नीतीश के चहेते ने ही किया नीतीश की आलोचना, जद-यू में घमासान




प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के समक्ष नतमस्तक (फ़ोटो साभार: एनडीटीवी)

बिहार की राजनीति में पक्ष-विपक्ष में घमासान तो होता ही रहता है. लेकिन सत्ता के लिए पार्टियाँ बदलने वाले नीतीश कुमार के सिपाहसालार ने ही ऐसा कुछ कह दिया जिससे जनता दल यू में इस बार घमासान होने की गुंजाइश प्रबल है. उनके बयान के बाद उस सिपाहसालार के छिपे हुए विरोधी अब उनके खिलाफ सामने आ गए हैं.

आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रणनीतिकाकर और जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने कहा है कि वह भाजपा के साथ दोबारा गठजोड़ करने के अपनी पार्टी के अध्यक्ष नीतीश कुमार के तरीके से सहमत नहीं हैं और महागठबंधन से निकलने के बाद भगवा पार्टी नीत राजग में शामिल होने के लिये बिहार के मुख्यमंत्री को आदर्श रूप से नए सिरे से जनादेश हासिल करना चाहिये था.

क्या कहा था प्रशांत किशोर ने?

किशोर ने एक साक्षात्कार में कहा कि वह नीतीश कुमार के यूपीए से अलग होकर भाजपा के साथ दोबारा गठबंधन करने के तरीके से सहमत नहीं हैं और महागठबंधन से निकलने के बाद भगवा पार्टी नीत राजग में शामिल होने के लिये बिहार के मुख्यमंत्री को आदर्श रूप से नए सिरे से जनादेश हासिल करना चाहिये था.

प्रशांत किशोर के बयान से उनकी अपनी ही पार्टी में नाराजगी है क्योंकि यह साक्षात्कार शुक्रवार को सोशल मीडिया पर वाइरल हो गया. बहरहाल, साक्षात्कार में किशोर ने यह बात भी कही कि नेताओं का पाला बदलना कोई नयी बात नहीं है. उन्होंने कहा, ‘आप चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक और द्रमुक जैसी पार्टियों को देखें. पीछे की ओर देखें तो हमारे पास वी पी सिंह सरकार का भी उदाहरण है. इसे भाजपा और वाम दलों दोनों ने समर्थन दिया था.”

प्रशांत किशोर ने कहा कि महागठबंधन से जुलाई 2017 में अलग होने का नीतीश का फैसला सही था या नहीं इसे मापने का कोई पैमाना नहीं है. महागठबंधन में राजद और कांग्रेस भी शामिल थी. उन्होंने कहा, ‘जो लोग उनमें (नीतीश) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की संभावना देखते थे, वे इस कदम से निराश हुए. लेकिन जिन लोगों की यह राय थी कि उन्होंने मोदी से मुकाबला करने के उत्साह में शासन से समझौता करना शुरू कर दिया, वो सही महसूस करेंगे.’

उस प्रकरण पर टिप्पणी करने को कहे जाने पर प्रशांत किशोर ने कहा, ‘बिहार के हितों को ध्यान में रखते हुए मेरा मानना है कि यह सही था. लेकिन जो तरीका अपनाया गया उससे मैं सहमत नहीं हूं. मैंने ऐसा पहले भी कहा है और मेरी अब भी यह राय है कि भाजपा नीत गठबंधन में लौटने का फैसला करने पर उन्हें आदर्श रूप में नया जनादेश हासिल करना चाहिये था.’ बता दें कि प्रशांत किशोर ने 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम किया था. उस चुनाव में नीतीश महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे.

कौन हैं प्रशांत किशोर?

प्रशांत किशोर वह रणनीतिकार हैं जिन्हें नरेंद्र मोदी को कई टर्म गुजरात मुख्यमंत्री बनाने का और फिर भारत का प्रधान मंत्री बनाने का श्रेय हासिल है. वह आई-पैक (I-PAC) नाम की संस्था के संस्थापक हैं और चुनावी रणनीतिकार हैं. प्रशांत ने कांग्रेस के लिए भी काम किया है.

प्रशांत किशोर मोदी ब्रिगेड से रुष्ट हो कर नीतीश कुमार के लिए काम करना शुरू किया और नीतीश कुमार उनकी रणनीति के भक्त बन गए. खुश हो कर उनहोंने उनको पार्टी का सेकंड इन कमांड बना दिया. वह जनता दल के उपाध्यक्ष हैं. प्रशांत किशोर के उपाध्यक्ष बनने से नीतीश कुमार के करीबी आर पी सी सिंह का कद छोटा हुआ.

