बिहार के शह और मात के खेल में जनता ही मात खाती रही है




राजनीति में आज नीतीश कुमार एक गन्दा आदमी कहे जा रहे है। बहुत लोग मेरी इस धरणा से आपत्ति करेंगे। हालांकि नीतीश समर्थक जनता को भी पिछले दिनों उनके शासकीय समीकरण बदलने का खेल गन्दा ही प्रतीत हुआ था।

संसदीय राजनीति की यह एक बेतुकी बात है कि जो सच है वह भी विभाजित सच बन जाता है। नीतीश का सच भी विभाजित है। इस तरह उनके कुकृत्य पर पर्दा डालने वाले लोगों की वजह से नीतीश कुमार पर उँगलियाँ भी उठती रहेंगी और वे आराम से शासन करते रहेंगे।
 


नौकरशाही का इन्हें स्पष्ट सहयोग मिलता रहेगा। क्योंकि भ्रष्टाचार के अवसर बढ़ाने में वो नौकरशाही के बड़े हमदम हैं।

सांप भी नहीं मरे और लाठी भी नहीं टूटे। दरअसल भ्रष्टाचार के संदर्भ में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘जीरो टॉलरेंस’की यही युक्ति है। भ्रष्टाचार भी बदस्तूर चलती रहे – सांप भी नहीं मरे और भ्रष्टाचार के खिलाफ नीतीश दिखलाई देते रहें – उनकी लाठी चमकती रहे।

एक समय था जब दक्षिण बिहार; अब झारखण्ड क्षेत्र में भ्रष्टाचार की संस्कृति ज्यादा गन्दी थी। झारखण्ड बनने के बाद बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार, घोटाला – एस्टीमेट घोटाला इत्यादि कारनामों के साथ नवोदित राज्य प्रशासन दिल्ली के घोटालों से होड़ करने पर था। परंतु नीतीश शासन झारखण्ड को भी, भ्रष्टाचार के मानदण्डों पर नीचा दिखाने वाला शासन बन गया है। बिहार प्रदेश में विकास की दस्तान की अंतरवस्तु है, ठीकेदारी प्रथा। वो सारे काम अबाध चल रहे हैं, जो ठीकेदारों को अनुकूल पड़ता है। ये दलाल वर्ग के साथ-साथ मिलाकर हर स्तर पर एक आबादी को धनाढ्य बनाता है।


सन् 2010 में नीतीश के लिए उगाहे गए पैसों के साथ जब नीतीश के विश्वसनीय सहयोगी पार्टी छोड़कर भाग गए और उन पैसों की सुरक्षा के लिए कांग्रेस में चले गए, तब विधान सभा चुनाव आने ही वाले थे। तब नौकरशाह पूछते थे कि नीतीश के पास चुनाव के लायक पैसे हैं या नही! तब पुल निर्माण निगम आगे आया। जवाहर लाल नेहरू शहरी विकास योजना का बहुत सारा पैसा केन्द्रित रूप से पार्कों पर और पटना के म्यूजियम-II के साथ महंगे कन्वेंशन हॉल पर खर्च करने की योजना बनी। कम-से-कम आठ गुणा ऐस्टीमेट बनाए गए और पेट्टी ठीकेदारों ने अधिकाँश रकम का वारा न्यारा करने में मदद की। (यदि हमें ऊपर-ऊपर से भी जाँच करने चलेंगे तो नीतीश शासन काल में धरे अनेक वैसे मामले उजागर होंगे जैसे एक मामले में तेजस्वी यादव लिप्त थे। भ्रष्टाचार की धार तो शीर्ष से ही चलकर नीचे जाती है। आज इसकी बाढ़ सी आ गई है।)

