मोदी काल में, अधिकतर भारतीय मीडिया गुलामी के शिकंजे में: न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट




सुकृति द्विवेदी, NDTV की पत्रकार फ़रवरी में हुए दिल्ली में धार्मिक हिंसा की रिपोर्ट करते हुए (साभार: सौम्य खंडेलवाल/न्यू यॉर्क टाइम्स)

विंदू गोयल और जेफरी गेटेलमैन

 

मीडिया वन एंकरमैन विनेश कुनिरामन (Vinesh Kunhiraman) 6 मार्च को हमेशा की तरह भारत के केरल राज्य में स्टेशन के 50 लाख दर्शकों को उनके चहेते कॉमेडियन की पुण्यतिथि और कोरोनावायरस महामारी की ताजा खबरों के बारे में बताने के लिए तैयार थे।

प्रसारण के कुछ ही मिनटों में, उन्होंने अपने मैनेजिंग एडिटर को स्टूडियो फ्लोर पर आते देखा, जो बदहवास दिख रहे थे। “मुझे एहसास हुआ कि कुछ भी सही नहीं था,” श्री कुनिरामन चीज़ों को याद करके बता रहे थे।

स्टेशन का अपलिंक अचानक खत्म हो गया था। श्री कुनिरामन की तस्वीर की जगह पूरी स्क्रीन नीली हो गई थी। एक धुंधले संदेश में दर्शकों को बताया जा रहा था कि सिग्नल टूट चुके हैं। “हमें असुविधा के लिए खेद है,” उनहोंने कहा।

लेकिन यह कोई तकनीकी खराबी नहीं थी। भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के एक आदेश से स्टेशन का संपर्क काट दिया गया था। सरकार ने 48 घंटे के लिए चैनल को ब्लॉक करने का अचानक फैसला किया क्योंकि इसने फरवरी की सबसे बड़ी खबर – नई दिल्ली में मुसलमानों पर भीड़ के हमले जो व्यापक दंगे के तौर पर भड़के थे – को कवर किया था. यह कवरेज एक तरह से “दिल्ली पुलिस और आरएसएस पर आलोचना थी”, जो कि सरकारी आदेश में कहा गया था।

आर.एस.एस. एक हिंदू-राष्ट्रवादी सामाजिक आंदोलन है जिसका प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी से करीबी संबंध है।

मीडिया वन के संपादक आर. सुभाष ने कहा, “यह चौंकाने वाला था कि केंद्र सरकार ने ऐसा फैसला लिया।” “यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला था।”

READ In English: Under Modi, Press in India is not so free any more: A NY Times report

1947 में ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद से भारत में मुक्त प्रेस ने इस देश के लोकतंत्र की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद, वे कहते हैं, उनकी सरकार ने देश के समाचार मीडिया, विशेषकर एयरवेव्स (airwaves) को नियंत्रित करने की कोशिश की है, जो दशकों में किसी अन्य प्रधानमंत्री ने नहीं किया था। श्री मोदी ने मीडिया को इस बात के लिए तैयार किया कि वह उन्हें राष्ट्र के निस्वार्थ उद्धारक के तौर पर पेश करे।

साथ ही, उनके वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने कई न्यूज़ आउटलेट्स पर ताला लगवा दिया – संपादकों को बर्खास्त करवाया, विज्ञापन में कटौती की, कर जांच के आदेश दिए – और यह सब उनहोंने भारत के सहिष्णु, धार्मिक रूप से विविधता वाले देश को एक कट्टर हिंदू राष्ट्र में बदलने की उनकी पार्टी की मुहीम के बदसूरत पक्ष की अनदेखी करते हुए किया।

कोरोनावायरस महामारी के साथ, श्री मोदी न्यूज़ कवरेज को नियंत्रित करने के अपने प्रयास में और अधिक कठोर हुए हैं, और कुछ भारतीय न्यूज़ अधिकारी चुनौतीपूर्ण कहानियों के ना लाने में उनके साथ नज़र आ रहे हैं।

