सिलाव का खाजा बना बिहार की मिठाइयों का महाराजा




सिलाव खाजा

सिलाव खाव खाजा हुआ जीआई (General Indications) रजिस्ट्री से पंजीकृत, बिहार की मिठाइयों में पहला जिसको मिला यह टैग

शादी ब्याह में शगुन के तौर पर दिया जाने वाला सिलाव खाजा अब न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन मिठाइयों में शामिल हो गया जिसकी मानकता पर सरकारी मुहर लग गयी है. खाजा में सिलाव के खाजा को राष्ट्रीय-अंतररष्ट्रीय पहचान पहले से मिली हुई है लेकिन जीई मार्क मिलने के बाद अब इसे दूसरी जगह इस नाम से नहीं बनाया जा सकता.



सिलाव खाजा को यह पहचान चेन्नई स्थित भारत सरकार की महानियंत्रक एकस्व अभिकल्प एवं व्यापार चिन्ह औद्योगिक नीति एवं वाणिज्य मंत्रालय (Office of the Controller General of Patents, Designs & Trade Marks, Department of Industrial Policy & Promotion, Ministry of Commerce & Industry) से मिली है. यह संस्था यह तय करती है कि कोई सामान किसी विशेष स्थान से संबंधित है और इस तरह से वह उस स्थान से दूसरी जगह निर्यात किया जा सकता है. इसमें रजिस्टर होने के बाद उस सामान के बारे में निश्चित होता है कि यह सामान गुणवत्ता वाला है. इसके अतिरिक्त अब इस तरह का सामान इसी नाम से कहीं और बनाया नहीं जा सकता है.

सीएम नीतीश कुमार की पहल पर गठित बिहार विरासत विकास समिति ने सिलाव के खाजा को जीआई टैग दिलाने में ख़ास भूमिका निभाई है. समिति ने सिलाव खाजा औद्योगिक स्वावलंबी सहकारी समिति के माध्यम से जीआई रजिस्ट्री (चेन्नई) को जीआई टैग के लिए आवेदन भेजा था.

विरासत समिति ने सिलाव खाजा को ऐतिहासिक बताया है. समिति का कहना है कि यह मिष्ठान नालंदा के इतिहास जितना पुराना हो सकता है. सिलाव खाजा की प्राचीनता का प्रमाण के रूप में लिखित दस्तावेज़ के तौर पर ब्रिटिश पुराविद बेगलर द्वारा 1872 में सिलाव खाजा के बारे में नोट को पेश किया गया. जीई रजिस्ट्री के लिए यह प्रमाण पंजीकरण के लिए पर्याप्त पाया गया.

बिहार में और कई उत्पाद जीई मार्क वाले

बिहार के कई उत्पाद पहले से इस मार्क वाले हैं. मुजफ्फरपुर की लीची, भागलपुर का कतरनी चावल, तसर सिल्क, जरदालू आम, नवादा का मगही पान, सिक्की कला, सुजनी, मधुबनी पेंटिंग्स और एप्लिक वर्क को पहले से यह मार्क मिला हुआ. मिष्ठान में सिलाव का खाजा पहला है.

सिलाव बिहार के नालंदा जिला में एक जगह का नाम है जहाँ के हलवाई इस मिष्ठान को तैयार करते हैं और पूरी दुनिया में यह भेजा जाता रहा है. आटे को कई परत में बेल कर इसे घी में तल कर इसको कुरकुरे बनाए जाते हैं और इसमें चीनी की चाशनी लगाई जाती है.

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