भ्रष्टाचार के मामले में ‘जीरो टालरेंस’की छवि बनाने में भ्रष्ट लोग भी नीतीश जी की मदद कर सकते हैं। नीतीश की छवि कॉस्मेटिक है। और वास्तविकता भिन्न है। मेदान्ता के मालिक नरेश त्रेहान के साथ आपराधिक तरीके से हाथ मिलाते हुए विधान सभा चुनाव के ठीक पहले नीतीश ने साझा किया था। इस तरह ढीठई और बेशर्मी की, जिस जमीन का शिलान्यास पहले राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने 1978 में ‘जयप्रभा कैंसर-किडनी विशेज्ञता वाले अस्पताल’ के रूप में किया था, उसी जमीन का रिमोट कंट्रोल तरीके से दोबारा शिलान्यास मेदान्ता अस्पताल के रूप में खुद नीतीश ने कर दिया। चुनाव बाद दोबारा जद्दोजहद, विरोध और प्रदर्शनों के बाद भी यह फैसला वापस नहीं लिया गया। बल्कि डेढ़ साल के बाद इस जमीन पर कार्य आरंभ कराने गत वर्ष नीतीश खुद पहुंचे। विरोध कर रहे लोगों को मंच से बुरा भला कहा – उनकी औकात बताई और विरोध कर रहे लोगों को कवर करने को उनकी ओर झुक गई मीडिया पर आक्रमण किया। जिस पर पटना के ‘द टेलीग्राफ’ ने प्रथम खबर के रूप में टिप्पणी की, ‘मिस्टर सीएम, डीसेन्ट इस द ब्यूटी ऑफ़ डेमोक्रेसी’। अखबार ने पूछा की कि क्या अब नरेन्द्र मोदी को दिए गए अपने उलाहना को लेकर नीतीश ग्लानि में हैं। नीतीश जी ‘विरोध् का स्वर, जनतंत्रा का सौंदर्य है!’। यह तब की बात है जब नीतीश जी की सरकार लालूजी के लोगों के साथ चल रही थी।

भ्रष्टाचार का सबसे बुरा असर केन्द्र-राज्य की उन लगभग डेढ़ सौ परियोजनाओं पर पड़ता है जो जनता के सशक्तीकरण-इम्पावरमेंट के नाम पर हैं। ऐसी परियोजनाओं से गरीब वर्ग का शत्रु-वर्ग इम्पावर्ड-शक्तिमान होता है। जिस जनता ने दशकों की लड़ाई से राज्य के सबसे बड़े शत्रु वर्ग-सामंती घरानों को समेट दिया है, उस जनता को दलालों, घुसखोरों के इस नए वर्ग से मात खानी पड़ रही है।

नीतीश शासन प्रेरित इस नव उन्मादी वर्ग ने जनता के लिए कुछ होने देने में बाधा तो डाली ही है, इनकी कमाई में भी लूट मचा रखी है। लूटमार से जो नया वर्ग शक्तिमान हो रहा है, उनकी तादात लाख में है जो करोड़ों लोगों के जीवन और विकास पर कोहरा डाल रहे हैं। भ्रष्टाचार का यह सर्वीकरण नीतीश के नौकरशाहों के कार्य संपादन के तरीके और इनके द्वारा बनाई परियोजनाओं और नीतियों की बनावट में है। इस वर्ग की कमाई से बिहार के सकल घरेलू उत्पाद में दृष्टिगत बढ़ोतरी भी कॉस्मेटिक बन कर रह जा रही है।

बिहार में जनता के सशक्तीकरण के नाम पर लूट से जनता का शत्रु वर्ग ही शक्तिमान हो रहा है। यह वर्ग जनता के खुद के मेहनत से अर्जित रकम की ओर हाथ बढ़ाकर उसे भी लूटता है। इस गरीब प्रदेश में सरकार का निवेश भी इस प्रदेश की अत्यंत छोटी पूंजी में थोड़ी उत्प्रेरण ला देता है। इससे सकल घरेलू उत्पाद बढ़ा हुआ हो जाता है। कई गुणा बढ़ गई सड़कें, कार, रंग-रोगन, चुना-गारा, ठीका-पट्टा के तिलस्म में हम हर स्तर पर भ्रष्टाचार के गुणात्मक रूप से बढ़ने के भुक्तभोगी रहे हैं। यह न्याय के साथ विकास की बात नहीं है। नीतीश के डिजाइन में, भ्रष्टाचार प्राथमिकता में है। अन्याय इसमें निहित है। और कभी-कभी इनके खिलाफ सांप भी न मरे, लाठी भी न टूटे, की तर्ज पर काम होता है।


इसमें भ्रष्टाचार का बढ़ना-ठीका और पट्टा का बढ़ना सन्निहित है। यह अन्यायपूर्ण विकास योजना है। यानी बिहार शासन-प्रशासन में जिस काम में दलाल वर्ग लग जाएगा वह काम बाधा-रहित होगा।

यही वजह है कि वनाधिकार कानून के अमल न होने से एक लाख तक परिवार अपने हक से वंचित हैं। दस-पंद्रह लाख परिवारों ने पिछले तीस वर्षों में ”यह आंकड़ा सरकार की वेबसाइट की वजह से अनिश्चित है” ऑपरेशन दखल देहानी के तहत दावे किए हैं। इन मसलों में – यानी स्टेट-बनाम जनता के मसलों में नीतीश की न्याय के पक्ष में जो भी पहल की है उसे जायज नतीजे तक पहुँचने का जतन नहीं किया है।

