
-समीर भारती
पटना (बिहार): बिहार में आए दिन कोई न कोई बड़ी वारदात होती ही रहती है. अगर इन दिनों यह कहा जाए कि बिहार में जंगल राज स्थापित हो चुका है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. यहाँ न आम आदमी सुरक्षित है और न ही बिहार सरकार का अंडर सेक्रेटरी. बिहार की राजधानी का यह हाल है कि यहाँ रोज़ चोरी से लेकर डाका और मर्डर आम बात हो गयी है. अभी कुछ दिनों पहले तबरेज़ नाम के आदमी की हत्या पटना के बीचो बीच स्थित कोतवाली थाना के 50 मीटर के अंदर कर दी गयी. अभी तक मुख्य आरोपी फरार है.
नीतीश कुमार ने अभी हालिया ब्यान में अपराध से पल्ला झाड़ते हुए कह दिया कि यह हत्याएं ज़मीन विवाद में हो रही हैं. मानो ज़मीन विवाद में होने वाली हत्याएं हत्याएं नहीं कहलाएंगी.
ताज़ा हाल यह है कि बिहार के कई थानों में एफ़आईआर भी दर्ज नहीं हो रहे हैं. इस रिपोर्टर को मोहम्मद इस्माइल (बदला हुआ नाम) नाम के व्यक्ति ने बताया कि उनसे ज़मीन का पैसा लेकर नसीम और भोला नाम का आदमी चंपत हो गया. जब वह फुलवारी शरीफ थाने में गए तो उन्हें थाना अध्यक्ष कैसर आलम ने डांट कर भगा दिया यह कहते हुए कि डीएसपी का आदेश है कि ज़मीन विवाद के मामले में एफ़आईआर दर्ज नहीं किया जाए.
मोहम्मद इस्माइल पूछते हैं कि अगर ज़मीन विवाद में हम थाना में एफ़आईआर दर्ज नहीं करवाएं तो क्या करें? गोली चलाएं? शरीफ़ आदमी जाए तो कहाँ जाए. उनका कहना है कि ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही नहीं है. आए दिन ऐसा ही हो रहा है. एफ़आईआर तो अब होना बहुत मुश्किल है.
इसी थाने की शिकायत शगुफ्ता प्रवीन (बदला हुआ नाम) भी करती हैं. उनहोंने कहा कि उनहोंने 2 साल पहले पटना की निचली अदालत ने फुलवारी थाना को 498A में उनके ससुराल वाले पर एफ़आईआर करने का आर्डर दिया था. लेकिन आज तक कोई कार्यवाई नहीं हुई. वह रोती हुई कहती हैं कि वह आई.जी नैयर हसनैन साहब से भी मिली थीं लेकिन कुछ नहीं हुआ.
इन दोनों का यही मानना है कि लालू प्रसाद के समय केवल जंगल राज मीडिया ने फैलाया था. वास्तविक जंगल राज अब आया है.
यह स्थिति केवल फुलवारी शरीफ थाना की ही नहीं है. पटना के हर थाना का यही हाल है. भूतनाथ के दीपक सिंह का भी यही कहना है. वह कहते हैं कि उनका मोबाइल छीन लिया गया. जब वह थाना गए तो कुछ नहीं. एफ़आईआर तक नहीं दर्ज किया गया. वह कहते हैं कि उनहोंने अपना सिम बंद करवाया और थाने के झंझट से मुक्त किया. वह कहते हैं कि एफ़आईआर दर्ज हो भी जाता तो इससे कोई लाभ नहीं मिलता.
जन अधिकार पार्टी से जुड़े मोहम्मद तनवीर भी इससे सहमत हैं. वह कहते हैं कि बिहार में जंगल राज है. आगे बढ़ कर वह कहते हैं कि शराब बंदी के जिस मुद्दे पर नीतीश सरकार अपना जन आधार तैयार कर रही है वह भी बनावटी है. वह कहते हैं कि आज बिहार के अधिकतर थाना क्षेत्र में शराब बिक रहा है. वह फुलवारी शरीफ थाना क्षेत्र और गर्दनी बाग़ थाना का नाम लेकर कहते हैं कि यहाँ के सभी मुसहरी में शराब आम तौर पर मिल रही है. उनका कहना है कि इन मामलों में आपको कहीं एफ़आईआर नहीं मिलेगा. अगर एक आध मिलेगा भी तो वह बस लीपापोती है.
फुलवारी थाना में ही एक और फरियादी से मुलाक़ात हो गयी. उसने बताया कि थाना में पुलिस का कोई सिस्टम ही नहीं रह गया. उनहोंने बताया कि वह बिडला कॉलोनी से आए हैं. वहां खलीलपुरा मोड़ पर नशा का बाज़ार गर्म रहता है. गांजा पीकर सब खड़ा रहता है. महिलाओं को आने में डर लगता है. इसी मामले में मैं ने भी एफ़आईआर करवाना चाहा लेकिन एफ़आईआर नहीं लिया गया. उनहोंने कहा कि एफ़आईआर लिया ही नहीं जा रहा है. उनका नाम पूछने पर उनहोंने अपना नाम नहीं बताया और कहा कि पुलिस से कौन बैर ले.
क्यों नहीं लिया जा रहा है एफ़आईआर?
इस पर हाई कोर्ट के वकील विशाल सिन्हा कहते हैं कि बिहार में अपराध की दर बहुत बढ़ गयी है. बढ़ते अपराध की दर को नियंत्रित करने के लिए ऐसा किया जा रहा है. उनका कहना है कि चूंकि पत्रकारों को अपराध का पता दर्ज एफ़आईआर से ही मिलता है. न एफ़आईआए दर्ज होगा और न ही कोई रिपोर्टिंग होगी. लोगों को लगेगा कि बिहार में अपराध कम हुआ है. हालांकि ऐसा नहीं है. अपराध इन दिनों कई गुना बढ़ा है. यह अब अनियंत्रित हो चुका है. वह कहते हैं कि पटना के एसएसपी मनु महाराज कई सालों से पटना में जमे हुए हैं. उनका अब तक स्थानान्तरण नहीं हुआ है. दशहरा काण्ड को लेकर उनका स्थानान्तरण किया गया था लेकिन फिर उन्हें ही बुला लिया गया. ऐसा क्यों? मुजफ्फरपुर की एसएसपी को तो तुरंत बदल दिया गया. जबकि पटना में क्राइम की दर मुजफ्फरपुर से अधिक है.