
लॉकडाउन के दौरान सरकार की उपेक्षा के कारण प्रवासी मजदूरों, महिलाओं, बच्चों की भूख और कोरोना बीमारी से हुई मौत की भर्त्सना करते हुए पटना समेत बिहार के विभिन्न जिलों में मौन सत्याग्रह चलाया गया. इसके माध्यम से सरकार द्वारा अराजक तरीके से किये गए लॉकडाउन तथा उसके बाद उत्पन्न परिस्थितियों में सरकार की नाकामियों के प्रति विरोध प्रदर्शित किया गया. साथ ही साथ सरकार के असंवेदनशील निर्णयों के दुष्परिणामस्वरुप जान गंवाने वाले मजदूरों, महिलाओं, बच्चों आदि के प्रति शोक व्यक्त करने के लिए 2 मिनट का मौन किया गया.
लोगों ने छोटेछोटे समूह में सुरक्षित दूरी का ध्यान रखते हुए काली पट्टी बाँध कर अपनी सहानुभूति दर्ज किया. इस कार्यक्रम का आयोजन जिला, प्रखण्ड, पंचायत, खेत – खलिहान, चौराहा, गली, सड़क, घर, मनरेगा कार्यस्थल, जन वितरण राशन दुकान, एफ़सीआई गोदाम आदि स्थानों पर किया गया.
इस मून प्रदर्शन को भोजन का अधिकार अभियान (बिहार) ने पूरे बिहार में और रोजी रोटी का अधिकार अभियान द्वारा यह कार्यक्रम देश भर में एक ही समय पर आयोजित किया गया.
पटना के अलावा इस कार्यक्रम का आयोजन बिहार के विभिन्न जिलों – जमुई, समस्तीपुर, गया, बेतिया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, सुपौल, सिवान आदि में भी किया गया.
पटना स्थित सामाजिक कार्यकर्त्ता रुपेश कुमार ने कहा कि सरकार द्वारा कोविड-19 के संक्रमण की रोकथाम के नाम पर आनन-फानन में देशव्यापी लॉकडाउन किया गया. बिना किसी पूर्व तैयारी के किए गए लॉकडाउन के कारण देश भर में अफरा – तफरी का माहौल बना. सरकार द्वारा कई हफ्तों तक अनिर्णय की स्थिति बनी रही, मानवसंसाधन और समुचित दिशानिर्देश के अभाव में आम लोग- बच्चे, बूढ़े, मजदूर, छात्र, गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चों वाली माताएँ, बीमार, विकलांग आदि अपने संसाधनों से किसी तरह घर पहुँचने के लिए सड़कों पर निकल गए. इनके लिए संसाधनों व सुविधाओं और राहत की व्यवस्था की जगह उनके साथ अमानवीय बर्ताव किया गया. स्थानीय प्रशासन व पुलिस द्वारा लगातार मजदूरों के साथ मारपीट, आधे रास्ते से वापस भेजने, मजदूरों का समूहिक सेनीटाइज़ (मेरठ में सभी मजदूरों को हानिकारक केमिकल से नहलाया गया) आदि किया गया. सरकार की आमनवीय रवैये से 22 मई तक देश भर में 667 मौतें हुयी जिनका कारण कोविड संक्रामण नहीं है बल्कि सड़क दुर्घटना – 205, भूख और लॉकडाउन से – 114 मौतें हुई। इसके अलावा पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में आए चक्रवात ने दोहरा कहर बरसाया है। इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार का रवैया ढुलमुल और संवेदहीन है।
उनहोंने कहा कि बिहार में श्रमशक्ति का लगभग 96 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र के कामगार हैं। अप्रत्याशित लॉकडाउन की स्थिति में मजदूरों की दैनिक आर्थिक गतिविधियों के अभाव में उनकी स्थिति चरमरा गई। रोज कमाने खाने वाले लोगों तथा उनके आश्रितों के भोजन पर आफत हो गया, बच्चे, बूढ़ों, महिलाएं भूख के साथ जीने के लिए मजबूर हुये और विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार लोगों की भूख से मौतें भी हुई। उदाहरण के लिए मुजफ्फरपुर स्टेशन में महिला की मौत, सूरत से सीवान आने वाली मजदूर स्पेशल ट्रेन में 7 लोगों (बच्चे, जवान, महिलाओं) की भूख की मौत सबके सामने है।
बिहार सरकार के एक आंकड़े का हवाला देते हुए उनहोंने कहा कि लगभग 17 लाख प्रवासी मजदूर देश के अलग-अलग शहरों में फंसे हुये थे। लगभग 65 दिन के लॉकडाउन के बाद मजदूरों को वापस बुलाया जा रहा है। इस दौरान हजारों की संख्या में मजदूर पैदल, रिक्शा व ठेला से, ऑटो आदि से स्वयं घर आए। इस दौरान घर आने वाले मजदूरों को स्थानीय स्कूलों में क्वारेंटीन किया गया है। परंतु विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अधिकांश क्वारेंटीन केन्द्रों में बुनियादी सुविधाएं नहीं होने की वजह से वहाँ 14 दिनों तक रह पाना मुश्किल है। मजदूरों को जिस कवायद से लाया जा रहा है वह बहुत ही अमानवीय है। मजदूरों से भाड़े लिए जा रहे हैं। 1 या दो दिनों की यात्रा में 9 से 16 दिनों तक लग रहे हैं। ट्रेनों का परिचालन भी बेहद गैरज़िम्मेदाराना है। कई ट्रेनें अपने गंतव्य से भटक कर हजारों किलोमीटर दूर दूसरे राज्य पहुँच गए। बलिया जाने वाली ट्रेन गुजरात पहुँच गयी।
