर की सफाई वाला बयान यह भी बताता है कि उसके सीईओ ने भारत की कुछ महिला पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के साथ बंद कमरे में चर्चा कर बस पीआर का काम किया और सीखा कुछ नहीं. दरअसल इसी बैठक के बाद ट्विटर के सीईओ जैक डोर्से ने एक पोस्टर अपने हाथों में लेकर तस्वीर खिंचवाई तो हंगामा हो गया जिस पोस्टर पर लिखा था #SmashBrahmanicalPatriarchy.

चलिए अंत में इस पूरे प्रकरण पर थोडा सकारात्मक हो लिया जाए. ट्विटर के सीईओ अपने हाथ में Smash Brahmanical Patriarchy का पोस्टर लेकर खड़े हुए तो इससे इतना तो हुआ ही कि यह विचार, इस दमनकारी व्यवस्था की सच्चाई ग्लोबल स्तर पर पहुंच गई. आशा की जानी चाहिए कि बात दूर तलक गई है तो इससे पैदा हुआ दवाब आने वाले दिनों में इस भेदभाव भरे सामाजिक व्यवस्था को ख़त्म करने में सहायक बनेगा.

(मनीष शांडिल्य युवा पत्रकार हैं.)

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