सूत्रों के अनुसार प्रशांत किशोर नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाने के लिए शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिले थे.

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नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी और जनता दल का मुख्यमंत्री चेहरा?

नीतीश कुमार ने जनवरी में कहा था कि प्रशांत किशोर को उपाध्यक्ष बनाने का निर्णय भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह के कहने पर लिया था. कयास यह भी लगाया जा रहा कि प्रशांत किशोर जनता दल (यू) के मुख्य मंत्री चेहरा बन सकते हैं. नीतीश कुमार ने पहले भी जीतन राम मांझी को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. नीतीश कुमार अगर प्रधानमंत्री बनते हैं या फिर कोई और परिस्थिति बनती है तो राजनैतिक पंडितों के अनुसार प्रशांत किशोर जनता दल (यू) की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं.

शिवानन्द की प्रशांत को सलाह: नीतीश को छोडिए और किसी और पार्टी को ज्वाइन कीजिए

राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री और जद यू में रहे शिवानन्द तिवारी ने कहा कि प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के साथ टिक नहीं पाएंगे. नीतीश जी को मैं लंबे अरसे से जानता हूँ अपने इर्द-गिर्द किसी भी स्वाभिमानी और स्वतंत्र विचार रखने वाले व्यक्ति को वे सहन नहीं कर सकते हैं.

प्रशांत को मैंने सुना और पढ़ा है. हर मसले पर उनकी अपनी सुचिंतित राय है. उनकी हर राय नीतीश जी की राय से मेल खाए यह ज़रूरी नहीं है. लेकिन प्रशांत अपनी बात बहुत बेबाक़ी से रखते हैं. झंझट यहीं है. नीतीश जी से अलग राय रखकर आप उनके साथ नहीं रह सकते हैं. अगर रखते हैं तो उसे प्रकट नहीं कर सकते हैं.

प्रशांत अगर नीतीश जी से अलग हटते हैं तो इससे उनको कोई हानि पहुँचने वाली नहीं है. प्रशांत का नाम और शोहरत दूर तक फैल चुका है. इसलिए कहीं भी उनका स्वागत होगा.

मेरा उनसे एक ही अनुरोध होगा. वह भी इसलिए कि कर्म के स्तर पर वे चुनाव के साथ बहुत नज़दीक से जुड़े रहे हैं. इसलिए देश में चुनावों के ज़रिए ही सरकारें बनें इसके प्रति उनकी निष्ठा ज़रूर होगी. आज जिन लोगों के वे साथ हैं उनका लोकतंत्र में यक़ीन नहीं है. उनका बस चले तो आज वे लोकतंत्र को देश से मिटा दें. उन्माद का माहौल पैदा कर रोज़ी, रोटी, रोज़गार, किसानी आदि की समस्याओं से लोगों का ध्यान भटका कर ये सत्ता हासिल करना चाहते हैं. देशभक्ति के नाम पर उन्माद का माहौल बनाया जा रहा है. किसी भी तरह के सवाल को देश द्रोह बताया जा रहा है. इसलिए प्रशांत जी से मेरा अनुरोध होगा कि इनको छोड़िए. इनसे लड़ने वाले किसी भी पार्टी से जुड़िए और लोकतंत्र को बचाने के नेक और पवित्र अभियान में अपना कंधा लगाइए.

जद-यू की ओर से प्रतिक्रिया

जद (यू) पार्षद और पार्टी प्रवक्ता नीरज कुमार ने किशोर को यह याद दिलाने की कोशिश की कि वह राजनीति में अभी नये-नये आए हैं. किशोर को पिछले साल सितंबर में पार्टी में शामिल किया गया था और कुछ सप्ताह के बाद उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था. नीरज कुमार ने कहा, ‘उन्होंने (किशोर ने) जो कुछ भी बोला उसपर मैं कुछ भी टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं, लेकिन मैं उन्हें आईना दिखाना चाहूंगा.’

जद (यू) नेता ने कहा, ‘वह जनादेश लेने पर ‘प्रवचन’ दे रहे हैं. उनका ज्ञान तब कहां था जब पार्टी ने भाजपा के साथ गठजोड़ करने का फैसला किया. इसके अलावा, क्या उन्हें याद नहीं है कि वह खुद जद (यू) में औपचारिक रूप से उस घटनाक्रम के बाद शामिल हुए, जिसके बारे में वह अब सवाल उठा रहे हैं.’

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