इससे पहले कि वह 1.3 बिलियन लोगों पर दुनिया के सबसे बड़े कोरोनावायरस लॉकडाउन की घोषणा करते, श्री मोदी न्यूज़ इंडस्ट्री से जुड़े शीर्ष अधिकारियों से मिले और उनसे सरकार के प्रयासों के बारे में “प्रेरक और सकारात्मक कहानियां” प्रकाशित करने का आग्रह किया। यह आग्रह कम और धमकी अधिक थी। उसके बाद, लॉकडाउन में 5 लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों के फंसे होने और हाईवे पर कुछ लोगों के मरने की खबर आने के बाद, उनके वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर इस बात के लिए इसे राजी किया कि सभी मीडिया कोरोनावायरस संक्रमण से जुडी वही ख़बर दिखाएं जिसमें सरकार की सहमती शामिल हो, हालांकि मीडिया को अब भी स्वतंत्र रिपोर्टिंग की अनुमति दी गयी है।

प्रमुख प्रसारकों का एक समूह अदालत के इस निर्णय से खुश नज़र आया और इसने इसकी प्रशंसा भी की लेकिन इस उद्योग से जुड़े कई बुद्धिजीवियों का कहना है कि यह भारत को संवैधानिक रूप से दी गयी बोलने की स्वतंत्रता की गारंटी पर एक और हमला था।

READ In English: Under Modi, Press in India is not so free any more: A NY Times report

एक सहयोगी के माध्यम से, भारत के सूचना और प्रसारण मंत्री, प्रकाश जावड़ेकर, शुरू में सरकार की मीडिया नीतियों पर चर्चा करने के लिए सहमत हुए। लेकिन तब से दो सप्ताह में, श्री जावड़ेकर ने किसी भी प्रश्न का उत्तर देने से इनकार कर दिया, जिसमें मेल की गयी प्रश्नों की एक सूची भी शामिल है। उनके सहयोगी ने इस का कारण कोरोनोवायरस संकट बताया।

भारत में मीडिया की दुनिया विशाल है, शायद दुनिया में सबसे बड़ा है: 17,000 से अधिक समाचार पत्र, 100,000 पत्रिकाएं, 178 टेलीविजन समाचार चैनल और दर्जनों भाषाओं में अनगिनत वेबसाइट। हजारों फेसबुक पेज खुद को समाचार प्रकाशक कहते हैं, और YouTube रियल एस्टेट के रुझान से लेकर पुलिस छापे तक सब पर स्थानीय बुलेटिन से भरा हुआ है।

लेकिन श्री मोदी के मंत्रियों ने स्वतंत्र मीडिया को दी जाने वाले सहायता में कटौती के लिए बड़े बिज़नस लीडर का सहारा लिया और धीरे-धीरे उनके कार्यों को संकुचित किया। उनकी सरकार ने उन मीडिया मालिकों पर दबाव डाला कि वह ऐसे पत्रकारों को बर्खास्त करें जो प्रधानमंत्री की आलोचना करते हैं और उनसे कहा गया कि नफरत फैलाने वाले ट्रैकर्स जो श्री मोदी की पार्टी को शर्मसार करते हैं को चलाना वह बंद करें।

श्री मोदी का इस काम में समर्थन करने के लिए एक बड़ी ऑनलाइन सेना मौजूद है जिनका काम ही स्वतंत्र पत्रकारों को बदनाम और परेशान करना है; महिला पत्रकारों से, विशेष रूप से, बदतमीज़ी करना  और बलात्कार की धमकियाँ तक देना है। गौरी लंकेश जिनकी पहचान भारत की सबसे लड़ाकू पत्रकारों में से एक के तौर पर होती थी की 2017 में हत्या कर दी गयी थी और पुलिस का कहना है कि इस हत्या के पीछे हिंदू राष्ट्रवादियों का ही हाथ था।

