
चंद्रशेखर बोरकर की अध्यक्षता में 4 सदस्यी टीम मेधा पाटकर सहित 11 अनशन पर बैठे लोगों से मिलने आई, मुख्यमंत्री से आदेश, कहा स्वास्थ्य की चिंता और मुद्दे उठे तो चर्चा करेंगेप्रशासन से आये अधिकारियों द्वारा 40000 से अधिक परिवारों के पुनर्वास व अन्य सवालों पर जवाब ना देने पर मीटिंग को किया स्थगित, संवाद करना हो तो निर्णय करने और जवाब देने की रखे क्षमताप्रशासन के अतिरिक्त मध्यप्रदेश पूर्व मुख्य सचिव एस. सी. बेहर की अध्यक्षता में 4 सदस्यी निष्पक्ष टीम ने किया पुनर्वास स्थलों का दौरा
आज श्री चंद्रशेखर बोरकर, मध्यप्रदेश सचिव की अध्यक्षता में 4 सदस्यी टीम, मेधा पाटकर सहित अनशन पर बैठे 11 अन्य लोगो से मिलने के लिए ग्राम चिखल्दा में पहुची | जिसमे प्रशासन की तरफ से चंद्रशेखर बोरकर के साथ कमिश्नर संजय दुबे और ए.डी.जी अजय शर्मा भी शामिल थे | प्रशासन के अतिरिक्त, मध्यप्रदेश पूर्व मुख्य सचिव एस.सी.बेहर की अध्यक्षता में 4 सदस्यी निष्पक्ष टीम जिसमे पूर्व डी.जी.पी अरुण गुर्टू, वरिष्ठ पत्रकार लज्जा शंकर हर्दानिया और वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत नायडू शामिल थे | इस टीम ने कई पुनर्वास स्थलों का दौरा भी किया | इनके अलावा मीटिंग में शामिल होने वालों में से भैय्यु जी महाराज, उर्जा विशेषज्ञ सौम्य दत्ता व परस सखलेखा भी थे |
इस टीम से जब पूछा गया कि क्या उनके पास यहाँ आकर मिलने की अधिकृति है या कोई औपचारिक पत्र है ? तो चंद्रशेखर बोरकर ने कहा कि उनके पास कोई औपचारिक पत्र नहीं है, शिवराज सिंह चौहान जी ने आपके स्वास्थ की चिंता जताई थी और हम उनके आदेश अनुसार आपकी स्वास्थ सम्बन्धी बात करने आये हैं और अगर कोई मुद्दा उठता है तो उस पर भी चर्चा कर सकते हैं |
सभी गाँव से उपस्थित लोगों और उनके प्रतिनिधियों ने किस तरह सरकार लोगों को अलग अलग आंकड़े दे कर भ्रमित कर रही है, उच्चतम न्यायलय के आदेश की आड़ में लाखों लोगों को डूबाने की तैयारी कर रही है, बिना पूर्ण पुनर्वास लाखों लोगो को जबरन बेदखल करने की तैयारी कर रही है, जैसी अन्य समस्याएं रखी |
मेधा पाटकर ने प्रशासन से आई टीम से सीधे सवाल करते हुए कहा की क्या सच में मध्यप्रदेश सरकार उच्चतम न्यायलय का पालन कर रही है? क्या पूर्ण पुनर्वास हो चूका है, जिसका यह सरकार दावा करती है? क्या बिना पुनर्वास बाँध के गेट बंद करके घाटी में पानी ला कर डूबाएगी लाखों लोगो को यह सरकार? क्यूँ नर्मदा सेवा यात्रा एक भी डूब क्षेत्र में नहीं मुड़ी? मध्यप्रदेश सरकार ने पुनर्वास का कार्य हमारे याचिका के उच्चतम न्यायलय में आने के बाद ही शुरू किया था | महाराष्ट्र ने भी न्यायलय का पालन कर लोगों को ज़मीन खरीद कर दी तो मध्यप्रदेश सरकार क्यूँ नहीं सोचती अपने लोगों के लिए | हम कानून में जो लिखा है उससे अलग एक चीज़ भी नहीं मांग रहे हैं, लाभ के बदले नगद राशि नहीं चाहिए, कैसे यह सरकार आदिवासियों को ज़मीन के बदले नगद राशि दे सकती है ? नीति का पालन क्यूँ नहीं करती यह सरकार? उच्चतम न्यायलय के आदेश अनुसार 60 लाख और 15 लाख की पात्रता रखने वाले लोगों को अभी तक लाभ नहीं मिला है और ना ही सरकार ने 681 पात्र लोगों को सूची प्रदान की है | 60 प्रतिशत भूमिहीन मजदूर कहाँ जायेंगे ? इतने बसे बसाये गाँव टिन शेड में रह सकते हैं क्या ? क्या आप इन सभी सवालों के जवाब देते हुए इन समस्याओं का हल निकाल, निर्णय ले सकते हैं ? इन सभी सवालो का जब अधिकारियों से जवाब माँगा गया तो जवाब ना देते हुए चंद्रशेखर बोरकर ने स्पष्ट तौर पर कहा की हम यहाँ सन्देश ले कर आये हैं इन सभी सवालों पर निर्णय लेने की हमारी क्षमता नहीं है |
दिल्ली से आये उर्जा विशेषज्ञ व पर्यावरणविद सौम्या दत्ता जी ने कहा की गुजरात का वर्त्तमान में जो हाल है उससे साफ़ है की ना तो इस साल गुजरात को पानी की ज़रूरत है और ना ही मध्य प्रदेश को बिजली की क्यूंकि मध्यप्रदेश में पहले से ही अतिरिक्त बिजली उत्पादन हो चूका है और इस साल बिजली उत्पादन की ज़रूरत नहीं है तो जब पूर्ण पुनर्वास हुआ ही नहीं तो क्या जल्दी है मध्य प्रदेश सरकार को घाटी के लोगों को उन्ही के घर से हटाने की ? क्यूँ पुनर्वास की अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी को छोड़ कर सरकार घाटी के लोगों को डूबना चाहती है |
चिख्लादा निवासी, भागीरथ धनगर ने कहा की सरकार को आंकड़ो का खेल खेलना बंद कर देना चाहिए | घाटी के लोगों को पैसा नहीं, नीति के अनुसार पूर्ण पुनर्वास चाहिए | सैंकड़ो मवेशियों का क्या होगा? गाय की रक्षा करने वाली यह सरकार क्या इतनी गायों को मारने के लिए तैयार है ?
जब सम्भायुक्त संजय दुबे जी से पूछा गया की क्या गाँव के लोगों का नर्मदा के पानी पर अधिकार होगा? क्या पुनर्वास स्थलों में नर्मदा से पाइपलाइन लगा कर पानी भेजा जायेगा? क्या ट्रिब्यूनल के आदेश अनुसार मध्य प्रदेश को 1 बूँद पानी नहीं मिलेगा, यह बात सच है की नहीं तो इस पर कमिश्नर संजय दुबे ने कहा की ट्रिब्यूनल ही सब कुछ नहीं है और पुनर्वास स्थल पर रहने वाले लोगों को नर्मदा के पानी पर अधिकार मिलेगा |
अन्य गाँव के उपस्थित प्रतिनिधियों ने भी पुनर्वास स्थलों, उच्चतम न्यायलय के आदेश का खंडन और घोषनाओ द्वारा लोगों को भ्रमित करने की सरकार की प्रक्रिया पर कई सवाल किये जिसका किसी भी अधिकारी के पास कोई जवाब नहीं था | अंत में लोगों के बहुत बोलने पर भी जब अधिकारियों ने जवाब नहीं दिया तो गाँव के लोगों ने मीटिंग को वही ख़त्म कर देने का निर्णय लिया और साथ ही यह सन्देश भी दिया की अगर सरकार संवाद ही करना चाहती है तो तभी करने आये जब वह जवाब देने और निर्णय लेने की स्थिति में हो |
मीटिंग के ख़त्म होने पर चंद्रशेखर बोरकर ने कहा की हमें तो यही जानकारी मिली थी की पुनर्वास का काम पूरा हो गया है और गाँव खाली हो चुके हैं लेकिन आज यहाँ आ कर जो समस्याएं सुनी वो बहुत गंभीर हैं और ये सभी बाते आगे तक पहुँचना मेरी ज़िम्मेदारी है |