
–ऋतुपर्ण दवे
मध्य प्रदेश के हालिया निकाय चुनावों के नतीजों को भाजपा के लिए खतरे की घंटी कहें या कांग्रेस के आंगन में किलकारी, नहीं पता। अलबत्ता, दोनों ही दलों को 9-9 स्थानों पर जीत जरूर मिली, जबकि अनूपपुर की जैतहरी नगर परिषद, निर्दलीय लेकिन भाजपा की बागी प्रत्याशी के खाते में गई।
ये नतीजे कांग्रेस के लिए ऑक्सीजन जरूर हैं, क्योंकि एंटी इंकम्बेंसी जैसे माहौल के बावजूद, गुटबाजी घटी नहीं, अलबत्ता बिल्ली के भाग से छीका जरूर टूट गया। इस नाखुशी या भाजपा के गिरते ग्राफ को कांग्रेस, साल के आखीर में होने वाले विधानसभा चुनाव में कितना भुना पाएगी यह तो वही जाने, लेकिन इन चुनावों ने ईवीएम की साख पर सवाल नहीं उठने दिए जो चुनाव आयोग के लिए सुकूनों से भरी सौगात होगी।
सबसे मजेदार वोटिंग का प्रतिशत रहा, जिसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों को 43-43 फीसदी मत मिले। प्राप्त मतों का हिसाब और भी मजेदार है जिसमें 131470 भाजपा को तो 131389 कांग्रेस को मिले यानी कांग्रेस केवल 81 मतों से पीछे। नतीजों में कांग्रेस को 2 का फायदा तो भाजपा को 3 का नुकसान हुआ।
धार की मनावर नगर पालिका 45 वर्षों तथा धार नगर पालिका 23 वर्षों के बाद कांग्रेस जीत सकी वहीं दिग्गजों की अग्निपरीक्षा हुई, जिसमें कई मुंह की खा गए। मुख्यमंत्री का रोड शो भी कुछ खास नहीं कर सका क्योंकि विधायक बेलसिंह भूरिया के सरदारपुर, रंजना बघेल के मनावर, कालूसिंह ठाकुर के धरमपुरी, कुंवर हजारीलाल दांगी के खिचलीपुर में मिली हार धार की पहचान विक्रम वर्मा और विधायक नीना वर्मा के प्रत्याशी का हारना भाजपा के घटते प्रभाव का संकेत है।
सबसे गौरतलब बात यह है कि यह सभी क्षेत्र आदिवासी बहुल हैं, जहां पर भाजपा की खासी पकड़ रही। निश्चित रूप से इसके पीछे बागियों की बगावत और वार्ड स्तर तक की कागजी योजनाओं की हकीकत है।
दिग्विजय सिंह के बिना राघोगढ़ का सुरक्षित रहना है। बेहद रोचक बड़वानी का नतीजा रहा, जहां से कांग्रेस के लक्ष्मण चौहान ने चार बार भाजपा विधायक रहे प्रेम सिंह पटेल को हरा पालिकाध्यक्ष पर काबिज हुए। तीन स्थानों पर खाली कुर्सी, भरी कुर्सी का चुनाव था जिसमें राजगढ़ के खिचलीपुर और देवास के करनावद में खाली कुर्सी ने जीत दर्ज की।
पहले दोनों ही स्थानों पर भाजपा काबिज थी, जबकि भिंड की अकोड़ा नगर परिषद में बसपा की संगीता कुर्सी बचाने में कामियाब रहीं। 2012 के इन 19 निकाय चुनावों में जहां भाजपा के पास 12 तो कांग्रेस के पास 7 थीं जो अब बराबर यानी 9-9 हो गईं हैं।
अभी दो अगले दो विधानसभा उपचुनाव सेमीफाइनल जैसे होंगे। कोलारस और मुंगावली में मतदान 24 फरवरी और मतगणना 28 को होगी। इनमें उत्तरप्रदेश से आई इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों तथा हैदराबाद से आए वीवीपैट का इस्तेमाल होगा।
दोनों सीटें कांग्रेस विधायक महेंद्रसिंह कालूखेड़ा और रामसिंह यादव के निधन से रिक्त हुई हैं। जाहिर है कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को जोर होगा कि लेकिन महीने भर से माथापच्ची के बाद भी अभी प्रत्याशियों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
मध्य प्रदेश के ये चुनाव हैरान-परेशान करने वाले तो नहीं हैं, लेकिन किसी को बागियों की कीमत तो कहीं गुटबाजी का अहसास जरूर कराते हैं। कांग्रेस इन नतीजों से कितना सीख ले पाएगी या भाजपा फिर से अंर्तमंथन करेगी, निश्चित रूप से दोनों का अंदरूनी मामला है।
फिलहाल तो निगाहें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर है, जिसे पहले से पता था कि आदिवासी और दलित क्षेत्रों में उसका जनाधार घट रहा है। शायद इसीलिए समरसता का कार्यक्रम भी चल रहा है और 23 जनवरी को पातालकोट महोत्सव मनाया जाएगा, जिसमें सरकार्यवाहक भैयाजी जोशी आएंगे जो अति पिछड़े आदिवासियों और दलितों के बीच होंगे।
हां, इस नतीजे का 2019 के आम चुनाव में भी असर दिखेगा। संभलने के लिए दोनों दलों को दलदल से निकलना होगा।