अन्य जनवादी नेताओं की तरह, श्री मोदी और उनके मंत्री किसी भी सार्वजनिक आलोचना पर आग बबूला हो जाते हैं, चाहे वह व्यापार जगत के दिग्गज हों, विदेशी नेता या स्कूली बच्चे ही क्यों न हों।

और अधिकांश भाग में, भारतीय न्यूज़ आउटलेट ने घुटने टेक दिए हैं यह मान कर कि चूंकि जनता प्रधानमंत्री का समर्थन करती है, उन्हें भी करना चाहिए। यहां तक ​​कि संशयवादी पत्रकार खुद को इस डर से रोक लेते हैं कि कहीं यह सरकार उन्हें राष्ट्र द्रोही न कह दे जो मोदी की आलोचना को देश की आलोचना मानती है।

उनकी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में अचानक और बिना स्पष्टीकरण के विदेशी पत्रकारों पर सख्त प्रतिबंध भी लगाए हैं। वीजा नियमों को कठोर बनाया गया है, और विदेशी पत्रकारों को अशांति के गढ़ पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने से प्रतिबंधित किया है. जम्मू कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य है जिसके स्वतंत्र राज्य का दर्जा छीन कर इसे महीनों तक कठोर लॉक डाउन में रखा गया.

कश्मीर की कहानी भूकंप लाने वाला था, लेकिन कई भारतीय पत्रकार जब इस पर बात करते हैं तो वह मानते हैं कि उनहोंने सरकार की वजह से मानवाधिकारों के गंभीर हनन की अनदेखी की।

READ In English: Under Modi, Press in India is not so free any more: A NY Times report

भारत के एक बड़े न्यूज़ एंकर, राजदीप सरदेसाई ने कहा, “हमने बड़ी कहानी के साथ न्याय नहीं किया।” “हमें वहां (कश्मीर) जाना चाहिए था और बिना डरे हुए और स्वतंत्र रूप से ग्राउंड रिपोर्टिंग करके स्थिति की जानकारी देनी चाहिए थी।”

श्री सरदेसाई ने कहा कि भारतीय पत्रकार कहां जा सकते हैं, इस पर सुरक्षा प्रतिबंध थे, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि यह इससे भी कहीं अधिक है।

भारतीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग,” उन्होंने कहा, “एक पालतू कुत्ता बन गया है, यह अब प्रहरी नहीं है।”

भारत में व्यापार मॉडल मदद नहीं करता है। 2014 में मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने से पहले, अखबार और टेलीविजन स्टेशन सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर होते थे, जिससे राजनीतिज्ञों को यह मौक़ा मिलता था कि वह उन्हें विज्ञापन देकर पुरस्कृत करें जो उनके समर्थन में हैं और अपने आलोचकों का विज्ञापन रोक कर उन्हें दंडित करें।

और मीडिया मालिक अक्सर अन्य व्यवसाय चलाते हैं, जिसके लिए उन्हें सरकार के पक्ष की आवश्यकता होती है, जिससे वह सत्ता पर प्रहार करने के लिए इच्छुक नहीं होते।

कोरोनोवायरस महामारी के कारण विज्ञापन और अख़बार की बिक्री में कमी आने के कारण समाचार संगठन अब संकट में फंस रहे हैं। सबसे स्वतंत्र समाचारपत्रों में से एक, द इंडियन एक्सप्रेस, ने वेतन में कटौती का फैसला किया है।

हालांकि ​​श्री मोदी लगातार बड़ी शेखी के साथ भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders press freedom index) के अनुसार भारत की प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में रैंकिंग 180 में से 140 है यानी 139 देशों से ज़्यादा यहाँ प्रेस की स्थिति ख़राब है और इसकी गिनती दुनिया के 50 सबसे ख़राब देशों में होती हैं।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की मीडिया प्रोफेसर शकुंतला बणाजी ने कहा, “पिछले छह वर्षों में, भारतीय मीडिया बिगड़ गया है।” “अधिकतर मीडिया रिपोर्टों में सच्चाई या ज़िम्मेदारी नहीं बची है।”

