16 को उठाया, 18 को ईनाम घोषित, 20 को लाइव एनकाउंटर में हत्या




Mustakeem's mother Shabana after the encounter in Aligarh on Thursday. (Photo: Gajendra Yadav), The Indian Express

मीडिया माध्यमों में कल 20 सितंबर 2018 की सुबह साढ़े 6 बजे के करीब अलीगढ़ के हरदुआग की मछुआ नहर की कोठी पर दो बदमाशों और पुलिस की मुठभेड़ हुई। नौशाद पुत्र राशिद और मुस्तकीम पुत्र इरफान निवासी शिवपुरी, छर्रा हाल निवासी कस्बा अतरौली जिसमें घायल हुए जिन्हें जिला अस्पताल ले जाया गया और एक अन्य पुलिस कर्मी को घायल बताया गया।

इस मामले में मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए रिहाई मंच ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह मामला राज्य-प्रायोजित एनकाउंटर पॉलिटिक्स का विस्तार है।

वहीं मुठभेड़ में मारे गए युवकों के परिजनों का आरोप है कि उन्हें रविवार को घर से उठाया गया था। इस पूरी घटना के लेकर कुछ सवाल हैं जिन्हें रिहाई मंच ने मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।

1- खबरों के मुताबिक सुबह 6 बजकर 36 मिनट पर एसएसपी के पीआरओ का फोन मीडिया वालों को आया। दोबारा फिर 6 बजकर 59 मिनट पर फोन आया और उनको ले जाया गया। मीडिया को पुलिस द्वारा बुलाने की बात को अलीगढ़ एसएसपी अजय साहनी भी स्वीकारते हैं।

2- मुठभेड़ स्थल के वीडियो और फोटो देखने से कई सवाल खड़े होते हैं। जैसे एसपी सिटी अतुल श्रीवास्तव तीन पुलिस कर्मियों के साथ खड़े होकर फायरिंग कर रहें हैं तो वहीं बिल्कुल पास में पांच अन्य पुलिस कर्मी आपस में बात-चीत की मुद्रा में हैं। जो पुलिस अभ्यास या फिर फोटो सेषन लग रहा है न कि एनकाउंटर।

3- मुठभेड़ जैसी गंभीर कार्रवाई के दौरान क्या मीडिया को बुलाने का प्रावधान है। वहीं दूसरी तरफ यह सवाल है कि क्या मीडिया को सिर्फ पुलिस के एक्षन की वीडियो/तस्वीरें लेनी थी। इस तरह की कारवाई को मीडिया के द्वारा आम जनता में दिखाने की क्या कोई पुलिस की नीति है।

4- पुलिस द्वारा कहा गया है कि यह मुठभेड़ काफी देर तक चली और काफी मशक्कत के बाद उन्हें मार गिराया गया, जबकि घटना की वीडियो फुटेज में बिल्कुल स्पष्ट दिख रहा है कि पुलिस टीम एक साथ एक ही जगह पर खड़ी है और उनमें से एक दो लोग बीच-बीच में फायरिंग कर रहे हैं, जिस तरह से पुलिस टीम के लोग निष्चिंत होकर वीडियो में नजर आ रहे हैं, उससे यह नहीं लगता कि ये कोई एनकाउंटर है बल्कि कोई पुलिस अभ्यास लगता है जहाँ पुलिस टीम के लोग एक साथ इकठ्ठे खड़े हैं।

5- पुलिस की कहानी कहती है कि अलीगढ़ के हरदुआगं की मछुआ नहर की कोठी में छिपकर बदमाष लगातार फायरिंग कर रहे थे। घंटे तक मुठभेड़ चली। इलाज के लिए जिला अस्पताल ले जाया गया। मुठभेड़ में इंस्पेक्टर पाली मुकीमपुर प्रदीप कुमार गोली से घायल हुए। पुलिस का कहना है कि उपचार को ले जाते समय दोनों नाम पते ही बता सके थे। दोनों के सीने में दो गोली मारी गई थी जो आर-पार हो गई। इसकी पुष्टि एक्सरे रिपोर्ट ने की। गोलियों से इनके दिल गुर्दे आदि अंग छतिग्रस्त हो गए थे। ऐसे में इतनी गंभीर स्थिति में कोई बयान संभव प्रतीत नहीं होता बल्कि यह जरुर लगता है कि उन्हें मृत अवस्था में अस्पताल लाया गया था।

