
“भारत की धरती पर सबसे बड़े उदारवादी महात्मा गांधी थे. उनहोंने ताक़तवर सत्ता की कभी अपेक्षा नहीं की थी. ताक़तवर सत्ता नागरिकों के लिए हमेशा हानिकारक होती है. मीडिया आज नेताओं की मातहत बन गयी है. मीडिया की वर्तमान स्थिति संकट नहीं बल्कि तबाही है,” यह बात आज पटना में बिहार कलेक्टिव द्वारा आयोजित लेक्चर प्रोग्राम में जानी मानी लेखिका, उपन्यासकार और पत्रकार सागरिका घोष ने कहा.
कांग्रेस को बराबर निशाने में लेते हुए सागरिका ने कहा “श्यामा प्रसाद मुख़र्जी जो पहले कांग्रेस में थे और नेहरु के सह्मर्मी थे और जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर भारतीय जन संघ की स्थापना की थी ने नेहरु को सुझाव दिया था कि वह संविधान से आर्टिकल 19 को हटा दें जिसे नेहरु ने यह कह कर मना कर दिया था कि मीडिया पर कुछ जाएज़ पाबंदियां रहनी चाहिए.”
“कांग्रेस भी पत्रकारों के साथ मित्रवत नहीं थी. बी जी वर्गिज़ को इमरजेंसी के दौरान नौकरी से हटा दिया गया था क्योंकि वह तब संजय गांधी के खिलाफ लिख रहे थे. लेकिन अभी की सत्ता का पत्रकारों के साथ बहुत ज्यादा बैर है. पत्रकार और आज की सरकार के रिश्ते बहुत अधिक असहज हैं,” उनहोंने कहा.
“इंदिरा और राजीव दोनों की सरकारें बहुमत वाली मज़बूत सरकारें थीं लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार धर्म और बहुमत का मेल है. यह सरकार धार्मिक बहुसंख्यकवाद वाली सरकार है जिसका मुकाबला कठिन है,” घोष ने कहा.
“इस समय, अगर आप सत्ता के बहुत ज्यादा आलोचक हैं तो आपकी कई जगह एंट्री बंद हो सकती है और आपकी नौकरी खतरे में आ सकती है. और यह केवल केंद्र सरकार के साथ नहीं बल्कि कई राज्य सरकारों के साथ भी है जिसमें पश्चिम बंगाल, बिहार और तमिल नाडू की सरकार भी शामिल हैं” टाइम्स ऑफ़ इंडिया की कंसल्टिंग एडिटर ने कहा.
पत्रकारों के साथ वर्तमान खतरों का ज़िक्र करते हुए सागरिका ने कहा कि अभी जो सरकार के खिलाफ कहते हैं उन्हें राष्ट्र-विरोधी, अर्बन नक्सल, दलाल, टुकड़े टुकड़े गैंग का संदस्य कह दिया जाता है. अगर पत्रकार को देशद्रोही कहा जाएगा तो ये कहाँ जाएंगे. पत्रकार या तो आज सत्ता के दुश्मन हैं या उनके दलाल.
पत्रकारों के दायित्व पर जोर देते हुए उनहोंने कहा “हम नागरिक के एजेंट हैं. हम उनकी आँख और कान हैं. नागरिक का अधिकार है कि वह सब जाने और अगर उन्हें सब कुछ नहीं बताया जाता है तो वह नागरिक नहीं उपभोक्ता है. हमें सिस्टम में कॉकरोच की तरह होना चाहिए जिसे सिस्टम नहीं पसंद करता. अगर हम कॉकरोच न रहकर तितली बन जाते हैं तो हम पत्रकार नहीं हैं. पत्रकार को नागरिक का ही एजेंट होना चाहिए.”
भाजपा के 2019 के चुनावी अभियान का उल्लेख करते हुए उनहोंने कहा कि पूरे चुनावी अभियान के दौरान विपक्ष को अदृश्य बना दिया गया और यह संभव तब हुआ जब सरकार का मीडिया पर एकाधिकार था.
“नरेन्द्र मोदी एक बेहतरीन संवादक हैं. पिछले प्रधानमंत्री ऐसे नहीं थे. वह अपने सभी साक्षात्कार के दौरान अपना नैरेटिव पेश करते नज़र आए. वह हर साक्षात्कार को खुद संचालित कर रहे थे. उनहोंने उनही लोगों को साक्षात्कार दिया जिनसे वह अपनी बात जनता तक पहुँच सकते थे. उनहोंने अक्षय कुमार को साक्षात्कार दिया जिसे बहुत खूबसूरती से फिल्माया गया था. उनहोंने अलग अलग मीडिया हाउस को अपना साक्षात्कार देने के बजाए एएनआई जैसी न्यूज़ एजेंसी को साक्षात्कार दिया जहाँ से उनका साक्षात्कार सभी छोटे बड़े मीडिया हाउस द्वारा लिया गया,” घोष ने कहा.
उनहोंने कहा कि लोग पत्रकार को निष्पक्ष बने रहने को कहते हैं. कोई पत्रकार एक ही समय में पीड़ीत और मुजरिम दोनों का पक्ष कैसे ले सकता है. क्या हमें नाज़ी द्वारा पीड़ीत लोगों का दर्द दिखाने के साथ साथ नाज़ी का भी दृष्टिकोण दिखाना चाहिए था? क्या संवैधानिक मूल्यों के लिए हमारा कोई नैतिक कर्तव्य नहीं हैं? अगर हम अत्याचार करने वालों का और अत्याचार सहने वालों का एक साथ दृष्टिकोण दिखाएंगे तो फिर सच क्या दिखाएंगे?
कुछ मीडिया हाउस और उनके एंकर की और इशारा करते हुए उनहोंने कहा कि आज के न्यूज़ विक्रेता समाज में दुर्भावना को बढ़ावा दे रहे हैं. दिल्ली के एक मामले का उद्धरण देते हुए उनहोंने कहा कि इन मीडिया घरानों का दंगों में निहित स्वार्थ छिपा हुआ है.
अपने लेक्चर के अंत में उनहोंने कहा कि हम गैरउदारवादी लोकतंत्र में रह रहे हैं और यह गैर उदारवादी लोकतंत्र केवल भारत में ही नहीं अमेरिका, पोलैंड, टर्की, इजराइल समेत दुनिया के कई हिस्सों में फैल रहा है.
उनहोंने नागरिकों से अपील की कि वह सत्ता की पूजा बंद करें. अपनी आवाज़ बुलंद करें, लोगों से बात करें, उनसे मिलें, फोरम विकसित करें और संगठित हों.
बाबा साहेब अम्बेडकर का उद्धरण करते हुए उन्होंने कहा कि अम्बेडकर जी हमेशा कहते थे कि भक्ति गैर उदारवादी लोकतंत्र को जन्म देती है और इसलिए भक्ति हमें छोड़ कर सवाल करना होगा – अपनी आज़ादी के लिए जो संविधान का मूल है.