
–समीर भारती
कल शनिवार को उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अदालत अगर राम मंदिर पर निर्णय नहीं कर सकती तो वह बताए हम इसे 24 घंटों में निपटा लेंगे. स्पष्ट है कि योगी आदित्यनाथ माननीय न्यायालय को चुनौती देने के मूड में हैं और उनका भरोसा माननीय न्यायालय पर नहीं है.
इंडिया टीवी के कार्यक्रम में आए योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि “न्यायालय राम मंदिर मुद्दे का फैसला जल्दी करे और नहीं कर सकता तो हमें सौंप दे, मैं कह सकता हूँ कि चौबीस घंटे के भीतर राम जन्मभूमि से संबंधित विवाद का समाधान कर देंगे.”
कई महत्वपूर्ण घटनाओं से यह जगज़ाहिर है कि भाजपा न्यायालय का सम्मान नहीं करती. पहली बार भाजपा ने न्यायालय और भारतीय संविधान का तब मज़ाक उड़ाया था जब इसने बाबरी मस्जिद ढांचा को गिरा दिया था. तब भाजपा की उत्तर प्रदेश में सरकार थी. दूसरी बार वह तब न्यायालय और भारतीय संविधान का मज़ाक उड़ाती पाई गयी जब वह केरल के सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ही विरोध कर रही है. तीसरी घटना इसमें हालिया सवर्ण आरक्षण को लेकर मोदी सरकार के 10% आरक्षण का भी है. यह भी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 50% से अधिक आरक्षण की व्यवस्था नहीं की जा सकती. भारतीय संविधान में भी आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने संवेदनशील अयोध्या में बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि विवाद मामले में सुनवाई के लिए शुक्रवार (25 जनवरी, 2019) को पांच सदसीय एक नई संविधान पीठ का गठन किया. पीठ का पुनर्गठन इसलिए किया गया क्योंकि मूल पीठ के एक सदस्य न्यायमूर्ति यू यू ललित की निष्पक्षता पर बाबरी मस्जिद के पक्षकार वकील राजीव धवन ने सवाल उठाया था क्योंकि वह इसी मामले में कल्याण सिंह जो बाबरी मस्जिद के आरोपियों में से थे के वकील रहे थे. इस आपत्ति के बाद उनहोंने खुद को इस मामले से अलग कर लिया था. नई पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर को शामिल किया गया है.
मूल पीठ में इस विवादास्पद मामले की सुनवाई में किसी मुस्लिम न्यायमूर्ति के शामिल न करने पर भी मीडिया में सवाल उठाया गया था.
संविधानिक पद पर बैठे आदित्यनाथ की यह धमकी बेहद शर्मनाक है इसके कई मायने निकाले जा सकते हैं. पहला कि योगी आदित्यनाथ माननीय न्यायालय पर एक तरह का दवाब बनाना चाहते हैं. दूसरा यह कि उनका माननीय न्यायालय पर भरोसा ही नहीं है वह अपने तरह से इस मामले को निपटाना चाहते हैं.
सवाल यह भी गंभीर हैं कि अगर न्यायालय ने बाबरी मस्जिद के पक्ष में निर्णय दिया तो क्या वह इसे नहीं मानेंगे. इनके इस ब्यान से लगता तो ऐसा ही है कि योगी न्यायालय से राम मंदिर के पक्ष में फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं और न्यायलय पर ऐसा कह कर दबाव बना रहे हैं.
कानूनी जानकारों का मानना यह है कि योगी का यह ब्यान न्यायालय की अवमाना की श्रेणी में आता है. लेकिन भाजपा के लोग अपने आप को कानून और संविधान से ऊपर मानते रहे हैं. यह पहले भी साबित हो चुका है.
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा के कई बड़े नेताओं पर आरोप न्यायालय में लंबित है लेकिन इनमें से किसी को अभी किसी अदालत ने सज़ा नहीं सुनाई है.
(यह लेखक के अपने विचार हैं)