मुझे अभी पटना हाईकोर्ट में दाखिल पीआईएल “लोकहित याचिका” संख्या 22366/2014 में अनुकूल फैसला मिला है जो राज्य भर में गैरकानूनी तरीके से खारिज किए गए वनाधिकार के दावों पर हमारे आक्षेप का समर्थन करता है। फैसला दावेदारों को बेदखल करने से मना करता है और यथास्थिति का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को सजा देने की चेतावनी भी देता है। नीतीश कुमार ने वनाधिकार कानून के लिए जब पहल ली थी तब भी अंजनी कुमार सिंह ही मुख्य सचिव थे। अभी भी वही हैं। मुख्य सचिव राज्य स्तरीय वनाधिकार समिति के पदेन अध्यक्ष होते हैं। मुख्यमंत्री न्यायालय के इस फैसले के मद्देनज़र नौकरशाही के नाकारेपन को खुद समझ सकते हैं। जो फैसले के तीन सप्ताह बाद तक कायम है।

यह स्थिति तब भी थी जब लालू जी के परिवार के साथ नीतीश जी का प्रेमपूर्ण रिश्ता चल रहा था। लालू जी ने खुद मुझसे लंबी वार्ता में कहा था कि नीतीश के आगे गठबंध्न धर्म निभाते हुए वो ‘बर्फ की तरह पिघलते’ रहते हैं, और मौन रहते हैं। यह तब कहा था जब मैं जयप्रभा अस्पताल को बचाने हेतु मदद मांगने लालू जी से मिला था। साथ में जयप्रभा अस्पताल बचाओ समिति के सचिव श्री सुनील सिन्हा थे। लालूजी के पिघलते मौन के साथ एक आपराधिक समीकरण निहित था कि उन्होंने अपने दोनों बेटों के लिए ‘कमासुत’ विभाग जोड़ रखा था। बालू माफियाओं से संबंध बनाकर धन-पर-धन बनते जा रहे थे।

100 Bestsellers you can not afford to miss reading

सुशील मोदी ने खुद अपने लोगों के द्वारा जमीन का रीयल इस्टेट वैल्यू देखते हुए फर्जी खरीददारियाँ कर रखी हैं। परंतु लालू परिवार के खिलाफ उन्हें बेटों के मॉल का एक मसला मिल गया। जिसमें सरकारी खर्चे से मिट्टी भरवाई जा रही थी और जिसमें मालिक लालू जी के दोनों बेटे थे। यह पटना का सबसे बड़ा मॉल परिसर बनने वाला था “या है’। सुशील मोदी पर प्रतिआक्रमण में जुबानी जमा खर्च करती राजद ने यह ध्यान नहीं दिया कि वो यह बताना चाहते हैं कि लालू का बेटा आगे माॅल का मालिक भी बन रहा है और बिहार के मुख्यमंत्री पद के भी दावेदार हैं।

मॉल भी चाहिए मुख्यमंत्री पद भी चाहिए। लालूजी के परिवार ने शायद पशुपालन घोटाले से यही सबक ली, क्योंकि छोटी रकम में लालू जी फंस गए तब अब बड़े-बड़े भ्रष्टाचार करके शक्तिमान बनें। ताकि लालूजी के सभी नौ बच्चों के लिए सात पुश्त का खयाल रखा जा सके।

लालूजी की अंतिम मनोकामना दोबारा राज्य का नेतृत्व अपने हाथ में लेना है। वे दोबारा आएंगे इसके प्रति व्यापक आशंका है। क्योंकि लालूजी के निश्चित समर्थक जमात, खुद उनकी जाति के लोग हैं। और यह वास्तविक आशंका प्रायः हर कहीं द्वार खड़ी मिलती है कि धन और जमीन का जितना अधिक हो सके और जितना जल्दी हो सके, हथिया लिया जाए। लूट की दमित आकांक्षा के साथ यह वर्ग किसी एक मौका को अपने पक्ष में बदल देने को जितना बेचैन है उसे समझते हुए लालूजी की इस कामना को प्रायः बिहारवासी नकारेंगे। यही वजह है कि इनके बेटों को बगहा शुरू अभियान में वह उत्साह नहीं मिल रहा है। और तब शरद यादव जैसे पुराने और अपने राज्य मध्य प्रदेश में चुक गए नेता शरद यादव से इतना भर समर्थन की अपेक्षा है कि, 2019 में अपने पुत्र को संसद भवन तक पहुंचा दें।

