
आलोक वर्मा को कल सीबीआई निदेशक के पद से हटाकर महानिदेशक दमकल सेवा, नागरिक सुरक्षा एवं गृह रक्षा बनाया गया था. आलोक वर्मा ने इन पदों से शुक्रवार को इस्तीफा देते हुए कहा कि वह अपनी सेवानिवृत्ति की आयु पार कर चुके हैं. सीबीआई निदेशक का पद निश्चित कार्यकाल वाली भूमिका थी इसलिए उन्हें अब सेवानिवृत्त समझा जाए.
उनहोंने अपना इस्तीफ़ा कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (department of personnel and training) के सचिव को भेज दिया. यह रहा उनके पत्र का हिंदी अनुवाद:

चयन समिति ने निर्णय पर पहुंचने से पहले अधोहस्ताक्षरी (undersigned) को CVC द्वारा दर्ज विवरणों पर अपनी बात रखने का अवसर प्रदान नहीं किया। न्याय का गला घोंटा गया और यह सुनिश्चित करने में पूरी प्रक्रिया को उलट दिया गया कि अधोहस्ताक्षरी को सीबीआई चीफ के पद से हटा दिया जाए। चयन समिति ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि पूरी CVC रिपोर्ट ऐसे शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों पर आधारित है, जो मुझसे द्वेष रखता है और जिसपर वर्तमान में स्वयं सीबीआई जांच कर रही है। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि सीवीसी ने केवल शिकायतकर्ता के कथित रूप से हस्ताक्षरित बयान को आगे बढ़ाया, और शिकायतकर्ता माननीय न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एके पटनायक (जो जांच कर रहे हैं) के समक्ष पेश ही नहीं हुआ। साथ ही, जस्टिस पटनायक ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि रिपोर्ट के अनुसंधान/निष्कर्ष उनके हैं ही नहीं।
संस्थाएं हमारे लोकतंत्र के सबसे मजबूत और सबसे स्पष्ट प्रतीक हैं और इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि सीबीआई आज भारत की सबसे महत्वपूर्ण संस्थाओं में एक है। कल के किए गए निर्णय मेरे कामकाज पर ही केवल ऊँगली नहीं उठाएंगे, बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण बनेंगे कि संस्था के रूप में CBI को किसी भी सरकार द्वारा CVC के माध्यम से कैसे उपयोग किया जाएगा, उस CVC द्वारा जो सत्ताधारी पक्ष के बहुमत सदस्यों द्वारा नियुक्त किया जाता है। कम से कम यह कहा जा सकता है कि यह सामूहिक आत्ममंथन का क्षण है।
कैरियर नौकरशाह के रूप में, मेरी ईमानदारी चार दशकों की सार्वजनिक सेवा में में मुझे प्रेरित करने वाली ताकत रही है। मैंने बेदाग रिकॉर्ड के साथ भारतीय पुलिस की सेवा की है और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पुडूचेरी, मिजोरम, दिल्ली में पुलिस बलों का नेतृत्व किया है और दो संगठनों: दिल्ली जेल और सीबीआई का नेतृत्व भी किया है। मैं भाग्यशाली रहा हूं कि मुझे उन बलों से भरपूर समर्थन मिला जिसका मैंने नेतृत्व किया जिसके परिणामस्वरूप उत्कृष्ट उपलब्धियां प्राप्त हुईं और जिसका असर बल के प्रदर्शन और उनके कल्याण पर सीधा सीधा पड़ा है। मैं भारतीय पुलिस सेवा का धन्यवाद करना चाहता हूँ और विशेषकर उन संगठनों का जहाँ मैंने अपनी सेवा दी है।
इसके अलावा, यह भी उल्लेखनीय है कि 31 जुलाई, 2017 को अधोहस्ताक्षरी पहले ही सेवानिवृत्त हो चुका है, और 31 जनवरी, 2019 तक निदेशक, सीबीआई के रूप में सरकार की सेवा कर रहा था, जो कार्यकाल की भूमिका मात्र होती है।
अधोहस्ताक्षरी अब सीबीआई निदेशक नहीं है और DG Fire Services, Civil Defence & Home Guards के लिए उपयुक्त आयु की सीमा पार कर चुका है। इसलिए, अधोहस्ताक्षरी को आज से ही सेवानिवृत्त माना जाए।
वर्मा के इन बयानों पर पूर्व महा अधिवक्ता मुकुल रह्तोगी ने कहा “मुझे नहीं लगता कि अलोक वर्मा के ब्यान के अंदाज़ सही हैं. अगर प्रधान मंत्री और वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट के जज ने CVC रिपोर्ट के आधार पर कोई निर्णय लिया है तो वर्मा का यह कहना कि निर्णय सही नहीं है गलत है. सरकार को इससे पहले ही निपटना चाहिए था. इससे एजेंसी और सीबीआई की बदनामी हुई है.”
Former AG Mukul Rohatgi:Don’t think Alok Verma’s statements are in good taste. If PM& a senior SC judge,after seeing CVC report, gave a decision, then its not fair for Verma to say the decision is bad.Govt should have settled this earlier. It has spoilt the name of the agency&CBI pic.twitter.com/OvdIolo4k0
— ANI (@ANI) January 11, 2019