6- पोस्टमार्टम के अनुसार दोनों मृतकों को दो-दो गोलियां लगीं थी लेकिन उनके बदन में कोई गोली नहीं मिली है, एक्सरे में भी गोली के आर-पार हो जाने की पुष्टि हुई है। ऐसे में यह गंभीर सवाल उठता है कि क्या वे दोनों पुलिस से छिप नहीं रहे थे अथवा पुलिस को दोनों को ही करीब से निशाना बनाने का मौका था या उनके छिपे होने के बाद भी पुलिस को एकदम ‘श्योर शॉट’ मिल गया था? जबकि पुलिस वाले बाहर खेत से फायरिंग करते हुए नजर आ रहे हैं। दोनों को दो-दो गोलियां लगना और एसओ की टांग में गोली लगना संदेह पैदा करता है।

7- मृतकों के परिजनों के अनुसार उन्हें रविवार (16 सितंबर 2018) को उठाया गया और उनके आधार कार्ड जैसे पहचान पत्र भी पुलिस ले गई। दोबारा उनके घर आकर पुलिस ने पूछताछ की तो परिजनों ने आरोप लगाया कि थाने ले गए थे तो कैसे वो फरार हो गए। उनके अनुसार मृतक पुलिस हिरासत में थे।

8- 18 सितंबर 2018 को एसएसपी अजय साहनी ने प्रेस कांफ्रेंस कर दोनों पर पच्चीस-पच्चीस हजार रुपए ईनाम घोषित किया। वहीं पांच अन्य मुस्लिम युवकों को पुलिस ने गिरफ्तार करने का दावा किया। यहां यह सवाल उठता है कि आखिर साहनी को इतनी जल्दी ईनाम घोषित करने की क्या मंषा यह थी कि अभियुक्त उनके पास थे जिनको दो दिन बाद मुठभेड़ में मारने का दावा किया गया। परिजनों की बात भी इसकी पुष्टि करती है।

9- परिजनों ने उनकी सहमति के बिना पुलिस द्वारा कागज पर अंगूठा लगाने की बात कही है। पुलिस द्वारा आनन-फानन में शव को दफन करने वहीं इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर सवाल उठाने वालों को नोटिस देकर सच्चाई को दफन करने की कोषिष तो नहीं की जा रही है।

10- इस मुठभेड़ में एक अन्य बदायूं निवासी अफसर के फरार होने की बात आई। जिस तरह 18 सितंबर को एसएसपी अजय साहनी ने कुछ को फरार बताया और 20 सितंबर को मुठभेड़ में मारने का दावा किया ऐसे में संदेह है कि अफसर को किसी फर्जी मुठभेड़ या मुकदमें का हिस्सा न बना दिया जाए। वहीं इसी मामले में एक अन्य व्यक्ति नफीस जिसे मानसिक रोगी बताया जा रहा है और मृतक के घर की महिलाओं को पुलिस हिरासत में रखना मानवाधिकार हनन मामले के साथ सवालों और सच्चाई को दबाने की पुलिस की आपराधिक कोषिष है।

11- क्या पुलिस को किसी मामले में वांछित होने से उस व्यक्ति को पुलिस द्वारा मार गिराने का अधिकार मिल जाता है ? जो बार-बार पुलिस कह रही है कि वो अपराधी थे।

आज एसएसपी अजय साहनी ने मीडिया सूत्रों को मुठभेड़ में मारे गए युवकों को स्थानीय नाम, पतों की पुष्टि के तौर पर उन्हें बांग्लादेशी होने की शक ज़ाहिर की है। वहीँ रिहाई मंच ने कहा है कि सवाल उठाने वालों को नोटिस भेजने की बात करने वाले अजय साहनी को बताना चाहिए कि आजमगढ़ में मुकेष राजभर जिसे कानपुर से उठाकर मारा गया था उसके परिजनों ने तो साहनी को सूचना दी थी। निष्पक्ष जांच न्याय का अधार होती है उसकी मांग करने वालों को नोटिस भेजने वाले साहनी के काॅल रिकार्ड से निकलेगी फर्जी मुठभेड़ों की हकीकत। साहनी के अलीगढ़ जाते ही जिन्ना विवाद के नाम पर एएमयू के छात्रों पर लाठी बरसाई गई और अब फर्जी मुठभेड़ को छिपाने के लिए हिंदू पुजारी की हत्या का मामला बनाकर योगी की सांप्रदायिक राजनीति को चारा देने का काम किया जा रहा है।

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