
-पुष्पराज
कुलदीप नैयर ने सिरसा में अभिभूत होकर कहा था-मैं छत्रपति को भारतीय पत्रकारिता के भीतर भगत सिंह की तरह देख रहा हूँ इसलिए कि मैंने लाहौर में भगत सिंह के शहादत स्थल पर खड़ा होकर जिस तरह महसूस किया था, उसी तरह का अहसास आज सिरसा आकर महसूस हो रहा है।
भारतीय पत्रकारिता को भारतीय लोकतंत्र और भारत के लोक की रक्षा करनी है तो इस पत्रकारिता को अपने आईकॉन चुनने होंगे। भगत सिंह के लेख छापने वाले प्रताप के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी ने भगत सिंह की शहादत के 2 दिन बाद ही अपनी शहादत क्यों दी थी। क्या प्रताप के संपादक अपने एक स्तंभकार की शहादत से प्रेरित होकर दंगाईयों के सामने खड़े हो गए थे? अगर भगत सिंह ही गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत के प्रेरक थे तो गणेश शंकर विद्यार्थी और भगत सिंह को अपना हीरो मानने वाले मुफस्सिल पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की शहादत को भारतीय पत्रकारिता किस तरह भुला सकती है? मैं पत्रकारिता के नियंताओं से करबद्ध प्रार्थना करना चाहता हूँ कि सिरसा में 21 नवंबर 2002 को हर हाल में सच कहने की जिद में शहीद हुए पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति के शहादत दिवस को “पत्रकारिता प्रेरणा दिवस” के रूप में आयोजित किया जाए। शहीद छत्रपति के शहादत की 16 वीं वर्षी पर सिरसा (हरियाणा) में छत्रपति के अनुगामियों की ओर से एक स्मृति सभा जरूर आयोजित हुई है पर भारतीय प्रेस परिषद, भारत के पत्रकार संगठन,संस्थान छत्रपति से अब तक अनजान क्यों हैं?
अपनी शहादत के 15 वर्षो बाद रामचन्द्र छत्रपति पिछले वर्ष 2017 के अगस्त माह में तब मुख्यधारा की मीडिया में चर्चे में आए थे, जब हरियाणा में देवताधारी-बलात्कारी को जेल भेजा गया था। तथाकथित देवता गुरमीत (राम-रहीम) के जेल जाने के बाद जिस तरह की हिंसा भड़काई गई और जिस तरह हिंसा को रोकने के लिए सेना की मदद ली गई,यह वाकया दुनिया की मीडिया में जितना चर्चित हुआ, काश,इस तथाकथित देवता को पहली बार बलात्कारी घोषित करने वाले रामचन्द्र छत्रपति की आवाज उनकी शहादत के बाद सुन ली गई होती। अंग्रेजी पत्रकारिता पर आरोप है कि अंग्रेजी पत्रकारिता अक्सर भारत की समस्याओं को अंग्रेज हुकूमत की तरह देखती है। लेकिन हम पूछते हैं कि हिंदी पत्रकारिता ने 16 वर्ष पूर्व सिरसा में शहीद हुए एक पत्रकार की शहादत को तब राष्ट्रीय महत्व क्यों नहीं प्रदान किया था। साध्वियों के साथ बलात्कार, साध्वी के भाई की हत्या, बलात्कार को उजागर करने वाले पत्रकार की हत्या, 400 साधुओं को नपुंसक बनाने के सिद्ध हो चुके आरोपों के अभियुक्त राम रहीम को क्या भारतीय मीडिया अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा खूनी राक्षस घोषित करने के लिए तैयार है? दुनिया में क्या इससे बड़े क्रूर, वहशी, राक्षस की कथा आपने सुनी है? क्या देवी-देवताओं वाले राष्ट्र में मीडिया के आकाओं के दिल में इस बलात्कारी बाबा के प्रति कोई आस्था कायम है? भारत के नारीवादी संगठन जो मीटू अभियान में ज्यादा जोर लगा रहे हैं, वे सिरसा के इस मामले को दुनिया का सबसे बड़ा बलात्कार कांड घोषित करने में मुहूर्त का इंतजार क्यों कर रहे हैं?
