मिलिए हरयाणा की उस बहादुर आईएस अधिकारी से जिन्होंने पंचकुला को 2016 के जाट आन्दोलन की स्थिति तक पहुँचने से बचा लिया, सुबह 3 बजे वह फटे कपड़ों और कई चोटों के साथ घर पहुँचीं




डिप्टी कमिश्नर गौरी पराशर जोशी (स्रोत: पीटीसी न्यूज़)

25 अगस्त को पंचकुला को अगर आप ने टीवी पर देखा होगा तो देखा होगा कि किस तरह से गुरमीत सिंह को बलात्कार का दोषी मानने के बाद पूरा पंचकुला सैकड़ों हमलावरों के निशाने पर था. मीडिया और पुलिस की गाड़ियों को निशाना बनाते हुए, मीडिया कर्मी को ज़ख़्मी करते हुए, सरकारी इमारतों को आग की लपटों में झुलसते हुए और जन जीवन को अस्त व्यस्त होते हुए मानो इंसानियत की कराह साफ़ साफ़ सुनी जा सकती थी. पंचकुला के लोगों का क्या हाल हुआ होगा इसका अंदाज़ा लगा कर ही मानो एक इंसानी दिल डर से कांपने लगता है.

हमने यह भी देखा होगा कि पूरी पुलिस बल उस समय किस तरह से पंगु बना हुई थी. टीवी चैनलों का गुस्सा तो देखते बनता था. “खट्टर नीड्स टू गो” का नारा हमने इस बुलंद आवाज़ में न्यूज़ एंकरों की ज़बान से शायद ही कभी किसी राज्य के मुख्य मंत्री के बारे में सुना होगा.

ऐसे में जब पूरी खट्टर सरकार दहशतगर्दों के आतंक से काँप रही थी और लोगों ने इसकी तुलना श्रीनगर से शुरू कर दिया था तब एक 11 महीने के बच्चे की माँ, 2009 बैच की महिला आई ए एस अधिकारी गौरी पराशर जोशी अकेले उन डेरा समर्थकों से लोहा ले रही थीं. जब हिंसा और बढ़ी तब इस महिला अधिकारी ने अपने अकेले पीएसओ के साथ अपने कार्यालय पहुंची और स्थिति को सेना के हवाले करने का आदेश जारी किया जिससे स्थिति को बदतर होने से बचाया जा सका.

“अगर सेना को समय पर कमान न सौंपा गया होता तो रहायशी इलाके को बहुत ज्यादा तबाही का सामना करना पड़ता. हम लोग कई दिनों से स्थानीय पुलिस को चाय और बिस्कुट बाँट रहे थे, लेकिन जैसे ही डेरा समर्थकों ने नंगा नाच शुरू किया पुलिस सबसे पहले भागी,” पंचकुला के स्थानीय निवासी सतिंदर नांगिया ने इंडिया टाइम्स को बताया.

गौरी पराशर जोशी 3 बजे सुबह घर पहुंची जब उनहोंने खुद को आश्वस्त कर लिया कि अब समर्थक जा चुके हैं और किसी अनहोनी की आशंका नहीं है. जब वह घर पहुंची तब उनके चोट से खून निकल रहा था और उनके कपड़े फटे हुए थे लेकिन वह अस्पताल केवल यह सोच कर नहीं गईं कि अस्पताल वाले पहले ही बहुत बड़ी संख्या में लोगों की देख भाल में लगे होंगे. चंडीगढ़ के डिप्टी कमिश्नर अजित बालाजी जोशी ने यह बात पीटीसी न्यूज़ को बताई.

पीटीसी न्यूज़ के मुताबिक, अगर इस महिला अधिकारी ने बाकियों की तरह मोर्चा नहीं संभाला होता तो 2016 का जाट आन्दोलन पंचकुला में दोहराया जा सकता था.

“यह सही समय है जब हरयाणा की पितृसत्तात्मक जनता जहाँ भारत में सबसे कम लिंग अनुपात है को पंचकुला की इस पत्रकार से डिप्टी कमिश्नर बनी गौरी पराशर जोशी से कुछ सीखना चाहिए,” डरी सहमी हुई स्थानीय निवासी बेट्टी नांगिया ने इंडिया टाइम्स को बताया.

गौरी ओडिशा कैडर की 2009 बैच की आईएएस अधिकारी हैं और उनहोंने ओडिशा के नक्सल-प्रभावित काला हांडी में भी तैनात रही हैं. वह हरयाणा में अभी नियुक्ति पर हैं.

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