
-मनीष शांडिल्य
पहले करीब डेढ़ महीने तक पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा बिहार एनडीए में सीट-बंटवारे को लेकर खींचतान करते रहे और फिर उपेन्द्र कुशवाहा के एनडीए से अलग होने के बाद इस मोर्चे पर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी यानी लोजपा डट गई. पांच राज्यों के चुनावों में भाजपा को मिली हार के बाद बीते करीब पांच साल से भाजपा के अगुवाई वाले एनडीए के भरोसेमंद सहयोगी दल लोजपा ने भाजपा की चुनौतियों को बढ़ा दिया.
लोजपा ने पहले सीट बंटवारे के लिए 31 दिसम्बर तक का अल्टीमेटम दिया. फिर पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान ने नरेन्द्र मोदी सरकार से कई चुभते सवाल पूछे और सरकार की उपलब्धियों का हिसाब मांगा. इनमें नोटबंदी और रफाल विमान सौदे से जुड़े सवाल शामिल थे जिनको लेकर कांग्रेस मोदी सरकार पर लगातार हमलावर है. इतना ही नहीं एनडीए गठबंधन को नाज़ुक मोड़ पर बताते हुए चिराग पासवान ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ़ की. चिराग ने कहा, ”राहुल के अंदर सकारात्मक बदलाव आया है. राहुल ने किसानों और बेरोज़गारी के मुद्दे को बढ़िया से उठाया है. कांग्रेस लंबे वक़्त बाद जीती है. अगर आप किसी की आलोचना करते हैं तो आपको उनके अच्छे प्रदर्शन की भी तारीफ़ करनी चाहिए. राहुल ने जिस तरह से किसानों और बेरोज़गारी के मुद्दों को जनता के सामने उठाया, वो अच्छा था. जबकि बीजेपी और सहयोगी दल धर्म और मंदिर की बात करते रहे.”
लोजपा के इस तरह तन कर खड़े होने और पार्टी नेताओं के बयानों के तीर ने भाजपा में हलचल पैदा कर दी. पहले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव ने गुरुवार को रामविलास और चिराग पासवान से दिल्ली में मुलाकात की. फिर उसी दिन शाम को ये तीनों नेता भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने पहुंचे. गौरतलब है कि बीते महीने अमित शाह बार-बार मुलाकात का समय मांगे जाने के बावजूद उपेन्द्र कुशवाहा से नहीं मिले थे.
गुरुवार के बाद भी दोनों दलों के शीर्ष नेताओं के बीच बैठकें हुईं और खबरों के मुताबिक भाजपा लोजपा को मनाने में कामयाब रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लोजपा को लोकसभा की छह और एक राज्यसभा सीट देकर मनाया गया है. मगर ये घटनाक्रम बताते हैं कि हालिया संपन्न चुनावों के बाद भाजपा अब पहले जैसी मज़बूत नहीं रह गई है और भाजपा के अन्दर भी हलचल है.
पासवान यूँ बने ‘मौसम वैज्ञानिक’
राजनीतिक गलियारे में रामविलास पासवान को ‘मौसम वैज्ञानिक’ भी बताया-बुलाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि ये पहले ही भांप लेते हैं कि कौन सा दल या गठबंधन जीतने वाला है और फिर उसके साथ ही हो जाते हैं.
ऐसे तो अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में रामविलास पासवान ने कई बार बदलते चुनावी मौसम को सही-सही भांपने का काम किया लेकिन ‘मौसम वैज्ञानिक’ के रूप में वे 2004 में सबसे मजबूती से स्थापित हुए. लोकसभा चुनाव का ये वो साल था जब दो साल पहले गुजरात दंगे हुए थे और भाजपा पर सांप्रदायिक राजनीति करने के आरोप ज्यादा गहरे हो गए थे. तब की अटल बिहारी वाजपई सरकार ने चुनाव में शाइनिंग इंडिया का नारा दिया था. लेकिन, 2004 के चुनावों में इस नारे का क्या अंजाम होने वाला है इसे शायद पासवान पहले ही समझ चुके थे. चुनाव से ठीक पहले पासवान ने गुजरात दंगे के नाम पर एनडीए का साथ छोड़ दिया और फिर वो कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में शामिल हो गए. इसके बाद वह 2004 से 2009 तक यूपीए सरकार में मंत्री पद पर शामिल रहे.
2009 के आम चुनाव में यूपीए का प्रदर्शन बिहार को छोड़ देश भर में पहले के मुकाबले बेहतर रहा. बिहार में रामविलास भी चुनाव हार गए. चुनाव हारने के बाद वे केंद्र और बिहार दोनों की सत्ता से दूर हो गए. 2014 आते-आते तब के लोकसभा चुनावों में नीतीश कुमार के अलग हो जाने के कारण भाजपा को बिहार में गठबंधन की जरुरत थी और राम विलास पासवान भी फिर से सत्ता पाने के मौके तलाश रहे थे. ऐसे में तब, कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए की हालत को देखते हुए पासवान ने फिर से पाला बदला. गुजरात दंगों के चलते अटल बिहारी वाजपेई की अगुवाई वाले एनडीए से अलग हुए पासवान अब नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए में शामिल हो गए जबकि गुजरात दंगों के लिए तब और अब भी आलोचनाओं के केंद्र में नरेन्द्र मोदी ही रहे हैं. 2004 की तरह ही 2014 में भी रामविलास सियासी रुख भांपने में कामयाब रहे और तब से अब तक नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल में सत्ता के भागीदार हैं.
सियासी हवाओं का बदलता रुख समय पर समझने वाले रामविलास अगर अभी भाजपा से सवाल-जवाब कर रहे हैं तो यह इस बात को बताता है कि देश में विपक्ष की ताकत बढ़ रही है और भाजपा संघर्ष कर रही है. मगर ये भी सही है कि अभी ये अनुमान लगाना मुमकिन नहीं है कि 2019 में एनडीए और यूपीए में जीत किस गठबंधन की होगी क्यूंकि चुनाव आते-आते मौसम भी बदलेगा और तब जाकर ही चुनावी फिजा भी साफ़ होगी.