नीतीश को फिर उल्टी पलटनिया खाकर सत्ता को अपने पास रखने में इसी माह में सफलता मिली है। इन्हें लालू परिवार से और भाजपा से – दोनों ही खेमे से अलग-तरीके का सहयोग मिला है। इस खेल का लाभ लेने वाले और इसके सूत्राधर-सिर्फ नीतीश कुमार हैं। और आज गंदी राजनीति का नया अध्याय रचने वाले निहायत गन्दे राजनेता के रूप में इनकी पहचान छुपी नहीं है।

Buy products from Amazon by clicking this link to support us run this site

नीतीश की तीन-तीन, चार-चार साइरन गाड़ियाँ लेकर और अपने ‘कारकेट’ के लंबे बेड़े और जनता से नित बढ़ाती गई दूरी के साथ राज करते हुए जनता की छाती पर बूट की तरह भारी पड़ रहे हैं। मैंने अभी 9 अगस्त को राज्य के छोटे से जिले औरंगाबाद के कलक्टर को साइरन लगी गाड़ी के स्कार्ट पार्टी के साथ यात्रा करते देखा है। हद की भी हद होती है – यह हद तब तक तोड़ी नहीं जा सकेगी जब तक जनता इसे बर्दाश्त करती रहेगी।

आगे – झूठ का आलम। हिटलर के कर्मी ग्लोबोल्स को मात देने के लिए नीतीश खुद बड़े-बडे़ झूठ बोल रहे हैं। उनका किसी के साथ गठबंधन हो, झूठ बदस्तूर बोलते रहते है। कहा कि बिहार को ‘विशेष राज्य’  का दर्जा दिलाने के लिए दो करोड़ लोगों का दस्तखत जुटाया है। बिहार में कुल परिवारों की संख्या दो करोड़ है। यानी हर गली, हर गांव, हर घर में गए और दो करोड़ दस्तखत जुटाया। मैं गली-गली इस अभियान को ढूंढता रहा। फिर नरेन्द्र मोदी को उनके बयान के लिए नीचा दिखाने हेतु करोड़ में ही डीएनए सैंपल भेजने का झूठा दावा किया गया। फिर नीतीश जी ने चंपारण में हुए सर्वोदय सम्मेलन को नए झूठ के लिए उचित मंच माना – कहा कि चार करोड़ लोग शराब के खिलाफ मानव श्रृंखला बनाने निकले थे “सौ गुणा बढ़ाकर आंकड़ा”।

जयप्रभा अस्पताल के जमीन मेदान्ता को सौंपने के कार्य आरंभ समारोह में लिखित दस सवाल लेकर मैं और पंकज जी खड़े हुए तो उन्होंने आदतन झूठ कह दिया, आपलोग मुझसे मिले क्यों न ही। फिर अपने संबोधन में ही पूछ दिया – ये लोग 74 आन्दोलन में कहाँ थे। नीतीश जी ने सन् 2011 में बारह अक्तूबर को जे.पी. के घर में सभामंच से एलान किया कि वाहिनी के लोगों से वनाधिकार कानून के जीरो क्रियान्वयन के मसले पर मिलना है। तीन साल बाद 2017 के 8 सिंतबर को मिले, तब थोड़े समय जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री थे। उस दिन राज्य के मुख्य सचिव से पैरवी की। दूसरे दिन मुख्य सचिव के साथ हमारी मीटिंग हुई। तभी नीतीश जी ने हमसे यह कहा था कि फिर- मिलेंगे। काम शुरू होकर भी जीरो प्रगति पर रूक गई,  हम मिलने की पेशकश करते इन्तजार करते रहे। फिर कभी हम प्रोटेस्ट करेंगे तो वो झूठ बोल देंगे कि मिले क्यों नहीं।

चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह की सरकारी वैभव के साथ शुरूआत समारोहों में – नया झूठ बोल गए हैं। विश्व के सभी प्रिंट आर्डर से बड़ा, रिकॉर्ड संख्या में गांधीजी पर किताब छापेंगे। अब भाजपा के साथ मिलकर छापें।

लड़ ये लोग रहे हैं – मात जनता खा रही है। शह और मात के ऐसे नायब खेल में सदा से जनता और जनतंत्र मात खाती रही है।

