
हालांकि यूपीए सरकार में रेलवे की नौकरियों के जो आंकड़े हैं वह अधिक निराशाजनक थे लेकिन मोदी सरकार को बुलेट ट्रेन का ढिंढोरा पीटने के बजाय सामान्य रेल सेवा को बेहतर ढंग से चलाने की व्यवस्था न करने के लिए जनता को जवाब देना ही पड़ेगा. यहाँ दो बातें गौरतलब है – पहला कि रोज़गार मोदी सरकार की प्राथमिकताएं थीं जिसके बूते पर ही वह चुन कर आई दूसरा कि सवर्णों के आरक्षण का चुनावी गेम इससे असफल प्रतीत होता है. जब आपके पास देने के लिए नौकरियां ही नहीं हों तो फिर आरक्षण कैसा?
नई दिल्ली रेलवे विगत वर्षो में नौकरियां देने में विफल रहा है, जबकि कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति से रिक्तियां बढ़ती गईं. आंकड़ों पर गौर करें तो नवंबर 2018 तक रेलवे में ग्रुप-सी और डी के 2,66,790 पद रिक्त थे.
वर्ष 2016-17 के दौरान रेलवे में कुल 13,08,323 कर्मचारी कार्यरत थे. इससे पहले 2008-09 में रेलवे में कर्मचारियों की कुल संख्या 13,86,011 थी. इस प्रकार हर साल जितने कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए, उसके मुकाबले नई भर्तियां कम हुईं.
गौरलतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश के सामान्य वर्ग के गरीबों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अलग से विधेयक पारित किया है. सरकार ने यह कदम हाल ही में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पराजय के बाद उठाया है, क्योंकि आगे इस साल लोकसभा चुनाव है.
लिहाजा, विपक्ष सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहा है. मौजूदा सरकार रोजगार सृजन में विफल रही है और देश में बेरोजगारों की तादाद साल दर साल बढ़ती जा रही है. इसलिए रोजगार देश की प्राथमिकता और प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है.
क्या सरकार ने सरकारी पदों की मौजूदा रिक्तियां भरने की दिशा में अपेक्षित कोशिश की है? दुनिया का सबसे बड़ा नियोक्ता प्रतिष्ठान भारतीय रेल भी नौकरियां देने में विफल रहा है.
आईएएनएस के अनुसार, सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी से जो जवाब मिला है, वह चौंकाने वाला है. वर्ष 2008 से लेकर 2018 तक एक भी साल ऐसा नहीं रहा, जब रेलवे के जितने कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए, उससे अधिक नई भर्तियां हुईं हों. इसलिए रेलवे में रिक्त पदों की संख्या करीब तीन लाख हो गई है.
मोदी सरकार के दौरान सेवानिवृत्त कर्मचारियों और नई भर्तियों के आंकड़े इस प्रकार हैं :
वर्ष 2014-15 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 59,960 और नई भर्तियां 15,191
वर्ष 2015-16 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 53,654 और नई भर्तियां 27,995
वर्ष 2016-17 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 58,373 और नई भर्तियां 19,587
वर्ष 2017-18 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या के आंकड़े अनुपलब्ध और नई भर्तियां 19,100
पूर्व की यूपीए सरकार भी इसमें विफल ही रही. आरटीआई के जवाब में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, यूपीए की स्थिति अधिक बदतर थी
वर्ष 2007-08 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 42,149 और नई भर्तियों के आंकड़े अनुपलब्ध.
वर्ष 2008-09 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 40,290 और नई भर्तियां 13,870
वर्ष 2009-10 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 41,372 और नई भर्तियां 11,825
वर्ष 2010-11 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 43,251 और नई भर्तियां 5,913
वर्ष 2011-12 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 44,360 और नई भर्तियां 23,292
वर्ष 2012-13 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 68,728 और नई भर्तियां 28,467
वर्ष 2013-14 में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 60,728 और नई भर्तियां 31,805
हालांकि यूपीए सरकार में रेलवे की नौकरियों के जो आंकड़े हैं वह अधिक निराशाजनक थे लेकिन मोदी सरकार को बुलेट ट्रेन का ढिंढोरा पीटने के बजाय सामान्य रेल सेवा को बेहतर ढंग से चलाने की व्यवस्था न करने के लिए जनता को जवाब देना ही पड़ेगा. यहाँ दो बातें गौरतलब है – पहला कि रोज़गार मोदी सरकार की प्राथमिकताएं थीं जिसके बूते पर ही वह चुन कर आई दूसरा कि सवर्णों के आरक्षण का चुनावी गेम इससे असफल प्रतीत होता है. जब आपके पास देने के लिए नौकरियां ही नहीं हों तो फिर आरक्षण कैसा?