
– सैयद ओबैदुर रहमान
मुसलमानों का मीडिया ट्रायल कोई नई बात नहीं. आए दिन कोई न कोई कारण से इस समुदाय पर मीडिया में निराधार आरोप लगते ही रहते हैं. दो दिन पहले एक मुस्लिम विरोधी टीवी चैनल ने देश के सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित संघ में मुसलमानों के प्रवेश को जिहादी प्रकरण बताया. इसकी सच्चाई क्या है इस पर सैयद ओबैदुर रहमान की यह टिप्पणी...
सुदर्शन टीवी अपने मुस्लिम विरोधी कर्कश आवाज़ के लिए बहुत लंबे समय से जाना जाता है। इस टेलीविजन चैनल के किसी भी कार्यक्रम पर एक नज़र डाल कर आप इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। यह शीर्ष टीवी चैनलों में से नहीं है और इसलिए अर्नब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी की तरह बहुत ज़्यादा लोग इसके बारे में बात नहीं करते हैं जो किसी न किसी कारण हमेशा सुर्ख़ियों में रहता है।
लेकिन, 26 अगस्त को, अपने आगामी शो के ट्रेलर को हैशटैग ‘UPSC जिहाद’ के साथ ट्वीट करने के बाद, सुदर्शन टीवी के मुख्य संपादक सुरेश चव्हाणके प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन सभी तरह की मीडिया में छाए रहे. अपने शो के बारे में उनका दावा था कि यह सिविल सेवा में “मुसलमानों की घुसपैठ” पर एक “भंडाफोड़” है. इस वीडियो में जो उन्होंने ट्वीट के साथ जारी किया था, सुरेश चव्हाणके जामिया की कोचिंग आरसीए से संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में सफल हुए छात्रों को “जामिया के जिहादी” के रूप में सबोधन कर रहे थे।
मुस्कराहट के साथ, वह अपने दर्शकों और जो कोई भी उन्हें सुनने के लिए तैयार था, वह बता रहे थे कि वह सिविल सेवा में मुसलमानों के घुसपैठ के बारे में एक बड़ा खुलासा करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि सिविल सेवाओं में प्रवेश करने वाले मुसलमानों की संख्या अब तक की सबसे बड़ी संख्या है और यह एक खतरनाक योजना के तहत है। इस तथ्य को बताने के लिए कि वह बहुत पहुँच वाले हैं उन्होंने अपने इस ट्वीट में न केवल प्रधानमंत्री मोदी को टैग किया, बल्कि वह कई मौकों पर मोदी और अन्य केंद्रीय मंत्रियों के साथ अपनी तस्वीर भी ट्वीट करते रहे हैं।
इस बीच, जामिया टीचर्स एसोसिएशन (JTA), IPS ऑफिसर्स एसोसिएशन और IAS अधिकारियों के संघ और समाज के विभिन्न वर्गों से कड़ी निंदा वाले वीडियो और ट्वीट भी आए। जामिया टीचर्स एसोसिएशन ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि यह “विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुरोध करता है कि वह देश और जेएमआई विरोधी टिप्पणी करने के लिए सुदर्शन टीवी के मालिक और मुख्य संपादक, देश के गद्दार सुरेश चव्हाणके पर आपराधिक मानहानि का केस करे.
