राफेल डील में नया खुलासा: पुरानी डील के विषेशताओं के लिए मोदी सरकार चुकाएगी 40 फीसदी ज्यादा




नई दिल्ली : राफेल सौदे को लेकर देश की राजनीति में भूचाल मचा हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इसे मोदी सरकार का बहुत बड़ा घोटाला करार दे चुके हैं। अब इस विवाद में एक और नया मामला सामने आया है।

रक्षा विशेषज्ञ अजय शुक्ला ने ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ में अपने लेख में दावा किया है कि फ्रेंच कंपनी दसॉल्ट के साथ 2016 में मोदी सरकार ने 36 लड़ाकू विमानों के लिए जो समझौता किया था, उसकी लागत 2012 में दसॉल्ट द्वारा 126 विमानों के लिए दिए गए प्रस्ताव से 40 फीसदी ज्यादा है।

इसकी तुलना सितंबर, 2016 में एनडीए सरकार द्वारा 36 राफेल विमानों के लिए 7.8 बिलियन यूरो में किए गए सौदे के हिसाब से प्रत्येक राफेल पर 217 यूरो मिलियन यबखर्च होंगे। जबकि पहले वाले सौदे के तहत प्रत्येक विमान पर 155 मिलियन यूरो खर्च होने थे। यह लागत लगभग 40 फीसदी ज्यादा है।

यूपीए शासन में जो विमान खरीदा जा रहा था या खरीदने के लिए मोलभाव हो रहा था, उसमें वे सारे स्पेसिफिकेशन या विशेषताएं नहीं थीं, जो मोदी सरकार के दौर में हुए सौदे में हैं। लेकिन अजय शुक्ला ने साफ लिखा है कि पहले वाले सौदे में भी जिन विमानों को खरीदा जाना था, वे भी उन सारी विशेषताओं से लैस थे, जोकि नए सौदे वाले विमान में हैं।



फरवरी, 2015 में बेंगलुरू में हुए एरो इंडिया के शो के दौरान दसॉल्ट के मुखिया एरिक ट्रैपियर ने बताया था कि हमारा मूल्य पहले दिन से एक ही रहा है। और उस मोर्चे पर कोई बदलाव नहीं हुआ है।

इस नए खुलासे से एक बार फिर मोदी सरकार द्वारा किए राफेल सौदे पर कई सवाल खड़े होते हैं। आखिर क्यों 40 फीसदी बढ़े दामों पर यह सौदा किया गया? किसे फायदा पहुंचाने के लिए? और सरकार पिछले कुछ महीनों से क्या छुपाने की कोशिश में तथ्यों को गलत तरीके से पेश कर रही है?

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