विज्ञापनदाताओं पर दबाव डालना

विज्ञापनदाताओं के खेदपूर्ण रवैये इतने सामान्य हो गए हैं कि NDTV के अधिकारी भी अब इससे हैरान नहीं होते हैं।

एक कॉरपोरेट के मालिक को स्टेशन से अपनी कंपनी के लोगो को स्क्रीन से हटाने के लिए कहना पड़ा, यह कहते हुए कि सरकार उनके लिए बहुत मुश्किल खड़ी कर रही है। एक कॉर्पोरेट के मालिक ने एक बड़े विज्ञापन अनुबंध को रद्द कर दिया जिससे एक एग्जीक्यूटिव की हिम्मत हार गयी और वह रोने लगा।

श्री मोदी की सरकार के निशाने पर सबसे ज़्यादा NDTV रहा जिसका प्रसारण अंग्रेजी और हिंदी में होता है और यह देश का एक प्रभावशाली टीवी नेटवर्क है। श्री मोदी की इस चैनल से 2002 की पुरानी नाराज़गी है जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे, और जब एनडीटीवी के पत्रकारों ने यह रिपोर्टिंग की थी कि उनकी सरकार तमाशा देखती रही जबकि धार्मिक हिंसा में सैकड़ों मुसलमानों का नरसंहार किया गया।

जब श्री मोदी प्रधान मंत्री बने, तो उनके प्रशासन ने NDTV पर पूरी ताक़त लगा कर हमला करना शुरू किया। सरकार ने NDTV पर अमेरिकी टीवी नेटवर्क एनबीसी के साथ एक समझौते के माध्यम से धन की लूट का आरोप लगाया। आरोपों को सालों तक घसीटा जाता रहा, और NDTV किसी भी गलत काम से इनकार करता रहा।

NDTV के संस्थापकों में से एक प्रणॉय रॉय ने कहा, “भारत में बात यह है कि आप आज मामला दर्ज कर सकते हैं और 10 साल बाद जीत सकते हैं।” “लेकिन यह पूरी प्रक्रिया अपने आप में सज़ा है।”

एनडीटीवी को अदेशभक्त के रूप में ब्रांड करने का प्रयास विनाशकारी रूप से प्रभावी रहा है। नवंबर 2016 के एक ईमेल में, लक्जरी वाहन निर्माता डेमलर (Daimler) ने एनडीटीवी से कहा कि वह NDTV के साथ मार्केटिंग कैंपेन नहीं करना चाहते क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों का मानना है कि “चैनल से जुड़े कुछ लोग भारत विरोधी तत्वों से जुड़े हुए हैं।”

हालांकि डेमलर के एक प्रवक्ता ने शुक्रवार को कहा कि ईमेल में कंपनी के विचार नहीं थे और वह कैंपेन आर्थिक कारणों से रद्द किया गया था।

पैसा न आने के कारण, स्टेशन ने सैकड़ों पत्रकारों को घर पर बिठा दिया। NDTV का खर्च अब भी उन राज्य सरकारों के विज्ञापन से पूरा होता है, जो विपक्षी पार्टी द्वारा शासित हैं।

केंद्र सरकार के साथ मजबूती से रहें

भारत की मीडिया के कई लोगों ने श्री मोदी को गले लगा लिया है, यह जानकर कि लोकप्रिय मूड भारत की संस्थापक धर्मनिरपेक्षता से दूर हो गया है और श्री मोदी के हिंदू राष्ट्रवाद के ब्रांड की ओर बढ़ रहा है। रिपब्लिक टीवी के अर्नब गोस्वामी के नेतृत्व वाले दक्षिणपंथी टीवी एंकर खुद को बड़ा मोदी समर्थक बनाने की होड़ में स्टूडियो में एक दुसरे से स्पर्धा करते रहते हैं।

