
-समीर भारती
होली आते ही होलिका और प्रहलाद की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल होने लगती है. मूलनिवासी समूह इसका बायकाट शुरू कर देते हैं. मूलनिवासी आन्दोलन से जुड़े लोगों का कहना होता है कि हिन्दू धर्म का यह त्यौहार जो दिखने में रंगों का लगता है असल में खून की होली का त्यौहार है. उनका कहना होता है कि यह होलिका की हत्या का जश्न है. होलिका को आदिवासी अपना श्रद्धेय मानते हैं.
मूलनिवासी साहित्य में होली की कथा
मूलनिवासी साहित्यों में होली मनाना होलिका की मौत का उत्सव है. कहा जाता है कि आर्यों ने इंडिया के एक शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप के राज्य पर हमला किया और वहाँ अपना राज्य और अपनी सभ्यता को स्थापित करने की कोशिश की तो राजा हिरण्यकश्यप ने भी आर्यों की अमानवीय संस्कृति का विरोध किया. राजा हिरण्यकश्यप जो की एक नागवंशी राजा था ने नागवंश के धर्म के मुताबिक़ आर्यों को अधर्मी और कुकर्मी करार दिया तथा आर्यों के धर्म को मानने से इंकार कर दिया. आर्यों ने हर संभव प्रयत्न करके देखा लेकिन उनको सफलता नहीं मिल पाई. यहाँ तक आर्यों के राजाओं ब्रह्मा और विष्णु सहित उनके सेनापति इन्द्र को कई बार राजा हिरण्यकश्यप ने बहुत बुरी तरह हराया. राजा हिरण्यकश्यप इतना पराक्रमी था कि उन्होंने इन्द्र की तथाकथित देवताओं की राजधानी अमरावती को भी अपने कब्जे में कर लिया. जब आर्यों का राजा हिरण्यकश्यप पर कोई बस नहीं चला तो अंत में आर्यों ने एक षड्यंत्रकारी योजना के तहत विष्णु ने राजा हिरण्यकश्यप को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन आर्यों को हिरण्यकश्यप की मृत्यु का कोई फायदा नहीं हुआ क्योकि हिरण्यकश्यप की प्रजा ने आर्यों के शासन मानने से इंकार कर दिया और हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष को राजा स्वीकार कर लिया. आर्यों का षड़यंत्र असफल हो गया था. राजा हिरण्याक्ष भी बहुत शक्तिशाली योद्धा था जिसका सामना युद्ध भूमि में कोई भी आर्य नहीं कर पाया. राजा हिरण्याक्ष के डर से आर्य भाग खड़े हुए. यहाँ तक देवताओं की तथाकथित राजधानी अमरावती को हिरण्याक्ष ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया. हिरण्याक्ष के पराक्रम से डरे हुए आर्यों ने एक बार फिर राजा हिरण्याक्ष को मारने के लिए एक षड्यंत्र रचा. षड्यंत्र को अंजाम देने के लिए हिरण्याक्ष की पत्नी रानी कियादु को मोहरा बनाया गया. विष्णु नाम के आर्य ने रानी कियादु को पहले अपने प्रेम जाल में फंसाया और उसके बाद रानी कियादु को अपने बच्चे की माँ बनने पर विवश किया. विष्णु कई बार हिरण्याक्ष की अनुपस्थिति में रानी के पास भेष बदल बदल कर आता रहता था.
हिरण्याक्ष राज्य के कार्यों में व्यस्त रहता था, जिसके चलते विष्णु और कियादु के प्रेम के बारे राजा हिरण्याक्ष को पता नहीं चला. समय के साथ रानी कियादु ने एक बच्चे को जन्म दिया और बच्चे का नाम प्रहलाद रखा गया. राजा हिरण्याक्ष राज्य के कार्यों में व्यस्त रहते थे इस का पूरा फायदा विष्णु ने उठाया और बचपन से ही प्रहलाद को आर्य संस्कृति की शिक्षा देनी शुरू कर दी. जिसके कारण प्रहलाद ने नागवंशी धर्म को ठुकरा कर आर्यों के धर्म को मानना शुरू कर दिया. समय के साथ हिरण्याक्ष को पता चला कि उसका खुद का बेटा नागवंशी धर्म को नहीं मानता तो रजा को बहुत दुःख हुआ. राजा हिरण्याक्ष ने प्रहलाद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन प्रहलाद तो पूरी तरह विष्णु के षड्यंत्र का शिकार हो गया था और उसने अपने पिता के खिलाफ आवाज उठा दी. इसके चलते दोनों पिता और पुत्र के बीच अक्सर झगड़े होते रहते थे.