मैं 2003 में पहली बार मेधा पाटकर के साथ जनांदोलनों की एक राष्ट्रव्यापी यात्रा के दौरान सिरसा पहुँचा था तो प्रसिद्ध समाजशास्त्री योगेंद्र यादव जो हरियाणा में यात्रा के मागर्दर्शक थे, उन्होंने तब बताया था कि “सिरसा में हमारे मित्र रामचन्द्र छत्रपति ने इस तरह सच लिखने की जिद के साथ अपनी शहादत दी है।” मुझे तब यह जानकारी भी मिली कि तत्कालीन भारत के प्रसिद्ध संपादक प्रभाष जोशी ने रामचन्द्र छत्रपति की शहादत के बाद सिरसा की यात्रा की है और छत्रपति के कातिलों को ललकारते हुए कहा है कि “हमारी पत्रकारिता के समक्ष छोटे-छोटे हिटलर खड़े हैं, अगर हम इन हिटलरों से युद्ध नहीं रचेंगे तो हमारी यह प्यारी पत्रकारिता नष्ट हो जाएगी”। प्रभाष जोशी की चेतावनी को हमने अपनी चुनौती मान ली और हम 15 वर्षों से सिरसा को बकोध्यानम देख रहे हैं। 2004 में हिन्दुस्तान की प्रधान संपादक मृणाल पाण्डेय ने अपने अखबार के संपादकीय पृष्ठ में मेरा आलेख प्रकाशित कराया था, जिसकी हजारों प्रति तब हरियाणा में पाठकों की माँग पर अलग से भेजी गई थी। उस विशिष्ट आलेख का शीर्षक था- “रामचन्द्र छत्रपति की शहादत का मतलब पूरा सच।” संपादकीय पृष्ठ की अपनी सीमा होती है, बावजूद किसी हिंदी अख़बार ने पहली बार छत्रपति की शहादत को इस तरह प्रस्तुत किया था। मैंने 2004 में राम रहीम के सच्चा सौदा डेरा के अंदर प्रवेश करने का साहस जुटाया था। मैंने डेरा के अंदर एक-एक हिस्से को अपनी आँखों से देखने की कोशिश की थी पर देवता के गुफा के बाहर आकर मेरे कदम रूक गए थे या सिहर गए थे। देवता के मायालोक में तमाम विहंगम दृश्य, तिलिस्म, चमत्कार देखने के बावजूद मैंने गुफा द्वार से लौटकर आज से 14 वर्ष पूर्व जो डायरी लिखी थी, उसके कुछ हिस्से को रामबहादुर राय के संपादकत्व मेधा प्रथम प्रवक्ता और योगेंद्र यादव के संपादकत्व वाले सामयिक वार्ता ने प्रकाशित किया था। छत्रपति की शहादत के एक दशक पूरे होने पर संतोष भारतीय ने चौथी दुनिया में उस सिरसा डायरी को अक्षरशः प्रकाशित किया था, बावजूद मैं दावे के साथ कह रहा हूँ कि मेरी उस सिरसा डायरी को गंभीरता से नहीं लिया गया। शायद इस मान्यता की वजह से भी कि शहादत को पत्रकारिता का उसूल नहीं बनाना चाहिए या इस वजह से कि जिन्हें देवता मानकर राष्ट्र के प्रधानमंत्री नमन करते हों,उनके भाल पर हमारी पत्रकारिता की वजह से कोई खरोंच ना आए।
