
पाउलो कोएल्हो के मशहूर उपन्यास अल-केमिस्ट का एक मशहूर डायलॉग है जिसमें पात्र कहता है कि अगर आप किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो उसे पूरा करने में पूरी कायनात आपकी मदद करती है. यह डायलॉग शाहरुख़ खान अभिनीत फिल्म ओम शांति ओम से आम लोगों में ज्यादा लोकप्रिय हुआ. ऐसी ही कहानी है केरल के थालासेरी के इस शख्स का जिन्हें बहुत संघर्ष के बाद ऐसी कामयाबी मिली जो करोड़ों भारतवासियों का सपना होता है.
अब्दुल नसर कुछ दिनों पहले ही दक्षिणी केरल के कोल्लम जिला के कलेक्टर बनाए गए हैं. इनकी कहानी उन लाखों भारतियों के लिए प्रेरक हो सकती है जिनकी जिंदगी में मुश्किलें हैं लेकिन हौसले भी हैं. जिनकी जिंदगी में चुनौतियाँ हैं लेकिन साथ ही चुनौतियों से लड़ने का साहस भी है.
अब्दुल नसर का जन्म केरल के थालासेरी में हुआ. उनके सर से उनके पिता का साया तभी उठ गया जब वह 5 साल के थे. छ भाई बहनों को माँ का बस सहारा था. नसर अपनी कामयाबी का पूरा श्रेय अपनी माँ को देते हैं.
“हम बहुत गरीब थे. पिता के जाने के बाद हमारी अम्मा ही हमारे परिवार की एकमात्र सहारा थीं जिन्होंने मुझे अपनी पढाई के लिए प्रेरित किया. वह न होती तो यह सब संभव नहीं था” कलेक्टर बनने के बाद यह सब उनहोंने प्रेस को कहा. उनकी माँ की मृत्यु पांच साल पहले हो चुकी है.
केरल के आनाथालय में प्रारंभिक पढाई
नसर ने केरल के एक अनाथालय में रहकर जीवन के अपने 13 वर्ष पूरे किए. नसर पांच साल के थे तभी उन्हें दारुस्सलाम यतीमखाना (अनाथालय) भेज दिया गया जहाँ से उनहोंने 10वीं तक की पढाई किया.
वह कहते हैं कि पढाई में मेरा मन नहीं लगता था. मैं अक्सर अनाथालय से भाग जाया करता था लेकिन यह सोच कर फिर वापस अनाथालय चला जाता था कि मेरी अम्मा परेशान होंगी. और ऐसा मैंने कई बार किया.
अब्दुल नसर ने अपनी पढाई के लिए होटलों में काम किया. कभी वह वहां बेयरा बने तो कभी सफाई का काम किया लेकिन उनहोंने अपनी पढाई नहीं छोड़ी.
अपने कम आयु में ही उनहोंने पूरे केरल की यात्रा की अपनी पढाई के साथ साथ काम करते रहे.
पढाई न छोड़ने की वजह उनकी माँ रहीं. माँ उन्हें बेहतर भविष्य की योजनाएं उन्हें बताती रही. उन्हें शिक्षा के माध्यम से गरीबी से निकलने की प्रेरणा उन्हें देती रहीं.
दारुस्सलाम से अपनी 10वीं की पढाई ख़त्म करने के बाद वह एक दुसरे अनाथालय त्रिस्सूर के वतनापल्ली अनाथालय गए जहाँ से उनहोंने 12वीं की पढाई की.
वह कहते हैं कि जब मैं पढाई से ऊब जाता था तब मेरी माँ मुझे लालच देती थीं और मैं फिर पढाई की और आकर्षित हो जाता था.
वतनापल्ली इस्लामिया कॉलेज से 12वीं करने के बाद वह बैंगलोर आकर नौकरी दिलाने वाला हेल्थ इंस्पेक्टर डिप्लोमा का एक कोर्स किया. फिर वह वापस जाकर गवर्नमेंट ब्रेनन कॉलेज से इंग्लिश लिटरेचर में बीए किया.
वह कहते हैं कि अपने बीए के दौरान उनहोंने बच्चों को ट्यूशन पढाने. टेलीफोन ऑपरेटर और न्यूज़पेपर वेंडर का काम किया.
स्नातक के बाद नसर ने कोज़हिकोडे के फारूक कॉलेज से एमए और बी. एड की पढाई की.
वह कहते हैं कि वह शुरू में औसत विद्यार्थी की तरह था. फिर मैं सुधरता गया और टॉप रैंकर की श्रेणी तक आ पहुंचा.
हेल्थ इंस्पेक्टर से कलेक्टर तक का सफ़र
1994 में, उनहोंने हेल्थ इंस्पेक्टर के तौर पर केरल के स्वास्थ्य विभाग में नौकरी शुरू की. लेकिन एक ही साल के बाद अपने एक गुरु के कहने पर वह गाँव के ही एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. लेकिन फिर वह अपने पिछले नौकरी में आ गए.
इसी दौरान, केरल स्टेट सिविल सर्विस एग्जीक्यूटिव (डिप्टी कलेक्टर) के लिए उनहोंने आवेदन किया और वह इसके लिए चुन लिए गए.
2006 में वह डिप्टी कलेक्टर के लिए चुने गए. 2015 में उन्हें राज्य का सर्वश्रेष्ठ डिप्टी कलेक्टर का खिताब जीता.
अक्टूबर 2017 को कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय (Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions) द्वारा निर्गत आदेश के अनुसार नसर का पदोन्नति हुआ और वह आईएएस रैंक के अधिकारी बने.
कोल्लम जिला कलेक्टर बनने से पहले, बी अब्दुल नसर केरल सरकार के हाउसिंग कमिश्नर के पद पर कार्यरत थे.