JTA की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि, “25 अगस्त, 2020 को सुरेश चव्हाणके के ट्विटर हैंडल के माध्यम से एक ट्वीट और एक वीडियो संदेश पोस्ट किया गया। वीडियो में ट्वीट और भाषा राष्ट्र विरोधी है जो यूपीएससी की पूरी चयन प्रक्रिया पर बहुत ही आपत्तिजनक शब्दों में आरोप गढ़ने वाला है। इसमें भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में मुसलमानों की भर्ती को भी निशाना बनाया गया और उनके साथ ‘जिहादी’ शब्द जोड़ा गया और यह उकसाया गया कि कोई मुसलमान कैसे भारतीय प्रशासनिक अधिकारी बन सकता है। जामिया के आवासीय कोचिंग अकादमी का नाम बदनीयती के साथ लेते हुए, सुरेश चव्हाणके ने जामिया से चुने गए भारतीय अधिकारियों को “जामिया का जिहादी” कहा। सुदर्शन न्यूज के उक्त सीएमडी द्वारा कई अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जो खुले तौर पर उकसाने वाले हैं, साथी नागरिकों के खिलाफ जहर उगलते हैं, और भारत के लोगों को विभाजित करने की कोशिश करते हैं… जेटीए उक्त ट्वीट और प्रचार वीडियो की यथासंभव कड़े शब्दों में निंदा करता है। जेटीए जेएमआई प्रशासन से उनके खिलाफ आईपीसी और यूएपीए की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर की प्रक्रिया करने और आपराधिक मानहानि के मामलों की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध करता है।
इसी बीच, जामिया पीआरओ अहमद अज़ीम ने कहा कि हाल ही में जेएनयू से बेहतर दर्जा पाने वाले, देश के सर्वश्रेष्ठ केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थान पाने वाले जामिया पर सुदर्शन टीवी द्वारा लांछन लगाने को लेकर उच्च अधिकारियों से संपर्क किया गया है। “हमने शिक्षा मंत्रालय को पूरे प्रकरण के बारे में सूचित करते हुए लिखा है और उनसे उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया है। हमने उन्हें बताया कि सुदर्शन चैनल ने न केवल जेएमआई और एक विशेष समुदाय की छवि को धूमिल करने की कोशिश की है, बल्कि यूपीएससी की छवि को भी धूमिल करने का प्रयास किया है।“
हालांकि हमारे देश में मुसलमानों का मीडिया ट्रायल कोई नई बात नहीं है और उन्हें हर दिन कोई न कोई बात को लेकर किसी न किसी आज़माइश में डाला जाता है, मीडिया में जो कुछ भी हो रहा है वह घिनौना है और भरोसा करने लायक नहीं है। पिछले कुछ महीनों में हमने देखा कि तब्लीगी जमात पर हमले की आड़ में नॉवेल कोरोनावायरस के प्रसार के लिए देश में मुस्लिम समुदाय को कैसे जिम्मेदार ठहराया गया है। कई राज्य सरकारों ने तब्लीगी जमात को इसका शिकार बनाया, यहां तक कि उनके खिलाफ कोई मामला न होने पर भी उन्हें बड़ी संख्या में कैद किया गया। तबलीग के कई विदेशी प्रतिनिधि अभी भी गिरफ्त में हैं। यह तबलीगी जमात के खिलाफ अफ़वाह का और मनगढ़ंत आरोप लगाने वाला अभियान था जो देश का सबसे बड़ा गैर राजनीतिक संगठन है।
इस विद्वेषपूर्ण प्रचार ने बॉम्बे उच्च न्यायालय को नोटिस लेने और इस तरह की कहानी गढ़ने वालों के खिलाफ सख्ती से टिप्पणी करने के लिए मजबूर किया। अदालत ने कहा कि, “एक राजनैतिक सरकार बलि का बकरा ढूंढने की कोशिश करती है, जब कोई महामारी या विपत्ति आती है और हालात बताते हैं कि इस बात की संभावना है कि इन विदेशी लोगों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया था,” अदालत ने उन 29 विदेशियों के तीन अलग-अलग याचिकाओं के आदेश में ऐसा कहा जिन पर वीजा की शर्तों और महामारी अधिनियम के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने कहा कि, “जिन दस्तावेजों पर चर्चा की गई, उससे पता चलता है कि विदेशी या भारतीय मुसलमानों द्वारा ऐसा कोई उपद्रव नहीं किया गया था और केवल दूसरों द्वारा उनके खिलाफ एक तरह का माहौल बनाने का प्रयास किया गया था”। अदालत ने “बड़े”, “अनुचित”, “मीडिया प्रचार” पर भी तीखी टिप्पणी किया और कहा कि “एक तस्वीर बनाने का प्रयास किया गया था कि ये विदेशी भारत में कोविड-19 वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार थे।”
