जर्मन प्रतिनिधि व भारत में जर्मनी के राजदूत वाल्टर लिंडनर का आरएसएस पर टिप्पणी के ख़िलाफ़ ऑनलाइन याचिका




जर्मन राजदूत वाल्टर लिंडनेर और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के भेंट का चित्र जिसे वाल्टर ने ट्विटर पर साझा किया

जर्मन प्रतिनिधि और भारत में जर्मनी के राजदूत वाल्टर लिंडनर (Walter Lindner) ने आरएसएस को भारत का जन आन्दोलन और भारतीय मोज़ेक कह कर लोगों के बीच एक नई बहस छेड़ दी है. लोगों ने सोशल मीडिया और दुसरे माध्यम से उनकी बर्खास्तगी को लेकर हंगामा शुरू कर दिया है. इसको लेकर एक ऑनलाइन याचिका भी दायर किया है. साउथ एशियन अफेयर्स विश्लेषक पीटर फ्रेडरिक (Pieter Friedrich) ने इस ऑनलाइन याचिका की शुरुआत की है जिस पर अब तक 1400 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किया है. इन्होंने आरएसएस के विचार की तुलना जर्मनी के नाज़ी नज़रिए से की है.

अपनी याचिका में उन्होंने लिखा है कि जुलाई 17, 2019 को आरएसएस सरसंघचालक की वाल्टर से मुलाक़ात जर्मनी में हिटलर और इटली में मुसोलिनी के नाज़ी नज़रिए की अनदेखी या उसका अनुमोदन करता है.

उन्होंने अपने याचिका में गोलवरकर के हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू रेसिस्ट पालिसी का भी उल्लेख किया है जिसके आधार पर आरएसएस की नींव रखी गयी. उनहोंने लिखा “गोलवरकर समझते थे कि सच्चा भारतीय वही है जो हिन्दू कौम और हिन्दू राष्ट्र का महिमामंडन करे और बाकी सब देश के दुश्मन और गद्दार हैं.” उनहोंने अपने याचिका में आगे लिखा “गोलवरकर का कहना था कि जो हिंदुत्व से दूर हो गए हैं वह देश के गद्दार हैं. गोलवरकर का कहना था कि यह केवल धर्म परिवर्तन का मामला नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीय पहचान का मामला है. अगर धर्म छोड़ कर दुश्मनों के कैंप में शामिल होना देश द्रोह नही है तो और क्या है?”

अपनी याचिका में उनहोंने आगे लिखा है कि जर्मनी में नाज़ियों ने नुरेमबेर्ग कानून (Nuremberg Laws) पारित कर राष्ट्रीय पहचान को पुनः परिभाषित करने की कोशिश की थी और यहूदियों को नागरिकता से वंचित करके यहूदियों और ईसाईयों (जर्मन पढ़ें) के बीच रिश्ते बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद 1938 में Kristallnacht के दिन यहूदियों का नाज़ी के हाथों पहला नरसंहार हुआ. Kristallnacht को क्रिस्टल नाईट भी कहते हैं जिसका नाम उस नरसंहार के बाद जर्मनी की सडकों पर बिखरे शीशे पर पड़ा.

1939 में, द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ और नाज़ी जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया. गोलवरकर ने आरएसएस की एथनो-स्टेट (ethnostate) की कल्पना का पूरा वर्णन किया है. एथनो-स्टेट ऐसे राज्य की परिकल्पना है जहाँ केवल एक धर्म और कौम के लोग रह सकते हैं.

गोलवरकर के अनुसार, हिंदुस्तान के विदेश नस्ल के लोगों को या तो हिन्दू संस्कृति और भाषा अपनाना चाहिए, हिन्दू धर्म का सम्मान करना चाहिए और उसमें श्रद्धा रखना चाहिए, हिन्दू राष्ट्र के अतिरिक्त किसी और का महिमामंडन नहीं करना चाहिए और अपनी अलग पहचान को छोड़ कर हिन्दू समुदाय में समाहित हो जाना चाहिए या देश में मातहत की तरह रहना चाहिए, अपने अधिकारों की बात नहीं करनी चाहिए और उनकी नागरिकता छीन लेनी चाहिए.

याचिकाकर्ता ने लिखा “जर्मनी को फ़ासीवाद के लिए कोई सहानुभूति नही रखनी चाहिए खास कर आरएसएस जैसे फ़ासीवादी आंदोलनों के लिए जिसके सिद्धांत नाज़ी जर्मनी और उन जैसे अन्य फ़ासीवादी आंदोलनों के तर्ज़ पर तैयार किए गए हैं.”

“हम सब हस्ताक्षर करने वाले यह मांगे करते हैं कि राजदूत वाल्टर को इस्तीफा देना चाहिए और अगर वह इस्तीफा नहीं देते हैं तो उन्हें वापस बुला लेना चाहिए. हम जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल और विदेश मंत्री हेइको मास से इसमें दखल देने की मांग करते हैं,” याचिकाकर्ता ने कहा.

इस याचिका पर लोगों के हस्ताक्षर की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. अब तक यह आंकड़ा डेढ़ हज़ार से भी पार कर चूका है.

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