
—द मॉर्निंग क्रॉनिकल हिंदी डेस्क
पटना, 04 जनवरी 2018| लोकतांत्रिक जन पहल ने आज यहां जारी संयुक्त बयान में महाराष्ट्र के पुणे जिला के भीमा कोरे गाँव में विजय स्तम्भ के निकट भीमा कोरेगाँव युद्ध की दोसौवीं वर्षगांठ मनाने के लिए विभिन्न राज्यों से जुटे 3 लाख से ऊपर दलितों पर भारतीय जनता पार्टी – आर.एस.एस. समर्थित संगठनों द्वारा किये गए हिंसक हमलों की कठोर निंदा की है तथा कहा है कि यह घटना दलितों पिछड़ों को आपस में लड़वाकर ब्राह्मणवादी वर्चस्व कायम करने एवं जातिवादी टकराव पैदा कर पिछड़ों के एक हिस्से का वोट संगठित करने की राजनीति का परिणाम है | इस घटना के विरोध में आगामी 6 जनवरी 2018 को जे. पी. मूर्ति गाँधी मैदान के निकट से 12 बजे दिन में एक प्रतिरोध मार्च का आयोजन किया गया है|
संयुक्त बयान जारी करने वालों में सौरभ, कपिलेश्वर राम, अशर्फी सदा, विनोद रंजन, फादर मंथरा, फादर एंटो जोसफ, रणविजय कुमार, अशोक कुमार, मणिलाल, प्रदीप प्रियदर्शी, कंचन बाला, बेबी कुमारी, बिंदु कुमारी, प्रवीण कुमार मधु, अफजल हुसैन, सरूर अहमद, शम्स खान, नैय्यर फातमी, राशिद नैय्यर, मो. जाहिद अंसारी, सत्यनारायण मदन, सौदागर, रेयाज अजीमाबादी शामिल हैं |
उल्लेखनीय है कि इस घटना के लिए मुख्य रूप से दोषी संभाजी भिडे एवं मिलिंद एकबोटे दोनो ब्राहमणवादी-हिन्दुत्ववादी संगठनों के नेता हैं | इन दोनों का पुराना अपराधिक इतिहास रहा है | दोनों के खिलाफ जातीय व सांप्रदायिक हिंसा फ़ैलाने के दर्जनों मामले पिछले कई वर्षों से महाराष्ट्र के विभिन्न थानों में दर्ज हैं | पिछले 29 दिसम्बर 2017 को भी इन दोनों के खिलाफ भीमा कोरेगाँव में स्थित दलित जाति के वीर योद्धा गोविन्द गायकवाड की समाधी को अपमानित करने का आरोप है |
लोकतांत्रिक जन पहल के नेताओं ने भाजपा आरएसएस को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि दलितों पर हमले के लिए दोषी व्यक्तियों का बचाव कर रही है तथा निराधार व झूठे बयान दे रही है|
उल्लेखनीय है कि 1 जनवरी 1808 को महाराष्ट्र के पेशवा बाजीराव-II तथा अंग्रोजों की सेना के बीच भीमा कोरे गाँव में युद्ध हुआ था | इस युद्ध में ब्रितानी सेना के कुल 834 लोग थे जिसमें लगभग 500 सैनिक महार (दलित) जाति के थे| इस युद्ध में पेशवा की 2800 सैनिकों को हराकर अंग्रेजों ने युद्ध जीता था | इस युद्ध में महार जाति के 22 सैनिक मारे गए थे | पेशवाओं का राज उच्च कुल के ब्राह्मणों का राज था जिसमें दलितों पर अमानवीय और बर्बर अत्याचार का अंतहीन सिलसिला जारी था | अंग्रेजों ने पहली बार महारों-दलितों को सेना में शामिल किया था जिससे उनके अन्दर एक सहज स्वाभिमान की भावना जगी थी इसलिए इस युद्ध को महाराष्ट्र के दलित ब्राह्मणवादी अत्याचार के खिलाफ दलितों की वीरतापूर्ण संघर्ष के रूप में देखते हैं , इसलिए इसे शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है|
सत्यनारायण मदन अशोक कुमार रणविजय कुमार
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