
पटना (बिहार): सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के अवसर पर उन्हें पूरे देश में जहाँ याद किया गया वहीँ छोटे कसबे में उन्हें शिद्दत और श्रद्धा के साथ याद किया गया.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 122 वीं सालगिरह के अवसर पर पैग़ाम कल्चरल सोसाइटी के तत्वावधान में, बेस्ट पब्लिक स्कूल, ईसापुर, फुलवारी शरीफ, पटना के प्रांगण मे जयंती समारोह का आयोजन किया गया. सभा की अध्यक्षता प्रख्यात बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता और द मॉर्निंग क्रॉनिकल के पैट्रन फिरोज़ आलम सिद्दीकी ने की तथा सुरेश फुलवारवी ने सभा का संचालन किया. मुख्य अतिथि के तौर पर सेवानिवृत्त आई ए एस अधिकारी तथा पूर्व सचिव बिहार सरकार रशीद अहमद खान मौजूद रहे.
रशीद अहमद खान ने बताया कि उस जमाने की सर्वाधिक पावरफूल नौकरी आई सी एस का त्याग कर देशसेवा का का व्रत धारण करना, नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे जुझारू स्वतंत्रता सेनानी ही कर सकते थे. इंडियन नेशनल कांग्रेस में गांधीजी और उनके अनुयायियों से मतभेद के बाद इस्तीफा देकर अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकते हुए, जंगलों, पहाड़ों को लांघते हुए, पेशावर, काबुल, जर्मनी तथा इटली होते हुए सिंगापुर जाकर रासबिहारी बोस सरीखे क्रांतिकारी से मिलना तथा आज़ाद हिंद फौज का संचालन करना, एक स्वप्न की भांति लग सकता है, पर यह हकीकत है, इतिहास है. इतना मुश्किल और खतरनाक काम नेताजी जैसे क्रांतिकारी ही कर सकते थे.
उनहोंने कहा कि आज इतिहास से ऐसे योद्धाओं का नामोनिशान मिटाकर, अंग्रेजों के चाटुकारों व मुखबिरी करने वालों से इतिहास के पन्नों को भरने की साजिश योजनाबद्ध तरीके से की जा रही है, जो चिंता की बात है. नेताजी सार्वजनिक जीवन तथा राजनीति में जात पात या धर्म के घालमेल के सख्त खिलाफ थे. यही कारण है कि हर जाति और मज़हब के अनुयायी उनके सामने नतमस्तक थे.
पैग़ाम कल्चरल सोसाइटी के वरीय सदस्य व सामाजिक कार्यकर्ता दीपनारायण लाल ने बताया कि नेताजी की आजादी और गांधीजी की आजादी में फर्क था. गांधीजी जहां समझौता के माध्यम से आजादी चाहते थे, वहीं नेताजी सुभाषचंद्र बोस संघर्ष के माध्यम से सम्पूर्ण आजादी चाहते थे, ताकि देश में कोई भूखा या नंगा न रहे.
इनके अलावे डॉ. हसन इमाम तथा जनाब ज़फ़र इमाम मोग़नी ने सभा को सम्बोधित किया. विद्यार्थी मो. अफरीदी ने स्वरचित कविता की प्रस्तुति दी. सभा में करीब सौ से ऊपर विद्यार्थी एवं पचास की संख्या में स्थानीय नागरिक तथा नौजवान उपस्थित थे. सभा के अंत में अध्यक्ष महोदय ने बच्चों से निम्न पंक्तियों का पाठ कराया — “नन्हा मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं, बोलो मेरे संग,, जयहिन्द, जयहिन्द, जयहिन्द.”
बच्चों ने उत्साहपूर्वक दोहराया. आखिर में उन बच्चों को पुरस्कार दिए गए, जिन बच्चों ने पिछले दिनों नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन-संघर्ष पर आधारित क्विज़ प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन किया था.