जैसे ही सरकार ने कश्मीर में कड़ी कार्रवाई की घोषणा की, टाइम्स नेटवर्क के प्रबंध निदेशक एम.के. आनंद ने अपने संपादकों को एक निर्देश भेजा।

हम भारत के प्रमुख समाचार प्रसारणकर्ता हैं,” उन्होंने ऐसा एक व्हाट्सएप संदेश में लिखा था जिसे न्यूयॉर्क टाइम्स ने देखा। “यह महत्वपूर्ण है कि हम दोष खोजने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय इस मोड़ पर केंद्र सरकार के साथ मजबूती से रहें।”

मोदी सरकार विशेष रूप से प्रसारण मीडिया के बारे में चिंतित रहती है, जो देश के हर कोने में पहुंचते हैं। इसने बहुत कम नए टीवी चैनलों को मंजूरी दी है, और यहां तक ​​कि अमेरिकी मीडिया दिग्गज ब्लूमबर्ग भी अपने भारतीय साथी के साथ लाखों डॉलर का निवेश करने के बावजूद लाइसेंस प्राप्त करने में असमर्थ रहे हैं।

इस माहौल में, श्री मोदी की तीखी आलोचना करियर को खत्म कर सकती है। हिंदी समाचार चैनल ABP के होस्ट ने जब गरीब किसानों की मदद करने के लिए प्रधान मंत्री की पहल के परिणामों पर सवाल उठाया तो उस शो के उपग्रह प्रसारण (satellite transmission) को तब तब बाधित किया गया जब जब उसे प्रसारित करने की कोशिश की गयी, यह बात जिन लोगों ने स्टेशन में काम किया था उनहोंने बताई। पूर्व कर्मचारियों ने कहा कि चैनल के मालिकों ने होस्ट पुण्य प्रसून बाजपेयी पर इस्तीफा देने का दबाव डाला और जैसे ही वह चले गए, ट्रांसमिशन में रुकावट खत्म हो गयी। ज्ञात रहे पुण्य प्रसून बाजपेयी मास्टर स्ट्रोक नाम से ABP पर प्रोग्राम चलाते थे.

और एबीपी के एक अन्य एंकर अभिसार शर्मा ने जब लाइव टेलीविज़न पर आम आदमी की सुरक्षा को लेकर श्री मोदी की आलोचना की, तब उन्हें भी प्रसारण से छुट्टी दे दी गयी। उन्होंने भी कहा कि उन पर नौकरी से इस्तीफा देने का दबाव था।

श्री शर्मा ने फिर यूट्यूब पर अपना कार्यक्रम प्रसारित करना शुरू किया, लेकिन मोदी समर्थक ट्रॉल्स साइबरस्पेस में भी उनके पीछे पड़े रहे। हर बार जब उनहोंने कोई वीडियो अपलोड किया – और जब कुछ के लाखों व्यूज हो गए तब – YouTube को हजारों शिकायतें भेजी जाने लगी यह आरोप लगाते हुए कि उनकी टिप्पणी अनुचित है, श्री शर्मा ने कहा। ऐसा होने के कारण, साइट के एल्गोरिथ्म ने उनको विज्ञापन से मिलने वाली कमाई को रोक दिया।

“आप उनसे बच नहीं सकते,” उन्होंने कहा।

संदेशवाहक पर हमला

छोटे शहर के पत्रकार भी सरकारी हमले की चपेट में आए हैं।

पिछले अगस्त में, पवन कुमार जायसवाल, एक अंशकालिक पत्रकार, जो एक छोटा सा मोबाइल फोन के सामान की दुकान भी चलाते थे, ने एक कहानी का खुलासा किया था कि वाराणसी, श्री मोदी के संसदीय क्षेत्र के एक स्कूल में गरीब बच्चों को दोपहर के भोजन में केवल रोटी और नमक खिलाया जाता है – जो कि सरकारी पोषण नियमों का स्पष्ट उल्लंघन था।