उनका कहना है कि मजदूरों के वापस घर आने के बाद सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ये होगी की इन मजदूरों को उनके घरों में भोजन, स्वास्थ्य तथा अन्य जरूरतों की पूर्ति कैसे की जाएगी। इन मजदूरों के आजीविका की व्यवस्था करना एक महत्वपूर्ण चुनौती होगा। कोविड-19 के संक्रमण का जिस तरह से प्रचार किया गया उसका खौफ सामुदायिक स्तर पर लोगों में भेदभाव को बढ़ाएगा। जिसका परिणाम समाज और समुदाय पर लंबी अवधि तक रहेगा। विभिन्न क्षेत्रों से कई ऐसी घटनाओं की खबर आ रही है जिसमें समुदाय अथवा परिवार के सदस्य अपने परिजनों के साथ भेदभाव किया गया।
उनहोंने कहा कि भारत सरकार द्वारा राहत पैकेज के नाम पर घोषित 20 लाख करोड़ रुपये की घोषणा की गई है। वित्तमंत्री द्वारा 4 दिनों तक इस पर प्रेस कोन्फ्रेंस किया गया। पूरी राशि की अगर माइक्रो विश्लेषण किया जाये तो पता चलता है कि इस राशि में असंगठित क्षेत्र के कामगारों को कोई राहत नहीं मिल पाएगा।
सामाजिक संगठनों की मांगें
अपने मौन प्रदर्शन ने सामाजिक संगठनों की ओर से राज्य और केंद्र सरकार से कई मांगें की गयी हैं.
- देश में कुपोषण की स्थिति को ध्यान में रखते हुये सभी व्यक्ति को उसके उम्र, क्षेत्र, शारीरिक व मानसिक श्रम के अनुसार इंडियन मेडिकल काउंसिल द्वारा अनुसंषित प्रति दिन औसतन पोषण उपलब्ध करना चाहिए। इसके लिए जन वितरण प्रणाली को सार्वभौम करते हुये इसके तहत कम से कम 35 किलो अनाज, 2.5 किलो दाल, 2 लीटर खाद्य तेल, नमक, चीनी, मसाले तथा अन्य आवश्यक खाद्य समग्रियों की वितरण सुनिश्चित किया जाए।
- जरूरत की सभी सामानों को – कपड़ा, पोशाक, जूता-चप्पल, साबुन, सर्फ तथा विटामिन (ए., बी., सी.) आदि को जन वितरण प्रणाली में शामिल किया जाए।
- राशन कार्ड को पोर्टेबल बनाया जाए अर्थात कोई लाभार्थी राशन कार्ड दिखाकर देश के किसी भी राज्य में राशन पाने का हकदार होगा।
- समुदाय स्तर पर पोषण मैपिंग कर स्थानीय कार्यवाही योजना का निर्माण हो। समुदाय में पोषण आदतों को बढ़ाने के लिए जन जागरूकता कार्यक्रम का संचालन किया जाए।
- आँगनबाड़ी केन्द्रों से बंटने वाले पोषण योजना के राशन को सार्वभौम किया जाए अर्थात 6 से 59 माह तक के सभी बच्चों को आंगनबाड़ी केन्द्रों से समुचित मात्रा में पोषण उपलब्ध कराई जाए। इसके लिए बच्चों और महिलाओं को अंगनबाड़ी केन्द्रों से अंडा, फल तथा सोयाबीन आदि दिया जाना चाहिए।
- सरकार द्वारा सभी बीमारियों का एक नागरिक डाटा बैंक बनाया जाए। सभी नागरिकों का प्रत्येक माह स्वास्थ्य जांच किया जाए जिसमें समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित किया जाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानदंडों के अनुसार देश में सुविधाएं – प्रति हजार बेड संख्या, डॉक्टरों व स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ाई जाए। जन स्वास्थ्य सेवाओं के स्थानीय स्तर पर सुदृढ़ करने के लिए समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित किया जाये।
- मातृव्य लाभ योजना को एनएफ़एसए 2013 के अनुसार सार्वभौम करते हुये इसकी राशि को 6000 रुपए किया जाए।
- मध्याह्न भोजन योजना में हरी पत्तेदार सब्जियों व मौसमी फलों के साथ-साथ अंडा, दूध जैसे पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाए।
- खाद्यान्न के उत्पादन, खरीद, भंडारण व वितरण की व्यवस्था को पंचायत स्तर पर सुनिश्चित किया जाये।
उनहोंने कहा कि 2 जून से 7 जून तक “सरकार से जबाब दो – जबाबदेही लो” अभियान पूरे देश में चलाया जा रहा है।