क्या हैं कुशवाहा के नरम-गरम तेवर के मायने?




रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा (फ़ोटो: ट्विटर)

-मनीष शांडिल्य

मुंगेर के पोलो मैदान में रालोसपा द्वारा 24 नवंबर को आयोजित हल्ला बोल दरवाजा खोल कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था, “मैं ईमानदारी से कहना चाहता हूँ कि मैं एनडीए में हूँ और मैं चाहता हूँ कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहें. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा और रालोसपा अपमान सहकर यह काम नहीं कर पाएगा. इसलिए प्रधानमंत्री जी आप सीट शेयरिंग को लेके हस्तक्षेप कीजिए. रालोसपा के साथ जो अपमानजनक व्यवहार हो रहा है उसे देखिए और न्याय कीजिए. मैं समझता हूँ कि प्रधानमंत्री जी ईमानदारी से हस्तक्षेप करेंगे.”

मगर हाल के दिनों में कुछ इसी अंदाज़ में एक-के-बाद-एक कई बार नरेन्द्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने की ख्वाहिश सामने रखने वाले, प्रधानमंत्री से सीट शेयरिंग में हस्तक्षेप की मांग करने वाले उपेंद्र कुशवाहा को प्रधानमंत्री ने मिलने का समय तक नहीं दिया. दूसरी ओर सम्मानजनक सीट बंटवारे के लिए कुशवाहा का अल्टीमेटम भी 30 नवम्बर तक ख़त्म हो चुका है. मगर इस तारीख तक भी भाजपा से कोई जवाब नहीं मिलने के बाद अब तक जो उनके नरम-गरम तेवर नजर आ रहे हैं वे यह इशारा करते हैं कि वे आगे भी मंत्री बने रहते हुए राजनीतिक सौदेबाजी जारी रखेंगे.



अल्टीमेटम खत्म होने के अगले दिन एक दिसम्बर को जब उनसे यह पूछा गया कि पीएम ने उन्हें मांगे जाने के बाद भी मुलाकात का समय क्यों नहीं दिया तो उनका जवाब था, “वजह तो पीएम ही बताएंगे लेकिन दिनकर के शब्दों में कहा जा सकता है कि जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है.”

उनका एक दूसरा बयान यह आया कि नीतीश सरकार अगर उनकी पार्टी की शिक्षा सुधार संबंधी 25 सूत्री मांगों को पूरा करने की घोषणा करती है तो वे अपमान और सीट शेयरिंग को भूला कर उनके साथ रहेंगे. वहीं सोमवार को उन्होंने जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की उसमें उन्होंने सीट बंटवारे की नहीं शिक्षा की बात की. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुशवाहा ने इन आरोपों को ख़ारिज किया कि उन्होंने बिहार में शिक्षा की बेहतरी के लिए कोई काम नहीं किया है और यह आरोप भी लगाया कि बिहार सरकार ने नए केंद्रीय विद्यालय और दूसरे केंद्रीय संस्थान खोलने में मदद नहीं की. इस दौरान बातों-बातों में उन्होंने यह भी बता दिया कि वे मई तक एनडीए सरकार में मंत्री बने रहेंगे यानी कि एनडीए का साथ नहीं छोड़ेंगे.

एनडीए को अब कुशवाहा की जरुरत नहीं

26 अक्टूबर को भाजपा और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्षों यानी कि अमित शाह और नीतीश कुमार ने दिल्ली में एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर बताया था कि 2019 के आम चुनाव में दोनों दल बिहार में बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. इस दौरान अमित शाह ने यह भी कहा था कि जब कुछ नए साथी जुड़ेंगे तो निश्चित तौर पर गठबंधन के सभी पुराने दलों की सीटों में कुछ कमी आएगी.

लेकिन जैसा की अपेक्षित था अपनी सीटों की कमी का यह फार्मूला उपेन्द्र कुशवाहा को मंज़ूर नहीं हुआ. इसके बाद उन्होंने अपनी नाराजगी भी दिखाई और अपने लिए एनडीए में 2014 के मुकाबले ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं. कुशवाहा का दावा है कि 2014 के मुकाबले उनकी ताकत बढ़ी है. कुशवाहा समुदाय यादव के बाद बिहार का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला समुदाय है और उपेन्द्र कुशवाहा खुद को इस समुदाय का एक मात्र नेता मानते हैं. लेकिन भाजपा का मानना है कि उसकी अपनी गोलबंदी और नीतीश का साथ मिल जाने के बाद बिहार एनडीए को कुशवाहा समाज का वोट पाने के लिए अब उपेन्द्र कुशवाहा की जरुरत पहले जैसी नहीं है. प्रधानमंत्री और अमित शाह द्वारा मुलाक़ात का समय नहीं दिया जाना इसी का संकेत माना जा रहा है.

हाल के दिनों में कुशवाहा ने ज्यादा सीट की मांग करते हुए भाजपा की कभी आलोचना नहीं की है लेकिन वे इस दौरान नीतीश सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं. बिहार में एनडीए की वापसी पर सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिलने की कुशवाहा शिकायत करते हैं. कानून व्यवस्था के सवाल पर बिहार सरकार की तीखी आलोचना करते हैं. वे नीतीश सरकार के खिलाफ़ आठ और नौ दिसंबर को उपवास पर बैठ रहे हैं. माना जा रहा है ऐसा कर के वे महागठबंधन में जाने का भी विकल्प खुला रखना चाहते है.



उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बिहार के बाल्मीकिनगर में चल रही है. कुशवाहा के अगले कदम की झलक इस बैठक के फैसलों के आईने में दिख सकती है.

 

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