सुशासन बाबू का बिहार बना कुशासन मॉडल




बिहार पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में साल 2018  के 10 महीनों में हत्या के कुल 2522 मामले, चोरी के कुल 25472 मामले, अपहरण के 8804 मामले, बलात्कार के 1304 मामले दर्ज किए गए. केवल मई में दंगा के 1281 मामले दर्ज किए गए. 

 

बिहार में सुशासन मॉडल अब कुशासन मॉडल में बदल गया है. नीतीश कुमार की सरकार जब से भाजपा के गठबंधन के साथ बनी है तब से स्थिति और भी बदतर हो गयी है.

बिहार का कोई ऐसा समाचारपत्र नहीं है जिसमें कम से कम दो चार हत्याओं, चोरी और छीन झपट, एटीएम चोरी इत्यादि की खबर न हो. बिहार पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि सूबे में प्रतिदिन औसतन 8 से ज्यादा लोगों की हत्या हो रही है, 4 से अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है, क़रीब 85 घरों पर प्रतिदिन चोर अपने हाथ साफ़ कर रहे हैं. राज्य में रोज़ क़रीब 30 की औसत से दंगों की वारदात हुई है. सड़कों पर चलने वाले सुरक्षित नहीं हैं. प्रतिदिन करीब 4 लोगों के साथ सड़कों पर लूट की घटना को अंजाम दिया गया और औसतन 29 लोगों का प्रतिदिन अपहरण हुआ. बिहार पुलिस ने जनवरी से अक्टूबर, 2018 के बीच राज्य में हुई आपराधिक घटनाओं का जो आंकड़ा जारी किया है, उससे यह तस्वीर नज़र आ रही है.



बिहार पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में साल 2018  के 10 महीनों में हत्या के कुल 2522 मामले दर्ज हुए हैं. जनवरी में जहाँ 178 मामले दर्ज हुए हैं, वहीँ अक्टूबर में 227 मामले दर्ज हुए. इसी तरह चोरी के कुल 25472 मामले दर्ज हुए. वहीँ, अक्टूबर में 673 मामले दर्ज किए गए. सबसे ज्यादा दंगा का मामला 1281 मई महिना में दर्ज किया गया. इसी तरह राज्य में अपहरण के 8804 मामले दर्ज किए गए. जनवरी में यह आंकड़ा 584 था, जो अक्टूबर में बढ़कर 827 हो गया. वहीँ जून में अपहरण के 1060 मामले दर्ज हुए. 10 महीने में बलात्कार के कुल 1304 मामले दर्ज किए गए. जनवरी में यह आंकड़ा 584 था, जो अक्टूबर में बढ़कर 827 हो गया. वहीँ जून में अपहरण के 1060 मामले दर्ज हुए. 10 महीने में बलात्कार के कुल 1304 मामले दर्ज किए गए. जनवरी माह में जहाँ 74 मामले दर्ज हुए. वहीँ, फ़रवरी में 88, मार्च में 127, अप्रैल में 139, मई में 184, जून में 170, जुलाई में 164, अगस्त में 119, सितम्बर में 116 और अक्टूबर में 123 मामले दर्ज हुए.

आंकड़ा 1 अक्टूबर, 2018 तक का ही दिया गया है. ये सब ऐसे मामले हैं जो रिपोर्टेड हैं. इनमें ऐसे असंख्य मामले हैं जिनकी रिपोर्टिंग नहीं हुई है. ज़मीन को लेकर धोखाधड़ी के असंख्य मामले हैं. साइबर क्राइम के सैकड़ों मामले ऐसे हैं जिनका थाना एफ़आईआर दर्ज भी नहीं करती.

1 अक्टूबर के बाद के आंकड़े भले ही न हों लेकिन विभिन्न रिपोर्टों से पता चलता है कि बिहार में कुशासन ने अपनी जड़ जमा ली है. लालू राज को जंगल राज कहने वाली मीडिया ने बस इसे जंगल राज कहना नहीं शुरू किया है क्योंकि जद-यू के पास प्रशांत किशोर जैसे मीडिया प्रबंधक मौजूद हैं.

(जनसत्ता से इनपुट के साथ)

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