
सिमडेगा (झारखंड), 19 अक्टूबर, 2017 | धनतेरस के दिन पूरी मीडिया केवल लोगों को यह बताती रही कि बाज़ार में विमुद्रीकरण (demonetisation) और जीएसटी (GST) का कोई असर नहीं पड़ा है और लोगों ने लगभग लाख करोड़ की ख़रीदारी पूरे भारत में की। दैनिक भास्कर पटना की रिपोर्ट के अनुसार केवल पटनावासियों ने 600 करोड़ की ख़रीदारी की। अब सोचिए, 5 लाख की आबादी ने मिलकर 600 करोड़ का सौदा ख़रीदा तो 125 करोड़ लोगों ने तो लाखों करोड़ का सौदा किया होगा। इस खबर से कुछ दिनों पहले झारखंड के सिमडेगा में एक बच्ची भात भात कहते मर गयी और धनतेरस के एक दिन पहले पटना एम्स में एक बच्ची की मौत सिर्फ इसलिए हो गयी क्योंकि उसके काउंटर तक पहुँचते पहुँचते काउंटर बंद हो गया और डॉक्टर तक वह बच्ची पहुँच नहीं सकी।
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बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, संतोषी ने चार दिन से कुछ भी नहीं खाया था। घर में मिट्टी चूल्हा था और जंगल से चुन कर लाई गई कुछ लकड़ियां भी। सिर्फ ‘राशन’ नहीं था।
अगर होता, तो संतोषी आज ज़िंदा होती. लेकिन, लगातार भूखे रहने के कारण उनकी मौत हो गई. वो दस साल की थी.
संतोषी अपने परिवार के साथ कारीमाटी मे रहती थी. यह सिमडेगा जिले के जलडेगा प्रखंड की पतिअंबा पंचायत का एक गांव है.
करीब 100 घरों वाले इस गांव में इसमें कई जातियों के लोग रहते हैं. संतोषी पिछड़े समुदाय की थीं.
गांव के डीलर ने पिछले आठ महीने से उन्हें राशन देना बंद कर दिया था. क्योंकि, उनका राशन कार्ड आधार से लिंक्ड नहीं था.
संतोषी के पिताजी बीमार रहते हैं. कोई काम नही करते. ऐसे में घर चलाने की जिम्मेवारी उसकी मां कोयली देवी और बड़ी बहन पर थी.
वे कभी दातून बेचतीं, तो कभी किसी के घर में काम कर लेतीं. लेकिन, पिछड़े समुदाय से होने के कारण उन्हें आसानी से काम भी नहीं मिल पाता था.
ऐसे में घर के लोगों ने कई रातें भूखे गुजार दीं.
कोयली देवी ने बताया, “28 सितंबर की दोपहर संतोषी ने पेट दर्द होने की शिकायत की. गांव के वैद्य ने कहा कि इसको भूख लगी है. खाना खिला दो, ठीक हो जाएगी. मेरे घर में चावल का एक दाना नहीं था. इधर संतोषी भी भात-भात कहकर रोने लगी थी. उसका हाथ-पैर अकड़ने लगा. शाम हुई तो मैंने घर में रखी चायपत्ती और नमक मिलाकर चाय बनायी. संतोषी को पिलाने की कोशिश की. लेकिन, वह भूख से छटपटा रही थी. देखते ही देखते उसने दम तोड़ दिया. तब रात के दस बज रहे थे.”
सिमडेगा के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्रि इससे इनकार करते हैं. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि संतोषी की मौत मलेरिया से हुई है.
मंजूनाथ का कहना है कि संतोषी की मौत का भूख से कोई लेना-देना नहीं है. अलबत्ता उसका परिवार काफी गरीब है. इसलिए हमने उसे अंत्योदय कार्ड जारी कर दिया है.
जलडेगा निवासी सोशल एक्टिविस्ट तारामणि साहू डीसी पर तथ्यों को छिपाने का आरोप लगाती हैं.
तारामणि साहू ने बीबीसी से कहा, “कोयल देवी का राशन कार्ड रद्द होने के बाद मैंने उपायुक्त के जनता दरबार मे 21 अगस्त को इसकी शिकायत की. 25 सितंबर के जनता दरबार में मैंने दोबारा यही शिकायत कर राशन कार्ड बहाल करने की मांग की. तब संतोषी जिंदा थी. लेकिन उसके घऱ की हालत बेहद खराब हो चुकी थी. लेकिन, मेरी बात पर ध्यान नही दिया गया और इसके महज एक महीने के बाद संतोषी की मौत हो गई.”
वहीं जाने-माने सोशल एक्टिविस्ट बलराम कहते हैं, “अगर किसी को कई दिनों से खाना नहीं मिल रहा हो और इस कारण उसकी मौत हो जाए, तो इसे क्या कहेंगे. सरकार को चाहिए कि वह या तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा को मान ले या फिर भूख से मौत को खुद परिभाषित कर दे. क्योंकि, हर मौत को यह कहकर टाल देना कि यह भूख से नही हुई है, दरअसल अपनी जिम्मेवारियों से भागना है.
झारखंड के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने हालांकि एनडीटीवी से बात चीत के दौरान यह स्वीकार किया है कि कोयली देवी के परिवार को आधार कार्ड के लिंक न होने के कारण कई महीने से राशन नहीं मिल पा रहा था। सरयू राय का बयान सच समझने के लिए पर्याप्त है।
Very Shameful, where all NGO, government organization, everywhere is sitting dalal who hungry for money. They don’t matter.
दुखद!