उनका छोटा वीडियो वायरल होने के बाद, उत्तर प्रदेश के शिक्षा अधिकारी ने श्री जायसवाल के खिलाफ एक आपराधिक शिकायत दर्ज की, जिसमें उनके खिलाफ साजिश, झूठे सबूत और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया, उन पर ऐसे अपराध थोपे गए जिसकी सज़ा सात साल तक की जेल हो सकती है।

स्कूल में उनके स्रोत को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया था। उसके बाद, श्री जायसवाल नई दिल्ली भाग गए, जहाँ वे कई हफ्तों तक छिपे रहे।

“कभी-कभी मुझे ऐसा लगता था कि मैं आत्महत्या कर लूं,” उन्होंने कहा।

हालांकि, एक जांच हुई और उनकी रिपोर्टिंग को सही पाया गया और पुलिस ने उनके खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया, इसके बावजूद श्री जायसवाल के पीछे अब भी स्कूल से जुड़े लोग़ पड़े हैं, उन्होंने कहा।

उनके पास डरने की वजह है। हाल के वर्षों में कई भारतीय पत्रकारों की हत्या कर दी गई है, जिनमें अपने कार्यालय के बाहर मारे गए एक कश्मीरी अखबार के संपादक से लेकर छत्तीसगढ़ का एक युवा पत्रकार तक है जिसे लोगों ने मार कर जंगल में छोड़ दिया था।

“यह एक स्थानीय रिपोर्टर का जीवन है,” श्री जायसवाल ने कहा।

जिम्मेदार आज़ादी

मार्च में मीडिया वन और एक अन्य केरल टेलीविजन स्टेशन, एशियानेट न्यूज़, को बंद करने के बाद मामले में एक नया मोड़ आया। दोनों स्टेशन मलयालम में प्रसारित होते हैं, जो कि ऐसी स्थानीय भाषा है जिसे 3 प्रतिशत से कम भारतीयों द्वारा बोली जाती है। और दोनों चैनलों ने मुसलमानों के खिलाफ हिन्दू भीड़ की हिंसा में पुलिस की बेरुखी को बताने वाले गवाहों के ब्यान को प्रसारित किया था, जो दिल्ली में हिंसा के दौरान कई अन्य आउटलेट्स से भी प्रसारित हुआ था।

लेकिन प्रसारण मंत्रालय ने दावा किया कि इन दो स्टेशनों ने जो रिपोर्ट किया उससे “देश भर में सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा मिल सकता है।” बंद के बारे में कई शिकायतों के बाद, प्रसारण मंत्री, श्री जावड़ेकर ने अगली सुबह आदेशों को वापस लिया।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में श्री जावड़ेकर ने कहा कि प्रेस की आजादी लोकतांत्रिक व्यवस्था में पूरी तरह से जरूरी है और यह मोदी सरकार की प्रतिबद्धता है।

“लेकिन मुझे यह भी कहने दें,” उन्होंने अपनी बात को पूरी करते हुए कहा, “कि हर कोई यह स्वीकार करे कि स्वतंत्रता में जिम्मेदारी का होना ज़रूरी है।”

विंदू गोयल, मुंबई, भारत स्थित एक रिपोर्टर हैं जो दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव पर रिपोर्ट करते हैं। पहले वह सैन फ्रांसिस्को से प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया पर रिपोर्टिंग करते थे। उन्होंने 2008 में द सैन जोस मर्करी न्यूज (The San Jose Mercury News) के बाद टाइम्स ज्वाइन किया। @vindugoel और Facebook

जेफरी गेटेलमैन, नई दिल्ली स्थित दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख हैं। वह अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टिंग के लिए 2012 में पुलित्जर पुरस्कार के विजेता रहे हैं। @gettleman • Facebook

(यह रिपोर्ट मूलतः यहाँ प्रकशित हुई है. इसे अनुवाद के साथ साभार पुनः प्रस्तुत किया गया.)

Liked it? Take a second to support द मॉर्निंग क्रॉनिकल हिंदी टीम on Patreon!
Become a patron at Patreon!