बिहार नहीं सीधे दिल्ली में सड़क पर क्यों उतरे तेजस्वी?




दिल्ली के जंतर मंतर पर तेजस्वी यादव संबोधित करते हुए

-मनीष शांडिल्य

“मुजफ्फरपुर यौन शोषण कांड के सड़क पर विरोध की बात करें तो तेजस्वी यादव ने सीधे दिल्ली में पैराशूट लैंडिंग की है. तेजस्वी ने इससे पहले घटना के दो महीने बाद मुजफ्फरपुर जाने और बयान देने के अलावा इस रेप कांड के खिलाफ कोई और पहलकदमी  नहीं की थी.

इस सत्ता संरक्षित अपराध को लेकर कई राजद पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में वैसी ही बेचैनी थी जैसी कि हर सचेत और संवेदनशील नागरिक में है. इनमें से कुछ ने मामला सामने आने के तुरंत बाद ही पार्टी और तेजस्वी से सड़क पर उतरने को कहा था. ऐसे एक पदाधिकारी को तब जवाब मिला था कि अरे आप ट्वीटर नहीं देखते हैं क्या?

खैर सोशल मीडिया और बयानों से आगे बढ़ते हुए देर से ही सही राजद ने 2 अगस्त के वाम दलों के बिहार बंद को न केवल समर्थन किया बल्कि इसमें सक्रिय रूप से भाग भी लिया मगर तेजस्वी सड़क पर नहीं उतरे. माना जा रहा है कि दूसरे दलों द्वारा बुलाए बंद में शामिल होकर वे कम-से-कम बिहार में नेतृत्वकारी से सहयोगी की भूमिका में नहीं आना चाह रहे थे.

तेजस्वी जंतर मंतर पर विपक्षी नेताओं के साथ

हालांकि तेजस्वी एक चतुर और व्यवहारिक नेता की तरह अपना कद आगे-पीछे करने से गुरेज नहीं करते हैं. शनिवार को जंतर-मंतर पर धरने का संचालन कर रहे राजद सांसद मनोज झा ने तेजस्वी के भाषण से पहले ही राहुल गांधी को बोलने के लिए बुलाया. इस पर तेजस्वी ने मंच से ही कहा कि वह पहले बोलना चाहते हैं और फिर वह खड़े हो गए. माना जा रहा है कि ऐसा कर तेजस्वी ने अपने आयोजन में स्वयं का कद राहुल से ‘छोटा’ रखना तय किया क्यूंकि माना जाता है कि किसी भी ऐसे आयोजन में सबसे आखिर में बोलने वाला ही सबसे बड़ा नेता होता है.

इन सबके बीच इन आलोचनाओं में दम दिखता है कि मुजफ्फरपुर के वीभत्स मामले में विरोध का मुख्य चेहरा बनने के लिए तेजस्वी ने दिल्ली का जंतर-मंतर चुना. साथ ही इसका एक मकसद दिल्ली की राजनीति में पैर रखना भी रहा होगा. तेजस्वी के हिसाब से अच्छी बात ये रही कि मामले की गंभीरता और देश के राजनीतिक हालात को देखते हुए उन्हें अपने सचेत प्रयास में विपक्ष के समर्थन के हिसाब से पूरी कामयाबी मिली. करीब तीन महीने पहले कर्नाटक में एचडी कुमारास्वामी के शपथग्रहण में ग्यारह विपक्षी दलों के नेता एक साथ मंच पर थे तो शनिवार के धरने में नौ दलों के नेता शामिल हुए. इनमें राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और सीताराम येचुरी जैसे बड़े नेता शामिल थे.

दिलचस्प यह भी है कि नीतीश कुमार की मुजफ्फरपुर मामले में पहली प्रतिक्रया ने भी तेजस्वी यादव को एक अच्छा मौका दे दिया. दरअसल नीतीश की पहली प्रतिक्रिया तेजस्वी के दो दिन पुराने चुनौती के बाद आई है. एक अगस्त की रात तेजस्वी ने अपने ट्वीट में लिखा था, ‘‘मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी की मुजफ्फरपुर बलात्कार कांड पर आपराधिक चुप्पी मैं तुड़वा कर रहूँगा. चाहे जो समय लगे.’’ और फिर तीन अगस्त को नीतीश कुमार की पहली प्रतिक्रिया आई कि मुजफ्फरपुर में ऐसी घटना घट गई कि हमलोग शर्मसार हैं.

वापस मुद्दे की बात करें तो के शनिवार के धरने का हासिल ये रहा कि इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर आवाज बुलंद हुई. अब देखना है कि विपक्ष एक नहीं दर्जनों बच्चियों को न्याय दिलाने के लिए आगे कितनी मजबूती से संघर्ष करता है. या यह कार्यक्रम महज रस्म अदायगी बन कर रह जाता है.

(लेखक युवा पत्रकार हैं.)

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