जनता को इस खेल में शामिल होने का कहीं कोई अवसर नहीं रहता है। आप नेतृत्व शून्यता से बिहार को उबार सकते हैं। आज सरकार, राजनीतिक दलों, राज्य प्रशासन की गति दुर्गति यह है कि इसका जनता-बुनियाद-जमीन से संबंध विच्छेद हो चुका हैं। गरीब वर्गों ने देश भर में श्रमशीलता का परचम फहराया है। बिहार के प्रायः सभी दो करोड़ परिवारों से मौसमी पलायन कर, बाहर से लौटे लोग थोड़ी पूंजी, थोड़ी कुशलता, थोड़ी जुगत-उद्यमशीलता लेकर लौट रहे हैं। उन्होंने विकास-व्यापार क्षेत्र के पलायन, और निराशा के वातावरण को छा जाने नहीं दिया। बल्कि विकास का वातावरण बनाए रखा।

नीतीश-मोदी (सुमो) कार्यकाल की भ्रष्टाचार, की गति वैसी ही है जैसा जमीन छोड़ कर थोड़ा ऊपर उठ गए चुंबकीय क्षेत्र बना कर के तेज दौड़ती बुलेट ट्रेन की गति होती है।

लालू प्रसाद के दोनों पुत्र इस जमीन पर नहीं हैं। एक और मौका फिर मिल जाए और धन-धरती के जिस भाग पर उनकी आंख गड़ी है वो उन्हें मिल जाए। इन बातों के जवाब में बिहार के इमानदार नेतृत्व को युक्ति, एकमतता और ऊंचा-स्पष्ट दृष्टिकोण चाहिए।

2019 में जनता बनाम ये सभी पक्ष रहेंगे। लोकसभा चुनाव में जनता के एबेसडर होंगे। चालीस एम्बेसडर इस तरह काम करेंगे कि हम 2020 के विधान सभा चुनाव में संघर्षशील-संगठनों और जनता की शक्ति के साथ मिलकर मुकाबले के लिए तैयार हैं। शह और मात के इस खेल में खबरें बनती रहती हैं। पर खबरदार वो नहीं हो रहे, जो हमेशा मात हो रहे हैं।

अब नीतीश जी पहले की तरह विकास पुरुष की छवि नहीं लौटा सकते। जैसा कि अरुण सिन्हा ने पेंगुइन से प्रकाशित अपनी अंग्रेजी किताब में यह दावा किया कि वे सबसे ज्यादा जनता से मिलने वाले मुख्यमंत्री हैं। इस तरह से दोबारा उन्हें शायद ही नबाजा जाएगा।

अपनी चतुराई, अपने नपफरत के साथ गद्दी पर वे कायम रहेंगे। उन्होंने इस बार शपथ समारोह भी नहीं किया। इस बार उन्हें कहना पड़ा कि लालू-राबड़ी शासन के अंत में पच्चीस हजार करोड़ का राज्य बजट होता था, अब तो एक लाख चालीस हजार करोड़ का बजट बनाते है। उन्हें केन्द्र सरकार से विशेष पैकेज भी मिल रहा है।

इसके पहले सूरते हाल था कि सरकार विरोध की सारी बातें भाजपा के खाते में जमा हो रही थीं। परंतु भाजपा को इतने समय तक का भरोसा नहीं था। अब लालू प्रसाद तेजस्वी या तेजप्रताप के हक में हवा का रूख मोड़ना चाहते हैं।

Buy Kitchen and Houseware products from Amazon by clicking this link to support us run this site

मुझे बिहार के हजारों ईमानदार सामाजिक राजनीतिक कर्मियों से कहने का यह उचित समय जान पड़ता है। इन कर्मियों के बीच में समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है और इनके बीच आपसी साझेदारी की भी अवश्यकता है।

अन्यथा आपकी इमानदारी काफी कम मायने रखती रही है। आपस में मिलकर और दृष्टि संपन्न राजनीतिक पहल पर हमारा आपका विमर्श जरूरी है। इन भ्रष्ट विकल्पों को नकार कर सही राजनीतिक पहल की जरूरत है।

चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी जाने माने लेखक, पत्रकार और सामाजिक और राजनीतिक कर्मी हैं। उपरोक्त विचार उनके निजी हैं उनके अनुभवों को परिलक्षित करते हैं।

Liked it? Take a second to support चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी on Patreon!
Become a patron at Patreon!




2 Comments

  1. Apka lekh iss pahale hi padh chuka hun. content aur vishleshan sahi aur bahut achha hai. Par bhasha aisi hai ki mer alawe kitn log samjheng, nahin maloom.

    • प्रयास करेंगे कि भाषा और सरल हो. आपकी टिप्पणी के लिए आभार!

Comments are closed.