रामचन्द्र छत्रपति खेती-किसानी से जुड़े एक मुफस्सिल पत्रकार थे। उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित कुछ राष्ट्रीय हिंदी दैनिकों के लिए जिला संवाददाता का कार्य किया था। वे संवाददाता के रूप में अपने शहर सिरसा स्थित “सच्चा सौदा डेरा” के झूठ को विशेष महत्व देना चाहते थे। राष्ट्रीय समाचार पत्रों में अपने प्राथमिक विषय को प्राथमिकता ना मिलने की वजह से उन्होंने खेती-किसानी के पसीने की ताकत से वर्ष 2000 में दैनिक समाचार पत्र “पूरा सच” की शुरूआत की थी। 30 मई 2002 को “पूरा सच” में छपा था -“धर्म के नाम पर किए जा रहे हैं, साध्वियों के जीवन को बर्बाद”। इस खबर ने हरियाणा-पंजाब की वादियों में तूफान मचा दिया था। डेरा भक्तों के द्वारा हरियाणा-पंजाब के शहरों में हो रहे हिंसा के प्रभाव में चंडीगढ़ उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए पूरा सच की इस खबर के आधार पर सीबीआई जाँच का आदेश दिया। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में यह एक अविस्मरणीय अध्याय है कि एक मुफस्सिल अखबार की खबर के आधार पर उच्च न्यायालय ने स्वतः स्फूर्त सीबीआई जाँच का आदेश दिया हो। इस घटना के बाद भी “पूरा सच” के संपादक की सुरक्षा के प्रति राज्य ने कोई सुध नहीं ली। रामचन्द्र छत्रपति को राम रहीम के द्वारा नियुक्त अपराधियों ने गोली मारी, शासन ने बेहतर ईलाज की जिम्मेवारी नहीं ली औऱ हमले के 27 दिन बाद 21 नवम्बर को छत्रपति ने अपोलो दिल्ली में दम तोड़ दिया। छत्रपति की हत्या के नामजद अभियुक्त गुरमीत राम-रहीम ने इस हत्या के विरूद्ध सीबीआई जाँच को बार-बार रोकने व प्रभावित करने की कोशिश की पर रामचंद्र छत्रपति के पुत्र अंशुल छत्रपति के अनुरोध पर न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर सुप्रीम कोर्ट में खड़े हुए तो अब सारी गवाहियों के बाद साध्वी बलात्कारों के अभियुक्त गुरमीत जल्दी ही छत्रपति की हत्या के अभियोग में 20 वर्षों की जेल या फाँसी की सजा पाने के लिए मजबूर होंगे। छत्रपति के न्याय के संघर्ष में विश्वास है कि जल्दी ही जीत हासिल हो।
“पूरा सच” के संस्थापक संपादक ने ढाई साल की छोटी सी अवधि में अपने अखबार को बहुत लंबी उमर दे दी। पुत्र ने संपादक पिता के बताए नक्शे कदम पर अख़बार के संपादन के साथ-साथ मुकदमे की पैरवी को एकसूत्री लक्ष्य मान लिया। पूरा सच्चा डेरा के कुकृत्यों को लगातार उजागर करता रहा। शहादत की विरासत पर खड़े अख़बार ने कभी मुड़ कर देखना जरूरी नहीं समझा। गुरू गोविंद सिंह जी का रूप धारण कर भक्तों को अमृत छकाने की खबर को भी पहली बार अंशुल छत्रपति के संपादन में पूरा सच ने ही उजागर किया। लेकिन अंशुल ने अपनी सुरक्षा के प्रति सावधानियां बरती। पूरा सच ने ही एक कामपिपासु बाबा के हवस में 400 साधुओं को नपुंसक बनाने की खबर को पहली बार उजागर किया। अंशुल ने विवेकपूर्ण सावधानी यह बरती की कि कभी दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर अपने किए से कीर्तिमान प्राप्ति करने की चेष्टा नहीं की। साध्वी बलात्कार मामला, अपने पिता की हत्या, साध्वी के भाई की हत्या सहित साधु नपुंसक मामलों में अलग-अलग सीबीआई जांच के लिए गवाही