उसके बाद आर्यों ने प्रहलाद को राजा बनाने के षड्यंत्र रचा कि हिरण्याक्ष को मार कर प्रहलाद को अल्पायु में राजा बना दिया जाये. इस से पूरा फायदा आर्यों को मिलाने वाला था. रानी कियादु पहले ही विष्णु के प्रेम जाल में फंसी हुई थी और प्रहलाद अल्पायु था. इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से विष्णु का ही राजा होना तय था. आर्यों के इस षड्यंत्र की खबर किसी तरह हिरण्याक्ष की बहन होलिका को लग गई. होलिका भी एक साहसी और पराक्रमी महिला थी. स्थिति को समझ कर होलिका ने प्रहलाद को अपने साथ कही दूर ले जाने की योजना बनाई. एक दिन रात को होलिका प्रहलाद को लेकर राजमहल से निकल गई, लेकिन आर्यों को इस बात की खबर लग गई. आर्यों ने होलिका को अकेले घेर कर पकड़ लिया और राजमहल के पास ही उसके मुंह पर रंग लगा कर जिन्दा आग के हवाले कर दिया. होलिका मर गई और प्रहलाद फिर से आर्यों को हासिल हो गया. इस घटना को आर्यों ने दैवीय धटना करार दिया कि कभी आग में ना जलने वाली होलिका आग में जल गई और प्रहलाद बच गया. जबकि वास्तव में ऐसा नहीं था आर्यों ने प्रहलाद को हासिल करने के लिए होलिका को जलाया था. हिरण्याक्ष को आमने सामने की लड़ाई में हराने का सहस किसी भी आर्य में नहीं था. तो हिरण्याक्ष को छल से मारने का षड्यंत्र रचा गया. एक दिन विष्णु ने सिंह का मुखोटा लगा कर धोखे से हिरण्याक्ष को दरवाजे के पीछे से पेट पर तलवार से आघात करके मौत के घाट उतार दिया. ताकि राजा को किसने मारा इस बात का पता न चल सके. इस प्रकार धोखे से आर्यों ने मूलनिवासी राजा हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के राज्य को जीता और प्रहलाद को राजा बना कर उनके राज्य पर अपना अधिपत्य स्थापित किया.
हम होली अपने महान राजा हिरण्यकश्यप और वीर होलिका के बलिदान को याद रखने हेतु शोक दिवस के रूप मे मनाते थे और जिस तरह मृत व्यक्ति की चिता की हम आज भी परिक्रमा करते है और उस पर गुलाल डालते है ठीक वही काम हम होली मे होलिका की प्रतीकात्मक चिता जलाकर और उस पर गुलाल डालकर अपने पूर्वजो को श्रद्धांजलि देते आ रहे थे ताकि हमे याद रहे की हमारी प्राचीन सभ्यता और मूलनिवासी धर्म की रक्षा करते हुए हमारे पूर्वजो ने अपने प्राणो की आहुति दी थी. लेकिन इन विदेशी आर्यों अर्थात ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रियों ने हमारे इस ऐतिहासिक तथ्य को नष्ट करने के लिए उसको तोड़ मरोड़ दिया और उसमे “विष्णु” और उसका बहरूपिये पात्र “नृसिंह अवतार” की कहानी घुसेड़ दी. जिसकी वजह से आज हम अपने ही पूर्वजो को बुरा मानते आ रहे है, और इन लुटेरे आर्यों को भगवान मानते आ रहे है.
फॉरवर्डप्रेस के एक लेख में होलिका को बहुजन और मूलनिवासी कहा गया है. इस लेख में बेबी सिन्हा कहती हैं कि “होलिका मेरी ही तरह बहुजन थी, मूलनिवासी थी. वह असुर कन्या थी, जिसे वैष्णव आर्यो ने मारा, जि़ंदा जला दिया, फिर हम उसे जलाये जाने का जश्न हर वर्ष क्यों मनायें?”
आज के दिन को राष्ट्रीय मूलनिवासी बुद्धिजीवी संघ होलिका शहादत दिवस के तौर पर हर वर्ष मनाता है.
ब्राह्मणवादी साहित्यों के अनुसार होलिका बुरी औरत और होली बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव
ब्राह्मणवादी साहित्यों के अनुसार होलिका की कहानी बिलकुल उलट है. पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुंचा सकती. किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ. इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है. होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं.होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है.
होलिका की अन्य पौराणिक कथाएँ
इसी तरह पुराणों में एक और कहानी है जो कामदेव से जुडी है. पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी तरफ गया ही नहीं. ऐसे में प्यार के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया. तपस्या भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए. कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई. अगले दिन तक शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित किया. कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है.
होली और महाभारत की कहानी
महाभारत की एक कहानी के मुताबिक युधिष्ठर को श्री कृष्ण ने बताया- एक बार श्री राम के एक पूर्वज रघु, के शासन मे एक असुर महिला थी. उसे कोई भी नहीं मार सकता था, क्योंकि वह एक वरदान द्वारा संरक्षित थी. उसे गली में खेल रहे बच्चों, के अलावा किसी से भी डर नहीं था. एक दिन, गुरु वशिष्ठ, ने बताया कि- उसे मारा जा सकता है, यदि बच्चे अपने हाथों में लकड़ी के छोटे टुकड़े लेकर, शहर के बाहरी इलाके के पास चले जाएं और सूखी घास के साथ-साथ उनका ढेर लगाकर जला दें. फिर उसके चारों ओर परिक्रमा दें, नृत्य करें, ताली बजाएं, गाना गाएं और नगाड़े बजाएं. फिर ऐसा ही किया गया. इस दिन को,एक उत्सव के रूप में मनाया गया, जो बुराई पर एक मासूम दिल की जीत का प्रतीक है.
होली और श्रीकृष्ण और पूतना की कहानी
होली का श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है. जहां इस त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है. वहीं पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा. पूतना स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराती थी. लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए. उन्होंने दुग्धपान करते समय ही पूतना का वध कर दिया. कहा जाता है कि तभी से होली पर्व मनाने की मान्यता शुरू हुई.