महाराष्ट्र में दलितों पर हमले के खिलाफ प्रतिरोध मार्च




मॉर्निंग क्रॉनिकल हिंदी डेस्क

पटना, 06 जनवरी महाराष्ट्र के भीमा कोरे गाँव में दलितों पर हुए हिंसक व अपमानजनक हमले के खिलाफ लोकतांत्रिक जन पहल के बैनर तले आज यहां सैकड़ों नागरिकों का प्रतिरोध मार्च निकला गया  यह प्रतिरोध मार्च गाँधी मैदान के जे पी गोलम्बर से निकलकर पटना हाई कोर्ट स्थित आंबेडकर प्रतिमा तक गया  आयकर गोलम्बर के पास पुलिस ने जुलुस को रोकने की कोशिश की लेकिन लोगों के जुझारूपन को देखकर वह पीछे हटी 



लोकतांत्रिक जन पहल ने महाराष्ट्र व केंद्र सरकार पर संभाजी भिडे एवं मिलिंद एकबोटे  जैसे अपराधियों को बचाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि चूकि अपराधियों का सम्बन्ध ब्राह्मणवादी-हिंदुत्ववादी संगठन से है जिसे भाजपा-आर एस एस का प्रत्यक्ष संरक्षण प्राप्त है इसलिए उनलोगों के खिलाफ अबतक कोई कारवाई नहीं की गई  इसके विपरित महाराष्ट्र सरकार ने इस घटना में दलित एवं पसमांदा समुदाय के युवा नेता जिग्नेश मेवानी एवं उमर खालिद पर झूठे मुकदमें लड़कर उन्हें बदनाम करने की साजिश रच रही है 

लोकतांत्रिक जन पहल ने कहा कि भाजपा-आर एस एस अम्बेदकर के प्रति पाखंडी दृष्टिकोण अपनाती है  एक तरफ देश में अम्बेदकर को उनकी विचारधारा से काटकर प्रतीक रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश होती है तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र में दलितों के बीच उनके नेतृत्व को खंडित और अपमानित करने का षडयंत्र रचा जाता है 

महाराष्ट्र के पुणे जिला के भीमा कोरे गाँव में विजय स्तम्भ के निकट भीमा कोरेगाँव युद्ध की दोसौवीं वर्षगांठ मनाने के लिए विभिन्न राज्यों से जुटे 3 लाख से ऊपर दलितों पर भारतीय जनता पार्टी – आर.एस.एस. समर्थित संगठनों द्वारा किये गए हिंसक हमलों की लोकतांत्रिक जन पहल ने कठोर निंदा की है तथा कहा है कि यह घटना दलितों पिछड़ों को आपस में लड़वाकर ब्राह्मणवादी वर्चस्व कायम करने एवं जातिवादी टकराव पैदा कर पिछड़ों के एक हिस्से का वोट संगठित करने की राजनीति का परिणाम है 

उल्लेखनीय है कि इस घटना के लिए मुख्य रूप से दोषी संभाजी भिडे एवं मिलिंद एकबोटे दोनो ब्राहमणवादी-हिन्दुत्ववादी संगठनों के नेता हैं इन दोनों का पुराना अपराधिक इतिहास रहा है ı दोनों के खिलाफ जातीय व सांप्रदायिक हिंसा फ़ैलाने के दर्जनों मामले पिछले कई वर्षों से महाराष्ट्र के विभिन्न थानों में दर्ज हैं। पिछले 29 दिसम्बर 2017 को भी इन दोनों के खिलाफ भीमा कोरेगाँव में स्थित दलित जाति के वीर योद्धा गोविन्द गायकवाड की समाधी को अपमानित करने का आरोप है

उल्लेखनीय है कि 1 जनवरी 1808 को महाराष्ट्र के पेशवा बाजीराव-II तथा अंग्रोजों की सेना के बीच भीमा कोरे गाँव में युद्ध हुआ था  इस युद्ध में ब्रितानी सेना के कुल 834  लोग थे जिसमें लगभग 500 सैनिक महार (दलित) जाति के थे ı इस युद्ध में पेशवा की 2800 सैनिकों को हराकर अंग्रेजों ने युद्ध जीता था ı इस युद्ध में महार जाति के 22 सैनिक मारे गए थे  पेशवाओं का राज उच्च कुल के ब्राह्मणों का राज था जिसमें दलितों पर अमानवीय और बर्बर अत्याचार का अंतहीन सिलसिला जारी था  अंग्रेजों ने पहली बार महारों-दलितों को सेना में शामिल किया था जिससे उनके अन्दर एक सहज स्वाभिमान की भावना जगी थी इसलिए इस युद्ध को महाराष्ट्र के दलित ब्राह्मणवादी अत्याचार के खिलाफ दलितों की वीरतापूर्ण संघर्ष के रूप में भी देखते हैं , इसलिए इसे शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है 

प्रतिरोध मार्च में शामिल प्रमुख लोगों में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, फादर एंटो जोसफ, महेंद्र सुमन, रामनरेश झा, अफजल हुसैन, रिजवान अहमद इस्लाही, गजेन्द्र मांझी, इमरान अहमद, मनीष रंजन, उदयन, रेयाज अजीमाबादी,  सौरभ, कपिलेश्वर राम, अशर्फी सदा, पंकज श्वेताभ, विनोद रंजन, रणविजय कुमार, अशोक कुमार, मणिलाल, प्रदीप प्रियदर्शी, सिस्टर लिमा, कंचन बाला, बेबी कुमारी, बिंदु कुमारी, प्रवीण कुमार मधु, सरूर अहमद, शम्स खान, सौदागर, धर्मेन्द्र, मुरारी, दीपनारायण, सोहेल अहमद, अहमद इमाम, शाहदा बारी, रामप्रसाद, शिवजी सिंह, इ. महेंद्र यादव, नजमुल हुसैन नजमी, अनवारुल होदा, महेंद्र राम, रामप्रसाद  शामिल हैं 

 

 

कंचन बाला                                                                    अशोक कुमार                                          रणविजय कुमार

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