गोपनीयता का अधिकार यानि राइट टू प्राइवेसी अब मूलभूत अधिकार: मिलिए इसके सूत्रधार के एस पुट्टस्वामी से




के एस पुट्टस्वामी

गुरुवार, 24 अगस्त, 2017 को सर्वोच्च्य न्यायालय ने गोपनीयता के अधिकार यानि राइट टू प्राइवेसी का जो ऐतिहासिक निर्णय सुनाया वह निर्णय भूतपूर्व न्यायाधीश पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ के आलोक में आया. पुट्टस्वामी ने यह याचिका 2012 में दायर किया था जब यू.पी.ए. की सरकार थी और तब आधार को अनिवार्य बनाने की बात चल रही थी. इस फ़ैसले से आधार की अनिवार्यता कितना प्रभावित होगी उसका निर्णय सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच जल्द लेगी लेकिन इतना तो पक्का है कि इससे भारत के रहने वाले लोगों की निजता भंग होने के ख़तरे में शायद कमी आए. देखना दिलचस्प यह होगा कि भारत जब डिजिटल युग में बढ़ रहा है और व्हाट्सऐप और फेसबुक जिंदगी का हिस्सा बन चुका है तो इस निजता के हनन को कैसे रोका जाएगा. कई सारे प्रश्न हैं जिसका जवाब समय रहते हमें अवश्य मिलेगा. अभी हम यहाँ इस निर्णय के सूत्रधार पूर्व न्यायाधीश पुट्टस्वामी का साक्षात्कार प्रस्तुत कर रहे हैं. इस साक्षात्कार को न्यूज़ 18 की संवाददाता दीपा बालाकृष्णन ने अंग्रेज़ी में लिया है. इस साक्षात्कार को संवैधानिक पीठ द्वारा निर्णय आने से एक घंटे पहले पुट्टस्वामी के बंगलोर आवास पर लिया गया था. प्रस्तुत है उसका हिंदी अनुवाद:

क्या आपको लग रहा है कि आपकी लड़ाई सही थी?

हाँ, मुझे निश्चित रूप से यह लग रहा है कि हमारी लड़ाई सही थी। 8 न्यायाधीश वाले बेंच के फैसले का खंडन (एम पी शर्मा और खरक सिंह के निर्णय का) कोई मजाक नहीं है। यह वास्तव में एक बड़ा निर्णय है। अब गोपनीयता मौलिक अधिकार बन गई है।

क्या आधार प्रभावित होगा?

आधार प्रभावित होगा, लेकिन मैं यह नहीं कह सकता कि कैसे। इसके अपने मापदंड हैं. मुझे नहीं लगता है कि सरकार इसे हल्के में लेगी, वह लड़ेगी। हमें देखना होगा।

गोपनीयता का उल्लंघन करने वाली किसी भी नीति (आधार) को निरस्त किया जा सकेगा?

गोपनीयता आधार से अलग है. यह एक दूसरे पर निर्भर नहीं है. यह जुड़ा हुआ है, लेकिन एक-दूसरे पर निर्भर नहीं है. इसलिए इसका निर्णय इसके अपने गुणों पर किया जाएगा।

यह मामला आपके नाम से दर्ज हो जाएगा, क्या आपको लगता है कि आप इतिहास का हिस्सा हो गए हैं?

मैं और राम जोस, हमने यह [याचिका] दायर की थी। बेशक हमने एक साथ काम किया और उन्होंने बहुत मदद की, हालांकि उन्होंने इसे नहीं दायर किया, इसे मैंने किया. हां, मैं परिणाम से खुश हूँ.

क्या आप को लगता है कि आप अब इतिहास का हिस्सा हैं?

मैं सिस्टम का भी हिस्सा हूं। मैंने इसके लिए भी लड़ाई लड़ी है. इससे सामान्य जनता और खुद की भी भलाई का काम हुआ है. मैं परिणाम से पूरी तरह से संतुष्ट हूँ.

क्या आप इस फैसले से खुश नहीं हैं?

हर कोई इससे खुश है, और वकील या न्यायाधीशों में गलती ढूँढने का कोई मतलब भी नहीं है।

न्यायमूर्ति पुट्टस्वामी कौन हैं?

92 वर्षीय पुट्टस्वामी कर्नाटक उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं, जिन्होंने 2012 में इस मामले को पहली बार दायर किया था। शुरू में वह आधार को आवश्यक बनाने के भी खिलाफ थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि इस यूनिक आईडी का दर असल कोई कार्य नहीं है और यह वोटर आई. डी. और पैन कार्ड जैसे अन्य ID के कामों की ही नक़ल है.

कर्नाटक उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति पुट्टूस्वामी शरीर से कमजोर हो गए हैं लेकिन दिमाग उतना ही अब भी तेज़ है. वह अपने आप को बाखबर रखने के लिए रोज़ाना समाचार पत्र पढ़ते हैं,  हालांकि इसके लिए वह लेंस का इस्तेमाल करते हैं। सुनने में उन्हें थोड़ा कष्ट होता है लेकिन क़ानून और वैधानिक मामलों में वह चुस्त और दुरुस्त हैं. उनका तेज़ दिमाग़ अब भी निर्णयों के प्रभाव को समझता है और वह अब भी न्यायशास्त्र पढ़ने के लिए आतुर रहते हैं।

लंबे समय तक टालते रहने के बाद, आख़िरकार अपने बेटे के साथ पंजीकरण केंद्र पर जाकर जस्टिस पुट्टस्वामी ने कुछ महीने पहले ही आधार का पंजीकरण करवाया. वह कहते हैं उन्हें करवाना ही पड़ा क्योंकि इसे सभी आयकर निर्धारकों के लिए ज़रूरी कर दिया गया है. अब तो मरने के बाद भी मेरा आधार वह मेरे वारिसों से मांगेंगे. मैं रविवार को गया था इसलिए पंजीकरण केंद्र पर भीड़ अधिक नहीं थी लेकिन लगभग आधा घंटा मुझे प्रतीक्षा करना पड़ा और 45 मिनट लगभग प्रक्रिया में लगा.

इस साक्षात्कार को अंग्रेज़ी में न्यूज़ 18 पर पढ़ें.

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