
-द मॉर्निंग क्रॉनिकल हिंदी डेस्क
गौरतलब है कि सरकारी नौकरी देश में उपलब्ध नौकरियों का मात्र 2 प्रतिशत है जबकि 98 प्रतिशत नौकरियां प्राइवेट क्षेत्रों में ही उपलब्ध है जहाँ कोई आरक्षण नहीं है। बिहार सरकार के इस पहल से प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण को लेकर चल रही वकालत को बल मिलेगा और इससे नई राजनीतिक बहस शुरू होने की आशंका है.
पटना (बिहार), नवम्बर 2, 2017 निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण की घोषणा करने वाला बिहार देश का पहला राज्य बन गया. बिहार सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति, दिव्यांग और महिलाओं के लिए उन नौकरियों में आरक्षण लागू करने का निर्णय किया है जो नौकरियां सरकार द्वारा प्राइवेट कंपनियों को आउटसोर्स की जाती है। राज्य सरकार की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि राज्य सरकार जिन कंपनियों को आउटसोर्स करती है, उन कर्मचारियों के चयन में आरक्षण के नियम लागू होंगे और कंपनियों को इसका पालन करना होगा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस फैसले पर कैबिनेट ने भी मुहर लगा दी है.
कुछ दिनों पहले जद यू के दो वरिष्ठ नेता उदय नारायण चौधरी और श्याम रजक ने बिहार में दलितों और पिछड़ों की स्थिति को लेकर चिंता जताई थी और अपनी पार्टी पर भी सवाल उठाया था। श्याम रजक ने कहा था कि वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने का भीमराव आंबेडकर और महात्मा गाँधी ने जो सपना देखा था, वह देश की आजादी के सात दशक बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। हालत ये है कि वंचित समाज आज भी कूड़े के ढेर से अनाज चुनकर पेट की भूख मिटाने को विवश है। और जिन लोगों को इनकी भलाई के लिए कार्य करना चाहिए था उनकी नियत में खोट है। इस पर उदय नारायण चौधरी और श्याम रजक दोनों पर कार्यवाई करने की बात की जा रही थी।
आजतक की रिपोर्ट के अनुसार बिहार सरकार के इस फैसले का विरोध होना भी शुरू हो गया है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सीपी ठाकुर ने इसे गलत कदम बताया है. सीपी ठाकुर के अनुसार पढ़ाई-लिखाई में आरक्षण देना तो ठीक है, पर नौकरियों के लिए उन्हें योग्य बनाने पर जोर देना चाहिए. ताकि उनकी दक्षत्ता पर सवाल ना उठाया जा सके. उनका मानना है कि इससे सरकार का कामकाज भी प्रभावित होगा.
गौरतलब है कि सरकारी नौकरी देश में उपलब्ध नौकरियों का मात्र 2 प्रतिशत है जबकि 98 प्रतिशत नौकरियां प्राइवेट क्षेत्रों में ही उपलब्ध है जहाँ कोई आरक्षण नहीं है। बिहार सरकार के इस पहल से प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण को लेकर चल रही वकालत को बल मिलेगा और इससे फिर से एक नई राजनीतिक बहस की आशंका जताई जा रही है.
नीतीश पर लालू प्रसाद ने पिछले दिनों आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाया था.