
-मनीष शांडिल्य
सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुक्रवार को राफ़ेल विमान सौदे की जांच से जुड़ी सभी याचिकाएं ख़ारिज कर देने के बाद का घटनाक्रम अब तक रोलर कोस्टर की तरह रहा है.
फैसला आते ही इसे केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के लिए क्लीन-चिट की तरह देखा गया क्यूंकि विपक्ष खासकर कांग्रेस इस सौदे में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए बीते कुछ महीनों से हमलावर थी.
फैसले को सामने रखते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस पार्टी और इसके अध्यक्ष राहुल गांधी पर ज़ुबानी तीर चलाए और उनसे माफी मांगने को कहा. 11 दिसम्बर को पांच विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद पस्त चल रही भाजपा को इस फैसले ने आक्रामक होने का मौका दे दिया था.
लेकिन जैसे-जैसे घड़ी की सुइयां आगे बढ़ती गई इस फैसले के एक हिस्से के आधार पर नरेन्द्र मोदी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का आरोप लगाया जाने लगा.
दरअसल राफ़ेल विमान सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के कल के फ़ैसले के पारा 25 में कहा गया है कि राफ़ेल विमानों के सौदों पर नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट की जांच संसद की पब्लिक अकाउंट्स कमिटी (पीएसी) ने की है.
लेकिन तथ्य ये सामने आ रहे हैं कि अब तक राफ़ेल सौदे पर सीएजी की रिपोर्ट सामने ही नहीं आई है. सीएजी और पब्लिक अकाउंट्स कमिटी, जिसके अध्यक्ष लोकसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे हैं, ऐसे किसी रिपोर्ट से इनकार कर रही है तो फिर ऐसे में पब्लिक अकाउंट्स कमिटी द्वारा इसकी जांच कब कर ली जिसके आधार पर अदालत ने फैसला सुनाया है.
फैसले के इस हिस्से के आधार पर शुक्रवार शाम राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला और दिन भर के घटनाक्रम को नया मोड़ दिया. उन्होंने प्रेस-कांफ्रेंस कर कहा, “सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आधार कैग (सीएजी) की रिपोर्ट है. मगर कैग की रिपोर्ट पीएसी के अध्यक्ष ने नहीं देखी. पीएसी के किसी सदस्य ने नहीं देखी. देश मे हो क्या रहा है?”
राहुल गांधी ने आगे ये तंज कसा, ”आज की दुनिया में हो सकता है कि मोदीजी ने अपनी पीएसी प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठा रखी हो. मोदीजी आप जितना छिपना चाहते हैं छिप जाइए. आप बच नहीं सकते हैं.”
राहुल गांधी से पहले राफ़ेल विमान सौदे के याचिकाकर्ताओं प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने संयुक्त वक्तव्य जारी कर कहा था कि फैसले के पारा 25 के तथ्य असल में सही नहीं हैं.
यह भी गौरतलब है कि सीएजी की यह वही रिपोर्ट (राफ़ेल सौदे और नोटबंदी पर सीएजी रिपोर्ट) है जिसे पेश करने में हो रही “अनुचित और अनापेक्षित देरी” पर पिछले महीने कई सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने सवाल उठाया था.
आरोप क्यों बहुत गंभीर हैं?
वैसे यह साफ़ नहीं है कि अदालत ने किस सीएजी रिपोर्ट का जिक्र किया है लेकिन माना जा रहा है कि उसने अपने फैसले में राफ़ेल सौदे पर सीएजी की रिपोर्ट का ही जिक्र किया है. लेकिन यदि राफ़ेल सौदे पर सीएजी की रिपोर्ट सरकार तक पहुंच गई है और संसद को आत्मविश्वास में लिए बिना, इसे संसद में पेश किए बिना सरकार से इसे अदालत के साथ साझा किया है तो यह विधायिका और कार्यपालिका से जुड़े कई गंभीर प्रश्न उठा सकता है. ऐसा इसलिए क्यूंकि सीएजी राष्ट्रपति को रिपोर्ट करती है, न कि केंद्र सरकार को. राष्ट्रपति रिपोर्ट संसद को भेजते हैं और फिर यह रिपोर्ट पीएसी को भेजी जाती है और पीएसी सीएजी रिपोर्ट के चुनिंदा अंश की जांच कर इसकी रिपोर्ट सदन में जमा करती हैं.
मगर पीएसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कह रहे हैं कि उन्होंने यह रिपोर्ट नहीं देखी. उन्होंने राफ़ेल विमान सौदे से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा कि वह पीएसी के सदस्यों से आग्रह करेंगे कि अटॉर्नी जनरल और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) को बुलाकर पूछा जाए कि राफ़ेल मामले में कैग की रिपोर्ट पीएसी के सामने कब और कहां आई है? खड़गे ने आरोप लगाया कि सरकार ने कोर्ट के सामने गलत जानकारी दी कि राफ़ेल मामले में कैग रिपोर्ट पीएसी के सामने रखी गई.
दूसरी बात, अगर सरकार ने सीएजी रिपोर्ट के संबंध में अदालत को गलत जानकारी दी है, जैसा कि याचिकाकर्ता और विपक्ष का आरोप है, तो यह अदालत को गुमराह करने जैसा है. ऐसे में यह गलत जानकारी के आधार पर दिया गलत फैसला लगता है जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने फैसले पर अपनी टिप्पणी में भी कहा है.
ऊपर की दोनों में से अगर एक बात भी सही है तो नरेन्द्र मोदी पर लगा यह आरोप सही साबित होगा कि उनके कार्यकाल में देश की अहम संस्थाओं की धज्जियां उड़ा दी गई हैं.
सवाल जिनके जवाब मिलना बाकी
इन सबके बीच इस चर्चित सौदे से जुड़े दो अहम सवालों का जवाब मिलना अभी भी बाकी है. पहला सवाल ये है कि 526 करोड़ के हवाई जहाज़ को 16 सौ करोड़ रुपये में क्यों ख़रीदा गया. याचिकाकर्ताओं के मुताबिक खरीद-फरोख्त समिति के तीन सदस्यों ने इस पर आपत्ति भी जताई थी लेकिन उनका ट्रांसफर कर दिया.
दूसरा सवाल यह है कि सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की जगह ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट छीनकर अनिल अंबानी की नई-नवेली और अनुभवहीन कंपनी को क्यों दिया गया? विपक्ष सरकार पर आरोप लगाता रहा है कि सरकार ने जानबूझकर अनुभवी सरकारी विमान निर्माता उपक्रम एचएएल की जगह अनिल अंबानी द्वारा बनाई गई एक प्राइवेट कंपनी को दस्सां (Dassault) के सामने ऑफसेट पार्टनर के तौर पर पेश किया.