जुटाने, योग्य अधिवक्ताओं को तलाशने की जिम्मेवारी अंशुल ने अपने कंधे पर ली। जिम्मेवारियों के वजन से अंशुल का कंधा ना टूटा पर अंशुल का घर बिक गया। पूरा सच को अर्थाभाव की वजह से 4 साल पहले बंद करना पड़ा जो पत्रकारिता को सबसे कमजोर की आवाज मानते हैं, उनके लिए रामचन्द्र छत्रपति बेहतर आईकॉन हो सकते हैं। मैंने अपने आईकॉन से आपको परिचित कराया। यहाँ दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति तो आपको नहीं मिलेगी, दुनिया के सबसे बडे सेक्स स्कैंडल को उजागर करते हुए शहादत देने वाले एक संपादक की कीर्ति मिलेगी। पत्रकारिता को बदलने की लीक दिल्ली से नहीं, सिरसा से शुरू होती है। मेरे लिए सिरसा इस समय पत्रकारिता का तीर्थ हो चुका है, आइए आप भी मेरे तीर्थ को अपना तीर्थ बनाइये।
आनंद बाजार के पत्रकार सुब्रतो बसु को 2018 का रामचन्द्र छत्रपति सम्मान

शहीद पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति के सुधि प्रशंसक पिछले 8 वर्षों से भारत में साहित्य और पत्रकारिता में जन-प्रतिबद्धता के लिए प्रतिबद्ध लेखक-पत्रकारों को रामचन्द्र छत्रपति की स्मृति में “छत्रपति सम्मान” से सम्मानित करते हैं। सिरसा के प्राध्यापक, अधिवक्ता, साहित्यकारों की पहल पर गठित “संवाद सिरसा” ने 2010 से छत्रपति के शहादत दिवस के अवसर पर सिरसा में छत्रपति की स्मृति सभा आयोजित कर छत्रपति सम्मान देने की परंपरा कायम की है। प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर 2012 में छत्रपति सम्मान से सम्मानित हुए थे । कुलदीप नैयर के साथ-साथ रवीश कुमार, अभय कुमार दुबे, ओम थानवी, उर्मिलेश, गुरदयाल सिंह, जगमोहन सिंह छत्रपति सम्मान से नवाजे जा चुके हैं। सुब्रतो बसु को बिहार में सरिता-महेश की शहादत से पूर्व उनके सामाजिक कर्म को आनन्द बाजार में पहली बार कवरेज करने के लिए “IFJ Award” मिल चुका है। सुब्रतो आनंद बाजार कोलकाता में स्थानीय क्षेत्रीय संपादक हैं और इन्होंने अपने अखबार में रामचन्द्र छत्रपति की शहादत से जुड़ी पृष्ठभूमि को कई किस्तों में लिखा था।
कुलदीप नैयर को सिरसा आने से रोकने के लिए गुप्तचर एजेंसियों के द्वारा सूचना भिजवाई गई थी। कुलदीप नैयर के सम्मान प्राप्त कर दिल्ली पहुंचने के बाद डेरा भक्तों ने सिरसा में गुरुद्वारा के ग्रंथी की गाड़ी में आगजनी क़र शहर में कर्फ्यू कायम करवाया था। कुलदीप नैयर ने सिरसा में अभिभूत होकर कहा था-मैं छत्रपति को भारतीय पत्रकारिता के भीतर भगत सिंह की तरह देख रहा हूँ इसलिए कि मैंने लाहौर में भगत सिंह के शहादत स्थल पर खड़ा होकर जिस तरह महसूस किया था, उसी तरह का अहसास आज सिरसा आकर महसूस हो रहा है।
(लेखक की पहचान जनांदोलनों को लिखने वाले यायावर पत्रकार और चर्चित पुस्तक नंदीग्राम डायरी के लेखक तौर पर है)