
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (National Statistics Office) ने सोमवार को जीडीपी का आंकड़े जारी किया, जिसमें यह माइनस 23.9 फ़ीसदी रही है. यानी शून्य से 23.9 कम.
अगर इस जीडीपी पर अपने देश का मूल्यांकन करें तो हमारा देश अब विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश की श्रेणी में भी नहीं. वर्तमान जीडीपी के आधार पर इस देश की गिनती अफ्रीका के किसी गरीब देश से ही हो सकती है. ऐसी ही जीडीपी वेनेज़ुएला की आज है जब वहां कुछ ही वर्षों पहले वहां की सरकार ने विमुद्रीकरण किया था.
भारतीय अर्थव्यवस्था में जीडीपी का ऐसा हाल 1979 में हुआ था जबकि तब भी इतना बुरा नहीं था. आज वैसा ही दृश्य एक बार फिर से है. इस जीडीपी की गिरावट का असर रोज़गार, कंपनी के कारोबार और बैंकिंग सेक्टर पर बुरी तरह से होगा. इससे निवेश और खपत दोनों प्रभावित होगा.
नरेंद्र मोदी ने जब मई 2014 में भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ली थी तब देश की जीडीपी 7.2 प्रतिशत थी और यह दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था थी. 1951 से लेकर आज तक भारत की जीडीपी औसतन 6.13 रही है. 2010 में मनमोहन सिंह के दुसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद 11.40 प्रतिशत था. देश की जीडीपी पहली बार 1979 में माइनस 5.20 हुआ था.
जीडीपी का सीधा मतलब देश में होने वाले उत्पादन से है. इस तिमाही में माइनस 23.9 का मतलब है कि इस दौरान उत्पादन नहीं हुआ. बल्कि इस अवधि में जो स्टैण्डर्ड उत्पादन हो रहा था उसमें इतनी कमी आई. उत्पादन न होने का मतलब पूरा बाज़ार ही धराशायी रहा. फैक्ट्री में कुछ न बनने का स्पष्ट मतलब यह है कि उन फैक्ट्री में काम करने वाले करोड़ों मजदूर जिनका नाम सरकार के रोज़गार खाते में मौजूद ही नहीं है बेकार हुए.
पीयूसीएल के महासचिव और अर्थशास्त्री सरफराज़ इस आंकड़े को देश में आर्थिक तबाही का पर्याय मानते हैं. जब उनसे पूछा गया कि -23.9 प्रतिशत का मतलब आम जन जीवन पर असर को लेकर क्या होगा तो उनहोंने कहा कि देश बारूद के ढेर पर आ गया है. बहुत जल्दी ही ऐसी संभावना है कि अपराध बढ़े और इसे नहीं रोका जा सकता है.
उनका कहना है कि जीडीपी का माइनस में चले जाना वैश्विक है. दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था जैसे अमेरिका और फ्रांस की जीडीपी भी माइनस में पहुँच गयी है. लेकिन उन देशों का जीडीपी का नीचे जाना इसलिए उनके लिए घातक नहीं होगा क्योंकि उनकी प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक है जिसे हम अंग्रेज़ी में पर कैपिटा इनकम (per capita income) कहते हैं. इसलिए हम उन देशों की तुलना खुद से नहीं कर सकते.
हम अपनी तुलना बंगलादेश से कर सकते हैं. बंगलादेश की जीडीपी में नकारात्मकता नहीं आई. अब बंगलादेश की जीडीपी क्यों नहीं घटी? इसका साफ़ मतलब यह है कि व्यवस्था को सुचारू रूप से चला कर भी जीडीपी के गिरने को रोका जा सकता था. बंगलादेश ने यह किया जबकि भारत ने नहीं किया.
क्यों नहीं किया के जवाब पर सरफराज़ कहते हैं कि आपकी प्राथमिकताएं ही यह नहीं थीं. हमारे देश की सरकार की प्राथमिकता थी कि किसी तरह से मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बन जाए. राजस्थान में कांग्रेस बिखर जाए. ट्रम्प साहब की मेहमाननवाज़ी हो जाए.
वह कहते हैं कि जब पूरी दुनिया कोरोना से लड़ने की प्लानिंग कर रही थी तब हम दिल्ली में दंगे से जूझ रहे थे. हमारे युवाओं की संवैधानिक मांग को अपराध बता कर जेलों में बंद किया जा रहा था.
यह पूछे जाने पर कि क्या मजदूर के पलायन से भी जीडीपी पर असर हुआ, उनका कहना है कि जब मजदूर आस पास बचे ही नहीं तो उद्योग उत्पादन कैसे करते. सरकार के पास मजदूरों को उनके कार्य की जगह पर रोकने का कोई ठोस उपाय ही नहीं था. लॉक डाउन उतना ही विफल रहा जितना नोटबंदी. न नोटबंदी से काला धन आया और न ही लॉकडाउन से कोरोना भागा.
अब क्या होगा? यह कहना मुश्किल है कि अब क्या होगा. इसे संभालना बहुत मुश्किल है. बेकारी बेतहाशा बढ़ गयी गई है. पैसे लोगों के पास बिलकुल नहीं हैं. अपराध बढ़ता ही जा रहा है. चीन अपना खेल लगातार दिखा रहा है. अगर सीतारमण कह रही हैं कि यह एक्ट ऑफ़ गॉड है तो इसे बचाने के लिए गॉड को ही आना होगा.