सिविल सर्विसेज परीक्षा में सफल होने वाले मुसलमानों पर घिनौने हमले को देखकर और अधिक आश्चर्य होता है। इस साल 829 उम्मीदवारों में से केवल 41 मुस्लिम उम्मीदवारों ने सिविल सेवाओं की परीक्षा में सफलता हासिल किया जिनकी सिफ़ारिश भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), और केंद्रीय सेवा समूह (A) और समूह (B) के पद पर नियुक्ति के लिए की गई है. बहुत आश्चर्य की बात है कि जामिया के आवासीय कोचिंग अकादमी (आरसीए) पर यह हमला हुआ जो यूपीएससी में अच्छी संख्या में छात्रों को भेजने वाले अधिक सफल कोचिंग केंद्रों में से एक है। इस साल जामिया के आरएसी के 30 छात्रों ने सिविल सेवा परीक्षा पास की। 30 में से केवल 16 मुस्लिम हैं, बाकी हिंदू हैं।
जामिया कुलपति जामिया विरोधी इन निराधार आरोपों से बहुत आहत हैं. “जहां तक हमारे छात्रों का सवाल है, आरसीए के 30 छात्रों को इस बार चुना गया था, जिनमें से 16 मुस्लिम और 14 हिंदू हैं। चूँकि उन सबको जिहादी बुलाया गया, इसका मतलब है कि 16 मुस्लिम जिहादी हैं और 14 जिहादी हिंदू हैं। भारत को जिहादियों की नई धर्मनिरपेक्ष परिभाषा दी गई है।“
ऐसा दशकों में पहली बार है कि सिविल सेवाओं में योग्य होने वाले मुस्लिमों के अनुपात में मामूली वृद्धि दिखाई पड़ी है। भारत में मुस्लिम की आबादी 15 प्रतिशत है इसलिए आदर्श रूप से सभी स्तरों पर इनका प्रतिनिधित्व कम से कम 15 प्रतिशत होना चाहिए। हालाँकि, दशकों से, इस समुदाय को शासन के सभी स्तरों पर प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं मिला बल्कि इसके अनुपात में भी तेज़ी से कमी आती गयी। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में पाया गया था कि मुसलमानों को IAS में केवल 3%, IFS में 1.8% और IPS में 4% ही स्थान मिला। इनका प्रतिनिधित्व अन्य सभी क्षेत्रों में भी कम रहा। भारतीय रेल में केवल 4.5%, पुलिस बल (कांस्टेबल) में 6%, स्वास्थ्य में 4.4% और परिवहन में केवल 6.5 प्रतिशत का इनका प्रतिनिधित्व रहा है।
निजी नौकरी के बाज़ार में भी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। अमिताभ कुंडू जिन्होंने पोस्ट-सच्चर मूल्यांकन समिति का संचालन किया था, जिसको आमतौर पर कुंडू समिति कहा जाता है, ने भारत में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की पड़ताल की थी। उनका कहना है कि “मुसलमान नौकरी के बाजार में सबसे वंचित हैं. उनकी स्थिति शहरी क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) से भी बदतर है. यहां तक कि देश में कुछ साल पहले जिस सकारात्मक कार्रवाई (affirmative action) ढांचे की बात की गई थी, जिसको निजी क्षेत्र में पिछले एक दशक में अपनाने और लागू करने के लिए प्रेरित किया गया, काफी हद तक दलितों पर केंद्रित है, मुसलमानों को पूरी तरह से उनकी अपनी बैसाखी पर छोड़ दिया गया। यह पक्षपात व्यापक और गहरा है।
(सैयद ओबैदुर रहमान दिल्ली में रहते हैं, लेखक और टिप्पणीकार हैं. उनकी आगामी पुस्तक रेशमी रूमाल तहरीक पर बल देते हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उलेमा की भूमिका पर अक्टूबर में प्रकाशित होने वाली है. यह मूलतः Sify.com में प्रकाशित अंग्रेज़ी आलेख का अनुवाद है जो द मॉर्निंग क्रॉनिकल की अनुवादक टीम ने किया है. यदि आप अपने किसी दस्तावेज़, आलेख का अनुवाद वाजिब दर पर किसी भी भाषा में करवाना चाहते हैं तो tmcdotin@gmail.com पर पूछताछ कर सकते हैं.)